महाभारत में एक कथा है, जो सच्ची दानवीरता की मिसाल है। एक बार की बात है कुरु युवराज दुर्योधन के महल के द्वार पर एक भिक्षुक आया और दुर्योधन से बोला- राजन, मैं अपनी वृद्धावस्था से बहुत परेशान हूं। चारों धाम की यात्रा करने का प्रबल इच्छुक हुं, जो युवावस्था के ऊर्जावान शरीर के बिना संभव नहीं है। इसलिए आप …
Read More »Mahabharat
श्रीकृष्ण और द्रौपदी
पांडव महिषी सती द्रौपदी भगवान श्रीकृष्ण को परम बंधु भाव से पूजती थी । भगवान भी द्रौपदी के साथ असाधारण स्नेह रखते और उसकी प्रत्येक पुकार का तुरंत उत्तर देते थे । भगवान के अंत:पुर में द्रौपदी का और द्रौपदी के महलों में भगवान का जाना – आना अबाध था । जिस प्रकार भगवान का दिव्य प्रेम भी अलौकिक था …
Read More »सारथ्य
भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत – संग्राम में और किसी का सारथ्य न करके अर्जुन ही सारथ्यकार्य क्यों किया, यह भी एक विचारणीय विषय है । जब भगवान अपनी सारी नारायणी सेवा कौरवों को देकर पाण्डवों की ओर से स्वयं अशस्त्र रहकर महायुद्ध में योगदान करने का वचन अर्जुन को दे चुके थे तब उन्हें कोई – न कोई काम करना …
Read More »भीष्मपितामह – आदर्श चरित्र
भक्तराज भीष्मपितामह महाराज शांतनु के औरस पुत्र थे और गंगादेवी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे । वसिष्ठ ऋषि के शाप से आठों वसुओं ने मनुष्योनि में अवतार लिया था, जिनमें सात को तो गंगा जी ने जन्मते ही जल के प्रवाह में बहाकर शाप से छुड़ा दिया । ‘द्यौ’ नामक वसु के अंशावतार भीष्म को राजा शांतनु ने रख …
Read More »रक्षक प्रभु
इन्द्र से वरदान में प्राप्त एक अमोघ शक्ति कर्ण के पास थी । इन्द्र का कहा हुआ था कि इस शक्ति को तू प्राणसंकट में पड़कर एक बार जिस पर भी छोड़ेगा, उसी की मृत्यु हो जाएंगी, परंतु एक बार से अधिक इसका प्रयोग नहीं हो सकेगा । कर्ण ने वह शक्ति अर्जुन को मारने के लिए रख छोड़ी …
Read More »भगवान श्रीकृष्ण और भावी संसार
भरतखण्ड का इतिहास महाभारत की ही शाखा है । महाभारत का अर्थ है महान भारतवर्ष । हमलोग भारतवर्ष को महान देखना चाहते हैं । महाभारत के समय से ही धर्मराज्य की स्थापना के लिये संग्राम जारी है । भगवान श्रीकृष्ण का जिस समय अवतार हुआ, उस समय यह संग्राम जोरों पर था । भगवान श्रीकृष्ण का अवतार एक विशेष …
Read More »गुरुभक्ति के लिए एकलव्य का त्याग
निषादराज हिरण्यधनु का पुत्र एकलव्य एक दिन हस्तिनापुर में आया और उसने उस समय के धनुर्विद्या के सर्वश्रेष्ठ आचार्य, कौरव-पाण्डवों के शस्त्र-गुरु द्रोणाचार्य जी के चरणों में दूर से साष्टांग प्रणाम किया। अपनी वेश-भूषा से ही वह अपने वर्ण की पहचान दे रहा था। आचार्य द्रोण ने जब उससे अपने पास आने का कारण पूछा, तब उसने बताया—‘मैं श्रीचरणों के …
Read More »विनम्रता का फल
महाभारत की एक कथा है। धर्मयुद्ध अपने अंतिम चरण में था। भीष्म पितामह शैय्या पर लेटे हुए अपने जीवन के आखिरी क्षण गिन रहे थे। उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान मिला हुआ था और वे सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण होने की प्रतीक्षा कर रहे थे। धर्मराज युधिष्ठिर जानते थे कि पितामह ज्ञान और जीवन संबंधित अनुभव से संपन्न हैं। …
Read More »क्या मरना भी मुहूर्त में ही?
मुहूर्त विज्ञान उपक्रम मे इस बात का उदाहण मिलता है कि यदि मरने का मुहूर्त नहीं बनता था तो वे लोग अपना मरना भी स्थगित कर देते थे। आर्य जाति के गौरवपूर्ण इतिहास ग्रंथ में वर्णन आता है कि महाभारत के संग्राम के समय जब नौ दिन में ही भीष्मजी द्वारा कौरव सेना का संचालन करते हुए पांडवों की आधी …
Read More »द्रौपदी- स्वयंवर की कथा
राजा द्रुपद के मन में यह लालसा थी कि मेरी पुत्री का विवाह किसी-न- किसी प्रकार अर्जुन के साथ हो जाये। परन्तु उन्होनें यह विचार किसी से प्रकट नहीं किया। अर्जुन को पहचानने के लिये उन्होनें एक धनुष बनवाया, जो किसी दूसरे से झुक न सके। इसके अतिरिक्त्त आकाश में ऐसा कृत्रिम यन्त्र टँगवा दिया, जो चक्कर काटता रहता था। …
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