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Mahabharat

ऐसे कीजिए अच्छे और बुरे की पहचान

गुरु द्रोणाचार्य ने शिक्षा पूरी होने पर कौरव और पांडव वंश के राजकुमारों दुर्योधन और युधिष्ठिर को परीक्षा के लिए बुलाया। गुरु द्रोण ने सबसे पहले युधिष्ठिर और दुर्योधन को एक अच्छा व्यक्ति ढूंढकर लाने को कहा। दोनों राजुकमार चल दिए।  सारा दिन खाली हाथ भटकने के बाद शाम को वापिस गुरुकुल आए। दुर्योधन बोला, गुरुजी मुझे तो कोई भी …

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हतोत्साहित मन होता है पराजय की पहली सीढ़ी

हतोत्साहित मन होता है पराजय की पहली सीढ़ी

महाभारत का युद्ध चल रहा था। एक ओर अर्जुन थे, जिनके सारथी थे ‘श्री कृष्ण’। तो दूसरी ओर कर्ण थे और उनका सारथी ‘शल्य’। भगवान श्री कृष्ण ने कर्ण के सारथी से कहा- ‘तुम हमारे विरुद्ध जरूर लड़ना पर मेरी एक बात जरूर मानना।’ जब कर्ण प्रहार करे तब कहना कि, ‘यह भी कोई प्रहार होता है, तुम प्रहार करना …

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महाभारत युद्ध में तीर भी बोलते थे यह है प्रमाण

died karan

                                                   KARAN AND ARJUN OF MAHABHARAT द्वापरयुग में महाभारत युद्ध के समय की बात है, कौरवों और पांडवों में युद्ध चल रहा था। कर्ण, अर्जुन को मारने की शपथ ले चुके थे। कर्ण लगातार बाणों की …

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स्वार्थरहित होकर किया गया दान ही श्रेष्ठ

KAVCH KUNDAL DAAN

महाभारत में एक कथा है, जो सच्ची दानवीरता की मिसाल है। एक बार की बात है कुरु युवराज दुर्योधन के महल के द्वार पर एक भिक्षुक आया और दुर्योधन से बोला- राजन, मैं अपनी वृद्धावस्था से बहुत परेशान हूं। चारों धाम की यात्रा करने का प्रबल इच्छुक हुं, जो युवावस्था के ऊर्जावान शरीर के बिना संभव नहीं है। इसलिए आप …

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श्रीकृष्ण और द्रौपदी

shree krshn aur draupadee

पांडव महिषी सती द्रौपदी भगवान श्रीकृष्ण को परम बंधु भाव से पूजती थी । भगवान भी द्रौपदी के साथ असाधारण स्नेह रखते और उसकी प्रत्येक पुकार का तुरंत उत्तर देते थे । भगवान के अंत:पुर में द्रौपदी का और द्रौपदी के महलों में भगवान का जाना – आना अबाध था । जिस प्रकार भगवान का दिव्य प्रेम भी अलौकिक था …

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सारथ्य

Abhimanu Mahabharat Mahakavye

भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत – संग्राम में और किसी का सारथ्य न करके अर्जुन ही सारथ्यकार्य क्यों किया, यह भी एक विचारणीय विषय है । जब भगवान अपनी सारी नारायणी सेवा कौरवों को देकर पाण्डवों की ओर से स्वयं अशस्त्र रहकर महायुद्ध में योगदान करने का वचन अर्जुन को दे चुके थे तब उन्हें कोई – न कोई काम करना …

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भीष्मपितामह – आदर्श चरित्र

Bisham Pitamahh - Aadersh Chariter Story

  भक्तराज भीष्मपितामह महाराज शांतनु के औरस पुत्र थे और गंगादेवी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे । वसिष्ठ ऋषि के शाप से आठों वसुओं ने मनुष्योनि में अवतार लिया था, जिनमें सात को तो गंगा जी ने जन्मते ही जल के प्रवाह में बहाकर शाप से छुड़ा दिया । ‘द्यौ’ नामक वसु के अंशावतार भीष्म को राजा शांतनु ने रख …

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रक्षक प्रभु

Rakshak Parbhu

  इन्द्र से वरदान में प्राप्त एक अमोघ शक्ति कर्ण के पास थी । इन्द्र का कहा हुआ था कि इस शक्ति को तू प्राणसंकट में पड़कर एक बार जिस पर भी छोड़ेगा, उसी की मृत्यु हो जाएंगी, परंतु एक बार से अधिक इसका प्रयोग नहीं हो सकेगा । कर्ण ने वह शक्ति अर्जुन को मारने के लिए रख छोड़ी …

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भगवान श्रीकृष्ण और भावी संसार

Agar shyam ksunder ka shera na hota

  भरतखण्ड का इतिहास महाभारत की ही शाखा है । महाभारत का अर्थ है महान भारतवर्ष । हमलोग भारतवर्ष को महान देखना चाहते हैं । महाभारत के समय से ही धर्मराज्य की स्थापना के लिये संग्राम जारी है । भगवान श्रीकृष्ण का जिस समय अवतार हुआ, उस समय यह संग्राम जोरों पर था । भगवान श्रीकृष्ण का अवतार एक विशेष …

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गुरुभक्ति के लिए एकलव्य का त्याग

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निषादराज हिरण्यधनु का पुत्र एकलव्य एक दिन हस्तिनापुर में आया और उसने उस समय के धनुर्विद्या के सर्वश्रेष्ठ आचार्य, कौरव-पाण्डवों के शस्त्र-गुरु द्रोणाचार्य जी के चरणों में दूर से साष्टांग प्रणाम किया। अपनी वेश-भूषा से ही वह अपने वर्ण की पहचान दे रहा था। आचार्य द्रोण ने जब उससे अपने पास आने का कारण पूछा, तब उसने बताया—‘मैं श्रीचरणों के …

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