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सोनी सुबह से काम में लगी हुई है

आज चाचा की तेरहंवी है….सुबह से दान की तैयारियां हो रही थी भइया सब सामान ले आये थे …सोनी भी अपनी तरफ से कुछ देना चाहती थी पर क्या दे!फिर कुछ सोच कर पंसारी की दुकान पर पहुँच गयी…

“काका, वो बड़ा वाला हार्लिक्स का डब्बा देना….

ये लो बिटिया…..अरे रुपया रहने दे हम बड़े भइया से ले लेंगे….

“ना काका…. ले लो, दान का सामान है,हम अपने ही पइसे का देंगे….

सोनी को आज सब कुछ याद आ रहा था अपने छुटपन से लेकर अब तक का जीवन उसकी आँखों के आगे घूम रहा था……दादी बस चाचा को ही दूध में हार्लिक्स घोल के देती थी कभी-कभी कभार दोनों भइया लोगों को भी मिल जाता था लेकिन वो लड़की थी तो उसके हिस्से मठ्ठा ही आता था….

वो अपनी ललचाई नजर से हार्लिक्स का डब्बा देखती कभी-कभार चुपके से एक चम्मच मुँह में डाल लेती जो जल्दी में सरक जाता और घर में सबको उसकी चोरी की खबर लग जाती…..

सोनी जब पाँच साल की थी तभी चाची खत्म हो गईं थीं। सबने चाचा पर दूसरी शादी का दबाव डाला तो वो मना कर दिए और बोले,”मेहरारू का जितना सुख था इतना ही था अब भगवान का भजन करेंगे इस उमर में दूसरी महतारी ला कर अपने बच्चों को अनाथ नहीं करेंगे….

एक दिन दादी चाचा को दूध का गिलास पकड़ा कर जाने लगीं तब चाचा कहे, “ए अम्मा जरा सोनी को मेरे पास भेज दे उसे थोड़ी गिनती रटा दूं….

अम्मा कहीं,”अरे लड़की पढ़ा के क्या कर लेगा….कौन उसे शहर भेज कर नौकरी करानी है…

तो बोले,”तू भेज तो ! उसे रोज रात को भेजा कर, थोड़ा हिसाब सिखा दूँगा तो आगे काम देगा।”

जब सोनी चाचा के पास जाती तो वो उसे अपने दूध का गिलास पकड़ा कर कहते पहले पी ले फिर गिनती याद कराता हूं…..

बस उस दिन के बाद से सोनी ने कभी हार्लिक्स नहीं चुराया।

बड़का बाबूजी के बच्चे उन्हें चाचा कहते थे तो अपने बच्चों के भी चाचा ही हो गए थे घर-परिवार के सामने कभी अपने बच्चों को दुलार नहीं पाते लेकिन छुप-छुप कर सबकी खबर रखते। सोनी की विदाई में बुक्का फाड़ कर रोये थे…

उसके सामान के साथ हार्लिक्स का डब्बा भी रखे और बोले -हमार सोनी को ई बहुत अच्छा लगता है…

सोनी के पति का कहीं दूसरी जगह चक्कर था…ससुराल वाले उसे पति के साथ बाहर नहीं भेजे….

वहीं घर का सब काम करती और कमरे में पड़ी रोती रहती।

एक बार फोन पर भाभी को सब बता रही थी कि सास ने सुन लिया फिर सोनी को खूब मारा और बोली, “चुपचाप इहाँ इज्जत से पड़ी रहो खाना-पीना मिल रहा है…

दूठो बच्चा पैदा करो ये घर गृहस्थी सम्भालो….

मरद बाहर क्या कर रहा है इस बारे में दोबारा न सोचना न कुछ कहना।”

ये सब पता चलते ही चाचा उसे लिवाने चले गए और उसके ससुराल वालों से बोले,” हमारी बिटिया तुम्हारी नौकर नहीं है जो घर का काम करने के लिए यहाँ पड़ी रहे….

उसके बाप-भाई जिंदा हैं और वो अपने घर में सम्मान से रहेगी।”

पूरा गाँव चाचा को समझा रहा था कि ब्याहता लड़की को कोई ऐसे रखता है ! ससुराल छोड़ आओ आगे उसकी किस्मत ठीक होगी तो देर सबेर पति सुधर जाएगा! लेकिन चाचा किसी की नहीं सुने न झुके! पिता की तरह दोनों भाई भी सोनी के साथ खड़े थे।

एक दिन चाचा सोनी को बुला कर एक कागज पर साइन करवाये और बोले फुलवारी वाली जमीन तुम्हारे नाम कर दिए हैं अब हम नहीं भी रहेंगे तो भी तुमको कोई परेशानी नहीं होगी…

सब इंतेजाम कर के चाचा चले गए….

आज चाचा की आखिरी विदाई थी। उनकी हँसती हुई तस्वीर के सामने सोनी हार्लिक्स का डब्बा लिए बिलख रही थी और कह रही थी,”चाचा इसको भी लेते जाओ तुमको बहुत पसंद था न! पर अब हमको इसका स्वाद अच्छा नहीं लगता है..

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