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चतुराई से मुक्ति !!

सच्चा मानव कौन है-इस जिज्ञासा का समाधान करते हुए ऋषि व शास्त्रकार कहते हैं कि जिसका आचरण पवित्र है, जो निष्कपट है, जो दुःखी व्यक्ति की सहायता को तैयार रहता है, वही मानव कहलाने का अधिकारी है।

कपटी, आडंबरी व्यक्ति जब अपने परिजनों की दृष्टि में ही विश्वसनीय नहीं होता, तो भला वह भगवान् को कैसे प्रिय हो सकता है। इसलिए तुलसीदासजी ने लिखा है,

‘मन, कर्म, वचन छाडि चतुराई।’ यानी चतुराई से पूरी तरह मुक्त होकर ही भगवान् श्रीराम का प्रिय बना जा सकता है। आदिकवि वाल्मीकि ‘सत्यमेवेश्वरो लोके’ कहकर विशुद्ध सत्य, निष्कपट व्यक्ति को साक्षात् ईश्वर बताते हैं।

उन्होंने कहा है, ‘संतश्चारित्रभूषणाः’ यानी, संत वही है, जिनके आभूषण सदाचरण हुआ करते हैं। तुलसी भी कहते हैं, ‘संत हृदय जस निर्मल बारी और चंदन तरु हरि संत समीर।’ सच्चे संत हर क्षण भगवान् के भजन तथा दूसरों को सद्विचार की सुगंध से सुवासित करते रहते हैं।

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