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चूहे से व्यापार

एक व्यक्ति जिसका नाम शम्भू था, बहुत बड़ा व्यापारी बनना चाहता था पर उसके पास पैसे नहीं थे। वो अक्सर व्यापारियों को देखता और उन जैसा बनने की कल्पना करता। एक दिन उसने दो व्यापारियों की बात सुनी। एक व्यापारी दूसरे व्यापारी से कह रहा था, “व्यापर करने के लिए पैसे नहीं बल्कि लगन और चतुराई की जरूरत होती है। कोई चाहे तो वह जो कूड़े पर मरा चूहा पड़ा है, उससे भी व्यापार शुरू कर सकता है।”
शम्भू ने कूड़े पर पड़े चूहे को देखा और सोचा लगन और चतुराई तो है मुझमें हैं। क्यों न मैं इस मरे चूहे से ही व्यापार शरू करूँ। यह सोच उसने मरा हुआ चूहा उठा। तभी एक सेठ जी अपनी बिल्ली को गोद में लिए उधर से गुजर रहे थे। शम्भू के दिमाग में एक तरकीब आई । वह चूहा उठाए उस सेठ के आगे-आगे चलने लगा । सेठ जी की बिल्ली चूहे को देखकर उतावली हो गई व म्याऊँ-म्याऊँ करके कुलबुलाने लगी।
सेठ जी ने शम्भू से कहा, “क्यों भाई, यह चूहा बेचोगे ?” शम्भू ने कुछ देर सोचने का नाटक कीया । अंत में वह तैयार हो गया । सेठ ने उसे एक सिक्का दिया । शम्भू सिक्का लेकर आगे चला । इस एक सिक्के से क्या किया जाए ? तभी उसे आगे एक प्याऊ नजर आई ।
लोग पानी पीकर प्याऊ वाले को धन्यवाद देते जा रहे थे । कुछ उसे पैसे भी दे रहे थे । यह देखकर शम्भू ने सोचा कि क्यों न यही काम किया जाए । शम्भू ने एक घड़ा खरीदा और उसमें पानी भरकर खेतों के निकट बैठ गया । थके-प्यासे किसानों ने उसका ठंडा पानी पीया । किसानों के पास देने को पैसे तो नहीं थे पर उन्होंने शम्भू को कुछ फूल दे दिए । उसका दिमाग अब और तेज़ चल रहा था । शम्भू मटके में फूल भरकर मंदिर की ओर चला । वह मंदिर के बाहर फूल लेकर बैठ गया । मंदिर में चढ़ाने के लिए लोग पैसे देकर उससे फूल लेने लगे । शम्भू की अच्छी कमाई हो गई । अब वो दोपहर को किसानों को पानी पिलाकर उनसे फूल पाता और शाम को मंदिर में बेचकर पैसे कमाता ।
एक दिन उसने किसी से सुना कि एक बड़ा व्यापारी अगले महीने पाच सौ घोड़े लेकर शहर आने वाला है। उसका दिमाग दौड़ने लगा वो घड़े में पानी व गुड़ डालकर जंगल की ओर चल दिया। वहां घसियारों (घास काटने वाले) को मुफ्त में शर्बत पिलाता। घसियारे उसके बहुत आभारी हो गए । वे उसकी सेवा के बदले उसके लिए कुछ करना चाहते पर शम्भू उन्हें कहता समय आएगा तो मौका दूंगा।
एक दिन वो समय भी आ गया जब घोड़े का व्यापारी अपने पांच सो घोड़े लेकर शहर आ गया। शम्भू घसियारों के पास गया और अपनी सारी जमा-पूंजी देकर बोला, ”आज जितनी घास आपने काटी है वह मुझे बेच दो ।” घसियारे तुरंत मान गए । चंदु ने सारी घास ले ली । इस कारण बाजार में कोई घास नहीं लाया ।
व्यापारी शहर पहुंचा तो उसे घोड़ों के लिए घास नहीं मिली । केवल एक जगह घास का अम्बार लगाए शम्भू मिला । उसके पास पांच सौ गट्‌ठर थे । व्यापारी को घोड़ों के लिए घास की बहुत जरूरत थी । उसने शम्भू से घास की कीमत पूछी । चंदु ने एक हजार सिक्के मांगे ।
मजबूर होकर व्यापारी को घास के लिए एक हजार सिक्के देने पड़े । कुछ ही दिनों बाद एक जहाज माल लेकर आया । नगर के व्यापारियों के दल के पहुंचने से पहले ही शम्भू जहाज के व्यापारियों के पास पहुच गया और उसने एक हजार सिक्के अग्रिम देकर जहाज का सारा माल खरीद लिया ।
नगर के व्यापारियों को शम्भू से माल खरीदना पड़ा । शम्भू ने व्यापारियों से पैसे लेकर जहाज वालों को पूरी कीमत दे दी । शहर के व्यापारियों में शम्भू मशहूर हो गया । सब उसकी चतुराई के कायल हो गए । एक दिन शम्भू एक व्यापारी के घर गया ।
यह वही व्यापारी था जिसकी बात सुनकर शम्भू ने मरे चूहे से अपना कारोबार शुरू किया था । शम्भू ने एक सोने का चूहा उस व्यापारी के सामने रखा और बोला, ”आप मेरे गुरु हैं । यह सोने का चूहा गुरुदक्षिणा के रूप में स्वीकार कीजिए ।”
शम्भू ने मरे चूहे से लेकर अब तक की सारी कहानी उसे सुना दी । व्यापारी चकित रह गया और बोला : ”शम्भू, तुम्हारे जैसे योग्य युवक को मैं खोना नहीं चाहता । मेरी विवाह योग्य सुदर व सुशील बेटी है । तुमसे योग्य न मुझे उसके लिए नहीं मिल सकता । मुझे गुरु दक्षिणा के रूप में यही संबंध चाहिए ।” शम्भू ने रिश्ता सहर्ष स्वीकार कर लिया।
कहानी की शिक्षा:
मेहनत, लगन और चतुराई से किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त की जा सकती है। हमेशा प्रयास करते रहें। सफल होते रहें और आगे बढ़ते रहें।

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