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छोटा जादूगर

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कार्निवल के मैदान में बिजली जगमगा रही थी। हँसी और विनोद का कलनाद गूंज रहा था। मैं खड़ा था उस छोटे फुहारे के पास, जहां एक लड़का चुपचाप शराब पीने वालों को देख रहा था। उसके गले में फटे कुरते के ऊपर से एक मोटी-सी सूत की रस्सी पड़ी थी और जेब में कुछ ताश के पत्ते थे। उसके मुँह पर गंभीर विषाद के साथ धैर्य की रेखा थी। मैं उसकी ओर न जाने क्यों आकर्षित हुआ। उसके अभाव में भी सम्पन्नता थी। मैंने पूछा, ”क्यों जी, तुमने इसमें क्या देखा?”

”मैंने सब देखा है। यहां चूड़ी फेंकते हैं। खिलौनों पर निशाना लगाते हैं। तीर से नम्बर छेदते हैं। मुझे तो खिलौनों पर निशाना लगाना अच्छा मालूम हुआ। जादूगर तो बिलकुल निकम्मा है। उससे अच्छा तो ताश का खेल मैं ही दिखा सकता हूं।” उसने बड़ी प्रगल्भता से कहा। उसकी वाणी में कहीं रूकावट न थी ।

मैंने पूछा, ”और उस परदे में क्या है? वहां तुम गए थे?”

”नहीं, वहां मैं नहीं जा सका। टिकट लगता है।”

मैंने कहा, ”तो चलो मैं वहां पर तुमको लिवा चलूं।” मैंने मन-ही-मन कहा, ”भाई! आज के तुम्हीं मित्र रहे।”

उसने कहा, ”वहाँ जाकर क्या कीजिएगा ? चलिए, निशाना लगाया जाए ।”

मैंने उससे सहमत होकर कहा, ”तो फिर चलो, पहले शरबत पी लिया जाए।” उसने स्वीकार-सूचक सिर हिला दिया।

मनुष्यों की भीड़ से जाड़े की संध्या भी वहां गर्म हो रही थी। हम दोनों शरबत पीकर निशाना लगाने चले। राह में ही उससे पूछा, ”तुम्हारे घर में और कौन है?”

”मां और बाबूजी।”

”उन्होंने तुमको यहां आने के लिए मना नहीं किया?”

”बाबूजी जेल में हैं ।”

”क्यों ?”

”देश के लिए ।” वह गर्व से बोला।

”और तुम्हारी माँ ?”

”वह बीमार है ।”

”और तुम तमाशा देख रहे हो ?”

उसके मुँह पर तिरस्कार की हँसी फूट पड़ी। उसने कहा, ”तमाशा देखने नहीं, दिखाने निकला हूँ। कुछ पैसे ले जाऊंगा, तो माँ को पथ्य दूँगा। मुझे शरबत न पिलाकर आपने मेरा खेल देखकर मुझे कुछ दे दिया होता, तो मुझे अधिक प्रसन्नता होती !”

मैं आश्चर्य से उस तेरह-चौदह वर्ष के लड़के को देखने लगा ।

”हाँ, मैं सच कहता हूँ बाबूजी ! माँजी बीमार हैं, इसीलिए मैं नहीं गया।”

”कहाँ ?”

”जेल में ! जब कुछ लोग खेल-तमाशा देखते ही हैं, तो मैं क्यों न दिखाकर माँ की दवा करूं और अपना पेट भरूँ ।”

मैंने दीर्घ नि:श्वास लिया । चारों ओर बिजली के लट्टू नाच रहे थे । मन व्यग्र हो उठा । मैंने उससे कहा, ”अच्छा चलो, निशाना लगाया जाए ।”

हम दोनों उस जगह पर पहुँचे, जहाँ खिलौने को गेंद से गिराया जाता था। मैंने बारह टिकट खरीदकर उस लड़के को दिए ।

वह निकला पक्का निशानेबाज़। उसकी कोई गेंद खाली नहीं गयी। देखनेवाले दंग रह गए। उसने बारह खिलौनों को बटोर लिया, लेकिन उठाता कैसे ? कुछ मेरी रूमाल में बँधे, कुछ जेब में रख लिए गए।

लड़के ने कहा, ”बाबूजी, आपको तमाशा दिखाऊँगा। बाहर आइए, मैं चलता हूँ ।”  वह नौ-दो ग्यारह हो गया। मैंने मन-ही-मन कहा, ”इतनी जल्दी आँख बदल गई।”

मैं घूमकर पान की दुकान पर आ गया। पान खाकर बड़ी देर तक इधर-उधर टहलता देखता रहा। झूले के पास लोगों का ऊपर-नीचे आना देखने लगा। अकस्मात् किसी ने ऊपर के हिंडोले से पुकारा, ”बाबूजी !”

मैंने पूछा, ”कौन?”

”मैं हूँ छोटा जादूगर।”

कलकत्ता के सुरम्य बोटानिकल- उद्यान में लाल कमलिनी से भरी हुई एक छोटी-सी झील के किनारे घने वृक्षों की छाया में अपनी मण्डली के साथ बैठा हुआ मैं जलपान कर रहा था। बातें हो रही थीं । इतने में वही छोटा जादूगर दिखाई पड़ा । हाथ में चारखाने का खादी का झोला, साफ जांघिया और आधी बांहों का कुरता । सिर पर मेरी रूमाल सूत की रस्सी से बँधी हुई थी । मस्तानी चाल में झूमता हुआ आकर वह कहने लगा –

”बाबूजी, नमस्ते! आज कहिए तो खेल दिखाऊँ ।”

”नहीं जी, अभी हम लोग जलपान कर रहे हैं।”=

”फिर इसके बाद क्या गाना-बजाना होगा, बाबूजी ?”

”नहीं जी– तुमको…” क्रोध से मैं कुछ और कहने जा रहा था। श्रीमतीजी ने कहा, ”दिखलाओ जी, तुम तो अच्छे आए। भला, कुछ मन तो बहले।” मैं चुप हो गया, क्योंकि श्रीमतीजी की वाणी में वह माँ की-सी मिठास थी, जिसके सामने किसी भी लड़के को रोका नहीं जा सकता। उसने खेल आरम्भ किया।

उस दिन कार्निवल के सब खिलौने उसके खेल में अपना अभिनय करने लगे। भालू मनाने लगा। बिल्ली रूठने लगी। बन्दर घुड़कने लगा।

गुड़िया का ब्याह हुआ। गुड्डा वर काना निकला। लड़के की वाचालता से ही अभिनय हो रहा था। सब हँसते-हँसते लोट-पोट हो गए।

मैं सोच रहा था। बालक को आवश्यकता ने कितना शीघ्र चतुर बना दिया। यही तो सँसार है।

ताश के सब पत्ते लाल हो गए। फिर सब काले हो गए। गले की सूत की डोरी टुकड़े-टुकड़े होकर जुड़ गई। लट्टू अपने से नाच रहे थे। मैंने कहा, ”अब हो चुका। अपना खेल बटोर लो, हम लोग भी अब जाएंगे ।”

श्रीमती जी ने धीरे से उसे एक रूपया दे दिया। वह उछल उठा।

मैंने कहा, ”लड़के !”

”छोटा जादूगर कहिए। यही मेरा नाम है। इसी से मेरी जीविका है ।”

मैं कुछ बोलना ही चाहता था, कि श्रीमतीजी ने कहा, ”अच्छा, तुम इस रूपए से क्या करोगे ?”

”पहले भरपेट पकौड़ी खाऊंगा। फिर एक सूती कम्बल लूँगा ।”

मेरा क्रोध अब लौट आया। मैं अपने पर बहुत क्रुद्ध होकर सोचने लगा, ”ओह ! कितना स्वार्थी हूँ मैं। उसके एक रूपया पाने पर मैं ईर्ष्या करने लगा था न !”

वह नमस्कार करके चला गया। हम लोग लता-कुँज देखने के लिए चले।

उस छोटे-से बनावटी जंगल में संध्या साँय-साँय करने लगी थी। अस्ताचलगामी सूर्य की अन्तिम किरण वृक्षों की पत्तियों से विदाई ले रही थी। एक शांत वातावरण था। हम लोग धीरे-धीरे मोटर से हावड़ा की ओर आ रहे थे।

रह-रहकर छोटा जादूगर स्मरण होता था। तभी सचमुच वह एक झोपड़ी के पास कम्बल कंधे पर डाले खड़ा था । मैंने मोटर रोककर उससे पूछा, ”तुम यहाँ कहाँ ?”

”मेरी मां यहीं है न । अब उसे अस्पताल वालों ने निकाल दिया है।”  मैं उतर गया। उस झोंपड़ी में देखा तो एक स्त्री चिथड़ों से लदी हुई काँप रही थी।

छोटे जादूगर ने कम्बल ऊपर से डालकर उसके शरीर से चिमटते हुए कहा,

”माँ।”

मेरी आंखों में आँसू निकल पड़े।

बड़े दिन की छुट्टी बीत चली थी। मुझे अपने आफिस में समय से पहुँचना था। कलकत्ते से मन ऊब गया था। फिर भी चलते-चलते एक बार उस उद्यान को देखने की इच्छा हुई। साथ-ही-साथ जादूगर भी दिखाई पड़ जाता, तो और भी… मैं उस दिन अकेले ही चल पड़ा। जल्द लौट आना था।

दस बज चुके थे। मैंने देखा, उस निर्मल धूप में सड़क के किनारे एक कपड़े पर छोटे जादूगर का रंगमंच सजा था। मैं मोटर रोककर उतर पड़ा। वहाँ बिल्ली रूठ रही थी। भालू मनाने चला था। ब्याह की तैयारी थी, यह सब होते हुए भी जादूगर की वाणी में वह प्रसन्नता की तरी नहीं थी। जब वह औरों को हँसाने की चेष्टा कर रहा था, तब जैसे स्वयं काँप जाता था। मानो उसके रोएं रो रहे थे। मैं आश्चर्य से देख रहा था। खेल हो जाने पर पैसा बटोरकर उसने भीड़ में मुझे देखा। वह जैसे क्षणभर के लिए स्फूर्तिमान हो गया। मैंने उसकी पीठ थपथपाते हुए पूछा, ”आज तुम्हारा खेल जमा क्यों नहीं?”

”मां ने कहा है कि आज तुरंत चले आना। मेरी घड़ी समीप है।” अविचल भाव से उसने कहा।

”तब भी तुम खेल दिखलाने चले आए !” मैंने कुछ क्रोध से कहा। मनुष्य के सुख-दुख का माप अपना ही साधन तो है। उसके अनुपात से वह तुलना करता है।

उसके मुँह पर वहीं परिचित तिरस्कार की रेखा फूट पड़ी।

उसने कहा, ”न क्यों आता !”

और कुछ अधिक कहने में जैसे वह अपमान का अनुभव कर रहा था।

क्षणभर में मुझे अपनी भूल मालूम हो गई । उसके झोले को गाड़ी में फेंककर उसे भी बैठाते हुए मैंने कहा, ”जल्दी चलो ।” मोटर वाला मेरे बताए हुए पथ पर चल पड़ा ।

कुछ ही मिनटों में मैं झोंपड़े के पास पहुँचा। जादूगर दौड़कर झोंपड़े में माँ-माँ पुकारते हुए घुसा । मैं भी पीछे था, किन्तु स्त्री के मुँह से, ‘बे…’ निकलकर रह गया। उसके दुर्बल हाथ उठकर गिर गए। जादूगर उससे लिपटा रो रहा था, मैं स्तब्ध था। उस उज्ज्वल धूप में समग्र संसार जैसे जादू-सा मेरे चारों ओर नृत्य करने लगा।

Wish4me In English

kaarnival ke maidaan mein bijalee jagamaga rahee thee. hansee aur vinod ka kalanaad goonj raha tha. main khada tha us chhote phuhaare ke paas, jahaan ek ladaka chupachaap sharaab peene vaalon ko dekh raha tha. usake gale mein phate kurate ke oopar se ek motee-see soot kee rassee padee thee aur jeb mein kuchh taash ke patte the. usake munh par gambheer vishaad ke saath dhairy kee rekha thee. main usakee or na jaane kyon aakarshit hua. usake abhaav mein bhee sampannata thee. mainne poochha, ”kyon jee, tumane isamen kya dekha?”

”mainne sab dekha hai. yahaan choodee phenkate hain. khilaunon par nishaana lagaate hain. teer se nambar chhedate hain. mujhe to khilaunon par nishaana lagaana achchha maaloom hua. jaadoogar to bilakul nikamma hai. usase achchha to taash ka khel main hee dikha sakata hoon.” usane badee pragalbhata se kaha. usakee vaanee mein kaheen rookaavat na thee .

mainne poochha, ”aur us parade mein kya hai? vahaan tum gae the?”

”nahin, vahaan main nahin ja saka. tikat lagata hai.”

mainne kaha, ”to chalo main vahaan par tumako liva chaloon.” mainne man-hee-man kaha, ”bhaee! aaj ke tumheen mitr rahe.”

usane kaha, ”vahaan jaakar kya keejiega ? chalie, nishaana lagaaya jae .”

mainne usase sahamat hokar kaha, ”to phir chalo, pahale sharabat pee liya jae.” usane sveekaar-soochak sir hila diya.

manushyon kee bheed se jaade kee sandhya bhee vahaan garm ho rahee thee. ham donon sharabat peekar nishaana lagaane chale. raah mein hee usase poochha, ”tumhaare ghar mein aur kaun hai?”

”maan aur baaboojee.”

”unhonne tumako yahaan aane ke lie mana nahin kiya?”

”baaboojee jel mein hain .”

”kyon ?”

”desh ke lie .” vah garv se bola.

”aur tumhaaree maan ?”

”vah beemaar hai .”

”aur tum tamaasha dekh rahe ho ?”

usake munh par tiraskaar kee hansee phoot padee. usane kaha, ”tamaasha dekhane nahin, dikhaane nikala hoon. kuchh paise le jaoonga, to maan ko pathy doonga. mujhe sharabat na pilaakar aapane mera khel dekhakar mujhe kuchh de diya hota, to mujhe adhik prasannata hotee !”

main aashchary se us terah-chaudah varsh ke ladake ko dekhane laga .

”haan, main sach kahata hoon baaboojee ! maanjee beemaar hain, iseelie main nahin gaya.”

”kahaan ?”

”jel mein ! jab kuchh log khel-tamaasha dekhate hee hain, to main kyon na dikhaakar maan kee dava karoon aur apana pet bharoon .”

mainne deergh ni:shvaas liya . chaaron or bijalee ke lattoo naach rahe the . man vyagr ho utha . mainne usase kaha, ”achchha chalo, nishaana lagaaya jae .”

ham donon us jagah par pahunche, jahaan khilaune ko gend se giraaya jaata tha. mainne baarah tikat khareedakar us ladake ko die .

vah nikala pakka nishaanebaaz. usakee koee gend khaalee nahin gayee. dekhanevaale dang rah gae. usane baarah khilaunon ko bator liya, lekin uthaata kaise ? kuchh meree roomaal mein bandhe, kuchh jeb mein rakh lie gae.

ladake ne kaha, ”baaboojee, aapako tamaasha dikhaoonga. baahar aaie, main chalata hoon .” vah nau-do gyaarah ho gaya. mainne man-hee-man kaha, ”itanee jaldee aankh badal gaee.”

main ghoomakar paan kee dukaan par aa gaya. paan khaakar badee der tak idhar-udhar tahalata dekhata raha. jhoole ke paas logon ka oopar-neeche aana dekhane laga. akasmaat kisee ne oopar ke hindole se pukaara, ”baaboojee !”

mainne poochha, ”kaun?”

”main hoon chhota jaadoogar.”

kalakatta ke suramy botaanikal- udyaan mein laal kamalinee se bharee huee ek chhotee-see jheel ke kinaare ghane vrkshon kee chhaaya mein apanee mandalee ke saath baitha hua main jalapaan kar raha tha. baaten ho rahee theen . itane mein vahee chhota jaadoogar dikhaee pada . haath mein chaarakhaane ka khaadee ka jhola, saaph jaanghiya aur aadhee baanhon ka kurata . sir par meree roomaal soot kee rassee se bandhee huee thee . mastaanee chaal mein jhoomata hua aakar vah kahane laga –

”baaboojee, namaste! aaj kahie to khel dikhaoon .”

”nahin jee, abhee ham log jalapaan kar rahe hain.”=

”phir isake baad kya gaana-bajaana hoga, baaboojee ?”

”nahin jee– tumako…” krodh se main kuchh aur kahane ja raha tha. shreemateejee ne kaha, ”dikhalao jee, tum to achchhe aae. bhala, kuchh man to bahale.” main chup ho gaya, kyonki shreemateejee kee vaanee mein vah maan kee-see mithaas thee, jisake saamane kisee bhee ladake ko roka nahin ja sakata. usane khel aarambh kiya.

us din kaarnival ke sab khilaune usake khel mein apana abhinay karane lage. bhaaloo manaane laga. billee roothane lagee. bandar ghudakane laga.

gudiya ka byaah hua. gudda var kaana nikala. ladake kee vaachaalata se hee abhinay ho raha tha. sab hansate-hansate lot-pot ho gae.

main soch raha tha. baalak ko aavashyakata ne kitana sheeghr chatur bana diya. yahee to sansaar hai.

taash ke sab patte laal ho gae. phir sab kaale ho gae. gale kee soot kee doree tukade-tukade hokar jud gaee. lattoo apane se naach rahe the. mainne kaha, ”ab ho chuka. apana khel bator lo, ham log bhee ab jaenge .”

shreematee jee ne dheere se use ek roopaya de diya. vah uchhal utha.

mainne kaha, ”ladake !”

”chhota jaadoogar kahie. yahee mera naam hai. isee se meree jeevika hai .”

main kuchh bolana hee chaahata tha, ki shreemateejee ne kaha, ”achchha, tum is roope se kya karoge ?”

”pahale bharapet pakaudee khaoonga. phir ek sootee kambal loonga .”

mera krodh ab laut aaya. main apane par bahut kruddh hokar sochane laga, ”oh ! kitana svaarthee hoon main. usake ek roopaya paane par main eershya karane laga tha na !”

vah namaskaar karake chala gaya. ham log lata-kunj dekhane ke lie chale.

us chhote-se banaavatee jangal mein sandhya saany-saany karane lagee thee. astaachalagaamee soory kee antim kiran vrkshon kee pattiyon se vidaee le rahee thee. ek shaant vaataavaran tha. ham log dheere-dheere motar se haavada kee or aa rahe the.

rah-rahakar chhota jaadoogar smaran hota tha. tabhee sachamuch vah ek jhopadee ke paas kambal kandhe par daale khada tha . mainne motar rokakar usase poochha, ”tum yahaan kahaan ?”

”meree maan yaheen hai na . ab use aspataal vaalon ne nikaal diya hai.” main utar gaya. us jhompadee mein dekha to ek stree chithadon se ladee huee kaanp rahee thee.

chhote jaadoogar ne kambal oopar se daalakar usake shareer se chimatate hue kaha,

”maan.”

meree aankhon mein aansoo nikal pade.

bade din kee chhuttee beet chalee thee. mujhe apane aaphis mein samay se pahunchana tha. kalakatte se man oob gaya tha. phir bhee chalate-chalate ek baar us udyaan ko dekhane kee ichchha huee. saath-hee-saath jaadoogar bhee dikhaee pad jaata, to aur bhee… main us din akele hee chal pada. jald laut aana tha.

das baj chuke the. mainne dekha, us nirmal dhoop mein sadak ke kinaare ek kapade par chhote jaadoogar ka rangamanch saja tha. main motar rokakar utar pada. vahaan billee rooth rahee thee. bhaaloo manaane chala tha. byaah kee taiyaaree thee, yah sab hote hue bhee jaadoogar kee vaanee mein vah prasannata kee taree nahin thee. jab vah auron ko hansaane kee cheshta kar raha tha, tab jaise svayan kaanp jaata tha. maano usake roen ro rahe the. main aashchary se dekh raha tha. khel ho jaane par paisa batorakar usane bheed mein mujhe dekha. vah jaise kshanabhar ke lie sphoortimaan ho gaya. mainne usakee peeth thapathapaate hue poochha, ”aaj tumhaara khel jama kyon nahin?”

”maan ne kaha hai ki aaj turant chale aana. meree ghadee sameep hai.” avichal bhaav se usane kaha.

”tab bhee tum khel dikhalaane chale aae !” mainne kuchh krodh se kaha. manushy ke sukh-dukh ka maap apana hee saadhan to hai. usake anupaat se vah tulana karata hai.

usake munh par vaheen parichit tiraskaar kee rekha phoot padee.

usane kaha, ”na kyon aata !”

aur kuchh adhik kahane mein jaise vah apamaan ka anubhav kar raha tha.

kshanabhar mein mujhe apanee bhool maaloom ho gaee . usake jhole ko gaadee mein phenkakar use bhee baithaate hue mainne kaha, ”jaldee chalo .” motar vaala mere batae hue path par chal pada .

kuchh hee minaton mein main jhompade ke paas pahuncha. jaadoogar daudakar jhompade mein maan-maan pukaarate hue ghusa . main bhee peechhe tha, kintu stree ke munh se, ‘be…’ nikalakar rah gaya. usake durbal haath uthakar gir gae. jaadoogar usase lipata ro raha tha, main stabdh tha. us ujjval dhoop mein samagr sansaar jaise jaadoo-sa mere chaaron or nrty karane laga.

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