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दादा पोता की कहानी

क्या हुआ दद्दू आज प्रात: भ्रमण के लिए नहीं गए।गोलू की मासूमियत भरे प्रश्न से दादाजी की आंखे डबडबा गई।अपने नन्हे पोते की बात सुनकर उनकी आंखो से आंसू छलक आए।अरे तू है ना पोता,मेरा छड़ी। कहकर गले से लगा लिया। अरे! ये क्या आपकी छड़ी तो टूट गई है दद्दू। कोई नहीं मैं बाबूजी से कहूंगा वो नई छड़ी ला देंगे। रहने दो तुम कुछ मत कहना।

उसने अपने पिताजी से यह सारा बात बताया। गोलू की मां बोली ,इनका खर्चा भी दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। कभी इनका चश्मा टूट जाता है तो कभी इनका छड़ी। पैसे तो पेड़ पर से टपकते हैं ना, जो हाथ लगाया तोड़ लिया। गोलू ने सोचा अब दादाजी बिना छड़ी के कभी बाहर नहीं जा पाएंगे।

एक दिन गोलू ने टीवी पर फेवीक्विक का विज्ञापन देखा। अम्मा ने उसे पांच रुपए आइसक्रीम खाने के लिए दिए थे। गोलू उस पैसे से किराने की दुकान पर गया और बोला अंकल जी आपके पास फेवीक्विक है? दुकानदार बोला हां बेटा जी है! गोलू फिर दोबारा पूछा अंकल जी क्या इससे वाकई सभी चीजें चिपक जाती है? हां बेटा जी यह पांच रुपए का सामान बड़े काम की चीज है। यह सुनकर गोलू खुश हो गया। खुशी-खुशी झूमता हुआ वह घर को गया।

दादाजी के छड़ी के दो टुकड़ों को वो फेवीक्विक लगा चिपकाने का प्रयास करने लगा।छड़ी तो नहीं चिपका उसकी हाथों की उंगलियां बुरी तरह चिपक गई।अब गोलू रोने लगा, दद्दू मेरे हाथों की उंगलियां ” क्या हुआ गोलू?” दादाजी समझ गए।वो धीरे-धीरे लड़खड़ाते हुए कदमों से बहुरानी के पास गए,आवाज लगाया बहु ओ बहु ! बहुरानी मन ही मन सोचती है ये मरे तो हमें आराम आए ! बोलती है ,अब क्या चाहिए ? चैन से हमें क्यों जीने नहीं देते?

थोड़ा गर्म पानी चाहिए।गोलू की उंगलियां चिपक गई है।झट से वो दौड़ती हुई ,मां अपने लाल के पास गई। मां बोली क्या जरूरत थी ? तुम्हे क्या जरूरत थी ऐसा करने को ? आपको बताया तो था। आपको पता है, दादाजी कितने दिनों से बाहर नहीं गए!कहते हुए हुए उसकी आंखो से आंसू निकल आए। मां ने फफक कर अपने कलेजे के टुकड़े को गले से लगा लिया।शाम को गोलू के पिता को गोलू की मां ने आज दिन का सारांश अपने शब्दो में सुनाया।

अगले दिन बाऊजी-बाऊजी कहते हुए,उनको गोलू की मां आवाज लगा रही थी।क्या हुआ बहु? गोलू के दादा से गोलू की मां ने कहा,मुझे माफ कीजिएगा और ये रही आपकी छड़ी ।गोलू अपनी दादाजी की हाथों में नई छड़ी देख काफी खुश हुआ।अब दादाजी पहले की तरह प्रातःभ्रमण को जाएंगे।

अनित्या सौरव
पटना निवासी द्वारा पूर्ण मौलिक रचना(१७.०७.२०२३)

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