किसी छोटे से गांव में सोमदत्त नामक एक निर्धन ब्राह्मण रहता था। वह कर्मकांड, ज्योतिष आदि में बहुत योग्य था। किंतु आजीविका हेतु भिक्षाटन ही उसका एकमात्र आश्रय था।
एक बार बरसात के मौसम में वह दूर के गांव में किसी से मिलने गया था। वहां से वापस लौटने में अंधेरा हो गया। अचानक बरसात भी शुरू हो गयी। उसका घर अभी काफी दूर था। लेकिन उस जगह से पास में ही ब्राह्मण के एक रिश्तेदार का घर था।
उसने वह रात अपने रिश्तेदार के घर में बिताने का निश्चय किया। सोमदत्त का रिश्तेदार सम्पन्न व्यक्ति था। उसने सोमदत्त की अच्छी आवभगत की। भोजनोपरांत उसने सोमदत्त का बिस्तर अपने परिवार के साथ ही एक बड़े से बरामदे में लगाया।
सोमदत्त, रिश्तेदार, उसके दो पुत्र और पत्नी सब लोग बातें करते करते सो गए। ब्राह्मण को जल्दी जागने की आदत थी। इसलिए वह रोज की भांति ब्रह्ममुहूर्त में ही जाग गया।
अचानक उसने देखा कि कहीं से एक सांप रेंगता हुआ गृहस्वामी के बिस्तर के पास गया और उसे डंस लिया। उसके बाद सांप ने उसके दोनों पुत्रों और पत्नी को भी डंस लिया और चुपचाप वहां से निकल गया।
ब्राह्मण ने सोचा कि सांप किसी दबाव या खतरे को देखकर ही काटते हैं। लेकिन इसने सोते हुए पूरे परिवार को डंसा और मुझे छोड़ दिया, यह सांप नहीं कोई और है। इसका पीछा करके पता लगाना चाहिए।
इसके बाद वह सांप किनारे आया और एक ब्राह्मण के रूप में बदल गया। यह सब देखकर सोमदत्त ने उस ब्राह्मण के पैर पकड़कर कहा- “महाराज, आप कौन हैं ?” ब्राह्मण ने हंसकर उत्तर दिया- “तुम इतने समय से मेरे पीछे हो और इतना सब देखकर भी क्या तुम नहीं समझे कि मैं कौन हूँ ?”
सोमदत्त ने न में सिर हिलाया। तब ब्राह्मण बोला-
सोमदत्त इस ज्ञान से बहुत ही अभिभूत हुआ और हाथ जोड़कर बोला, “महाराज ! कृपया बताइए कि मेरी मृत्यु कब और कैसे होगी ?” काल भगवान बोले, “मृत्यु का समय बताने का मुझे अधिकार नहीं है। किंतु मैं तुम्हें इतना बता सकता हूँ कि तुम्हारी मृत्यु मगर के निमित्त से होगी। अब तुम यहाँ से उत्तर दिशा की ओर जाओ, वहीं तुम्हारा भाग्योदय होगा।”
काल भगवान को प्रणाम करके सोमदत्त उत्तर दिशा की ओर चल पड़ा। चलते चलते वह एक नगर में पहुंचा। उस नगर के राजा के कोई संतान नहीं थी। इसलिए वह नगर में आने वाले प्रत्येक विद्वान ब्राह्मण को दरबार में बुलाकर उनसे संतान प्राप्ति का उपाय पूछता था।
सोमदत्त को भी दरबार में बुलाया गया। सोमदत्त विद्वान ज्योतिषी था। उसने गणना करके राजा को बताया कि ठीक बारह मास बाद उसे पुत्र की प्राप्ति होगी। उसके दृढ़ वचनों को सुनकर राजा को आशा जगी। उसने सोमदत्त को अपने यहाँ रोक लिया।
उसके भोजन एवं रहने का उचित प्रबंध कर दिया। ठीक बारह माह बाद राजा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। इससे सोमदत्त का सम्मान दरबार में बढ़ गया। राजा ने उसे राजपुरोहित बना दिया।
अब सोमदत्त ठाठ-बाठ के साथ रहने लगा। लेकिन उसे काल भगवान की बताई बात सदैव याद रहती थी। इसलिए वह ऐसी किसी जगह नहीं जाता था। जहां जल इकट्ठा होता हो अर्थात जहां मगर के होने की आशंका हो। तालाब, नदी, कुआं, पोखर से वह दूर ही रहता था।
राजकुमार थोड़ा बड़ा हुआ तो उसकी शिक्षा की जिम्मेदारी भी उसे ही दी गयी। धीरे- धीरे राजकुमार और सोमदत्त में बड़ी घनिष्ठता हो गयी। जब राजकुमार बारह वर्ष का हुआ तो उसके यज्ञोपवीत संस्कार का समय आया। राजा ने राजपुरोहित सोमदत्त से यज्ञोपवीत संस्कार सम्पन्न
कराने को कहा।
यज्ञोपवीत संस्कार नदी में घुटनों तक जल में खड़े होकर सम्पन्न कराना होता था। इसलिए सोमदत्त ने विनम्रतापूर्वक मना कर दिया। उसने कहा कि यह दूसरे विद्वान करवा देंगे। लेकिन राजकुमार अड़ गए कि नहीं मेरा यज्ञोपवीत राजपुरोहित जी ही करवायेंगे अथवा होगा ही नहीं।
अब सोमदत्त के लिए बहुत दुविधा की घड़ी थी। राजा सोच रहा था कि राजपुरोहित क्यों मना कर रहे हैं ? वह सोमदत्त को एकांत में लेकर गया और वहां उनसे मना करने का कारण पूछा।
सोमदत्त ने पूरी बात बताई तब राजा बोला, “आप व्यर्थ चिंता करते हो। घुटनों तक पानी में मगर कहाँ से आ जायेगा ? फिर भी आपके संतोष के लिए मैं आपके चारों तरफ नंगी तलवार लिए सैनिकों का पहरा लगवा दूंगा। वे एक दूसरे से इस तरह सटकर खड़े होंगे कि मगर तो क्या एक मछली भी उन्हें पारकर आप तक नहीं पहुंच पाएगी।
सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम देखकर सोमदत्त यज्ञोपवीत संस्कार कराने को तैयार हो गया। निर्धारित दिन यज्ञोपवीत संस्कार नदी में प्रारम्भ हुआ। राजा ने सचमुच सुरक्षा का बहुत पुख्ता इंतजाम किया था। राजपुरोहित और राजकुमार के चारों ओर सैनिकों ने गोल घेरा बना रखा था।
वे इतने पास पास खड़े थे कि एक मेंढक भी उन्हें पारकर राजपुरोहित तक नहीं पहुंच सकता था। राजपुरोहित ने विधिवत यज्ञोपवीत संस्कार सम्पन्न कराया।
जैसे ही यज्ञोपवीत संस्कार पूर्ण हुआ। राजकुमार एक विशालकाय मगर में बदल गया साथ ही वहीं एक बड़ा सा गड्ढा बन गया। मगर बना राजकुमार राजपुरोहित को लेकर उस गड्ढे में समा गया।
सीख – Moral
इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि मृत्यु अटल है। कोई कितना भी प्रयत्न कर ले, मृत्यु से नहीं बच सकता। आयु पूर्ण हो जाने पर मृत्यु निश्चित है। मृत्यु से राम, कृष्ण आदि भी नहीं बच सके जोकि स्वयं ईश्वर के अवतार थे।