धीरे धीरे बांसुरी बजा जा रे कन्हैया
मैं ग्वालन बरसाने की अरे भला मैं ग्वालन बरसाने की
सिर पर घड़ा घड़ी पर गगरी
सूरत लगा ले पनघट की रे भला
सूरत लगा ली पनघट की
घड़ा उतार पार पर रख दिया
सूरत लगा ली खीचन की रे भला
सूरत लगा ली खीचन की
घड़ा उठाएं शीश पर रख लिया
सूरत लगा ली महलन की
रस्ते में मिल गए कन्हैया
घूंघट के पट खोल गुजरिया
हवा जो खा लो मधुबन की
घुंघट के पट ना खोलो कान्हा
लाज जाए मेरे दो कुल की
पहली लाज मेरी माई रे बाप की
दुजी लाज ससुराल घर की
तो है तो लाज अपने मोर मुकुट की
हमें लाज घूंघट पट की रे भला
हमें लाज घूंघट पट की…………..