मैनेजमेंट की शिक्षा प्राप्त एक युवा नौजवान की बहुत अच्छी नौकरी लग जाती है, उसे कंपनी की और से काम करने के लिए अलग से एक केबिन दे दिया जाता है।
जब उसकी बातेँ खत्म हो जाती हैँ तब जाकर वह उस साधारण व्यक्ति से पूछता है है कि तुम यहाँ क्या करनेँ आये हो?
वह आदमी उस युवा व्यक्ति को विनम्र भाव से देखते हुए कहता है , “साहब, मैँ यहाँ टेलीफोन रिपेयर करनेँ के लिए आया हुँ, मुझे खबर मिली है कि आप जिस टेलीफोन से बात कर रह थे वो हफ्ते भर से बँद पड़ा है इसीलिए मैँ इस टेलीफोन को रिपेयर करनेँ के लिए आया हूँ।”
इतना सुनते ही युवा व्यक्ति शर्म से लाल हो जाता है और चुप-चाप कमरे से बाहर चला जाता है। उसे उसके दिखावे का फल मिल चुका होता है.
कहानी का सार यह है कि जब हम सफल होते हैँ तब हम अपनेँ आप पर बहुत गर्व होता हैँ और यह स्वाभाविक भी है। गर्व करनेँ से हमे स्वाभिमानी होने का एहसास होता है लेकिन एक सी के बाद ये अहंकार का रूप ले लेता है और आप स्वाभिमानी से अभिमानी बन जाते हैं और अभिमानी बनते ही आप दुसरोँ के सामनेँ दिखावा करने लगते हैं ।
अतः हमें ध्यान रखना चाहिए कि हम चाहे कितने भी सफल क्यों ना हो जाएं व्यर्थ के अहंकार और झूठे दिखावे में ना पड़ें अन्यथा उस युवक की तरह हमे भी कभी न कभी शर्मिंदा होना पड़ सकता है।