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दिन में तारे !!

स्कूल से घर पहुंचते ही गोलू ने बस्ता सोफे पर पटका और हाथमुंह धोने चला गया, मां ने पुकारा..गोलू । जल्दी से मेज पर आओ, खाना लगा दिया है आओ। साथसाथ खाएंगे। ठीक है..गोलू ने कहा पर देर तक मेज पर नहीं आयामां का मन खटका, कहां है गोलू । वह स्नानघर की तरफ लपकी, पर गोलू वहां नहीं था, वह तो पीछे वाले कमरे का दरवाजा खोलकर झट नौ दो ग्यारह हो गया था।

उफ! गोलू फिर भाग निकलाबड़ा मनमौजी हो गया है यह लड़का, इसकी लगाम अब कसनी ही पड़ेगी, बड़बड़ाती हुई मां खाना खाने जा बैठी। दोतीन घंटे बीत गए, गोलू नहीं लौटा तो मां कमरे में जाकर आराम करने लगी। मां की आंख लग गई तब गोलू चुपके से घर में घुसामेज पर खाना लगा था, जल्दीजल्दी सब सफाचट करके फिर खेलने निकल गया।

मां उठी, खाना देखासब खत्म.समझ गई खा-पीकर बच्चू फिर रफूचक्कर हो गए। कितने ही दिनों से गोलू ऐसी हरकतें कर रहा था, मां खीज उठी, मन ही मन बोली-आज आने दो इसके पापा को, खूब नमकमिर्च लगाकर
शिकायत कलंगीडांट पड़ेगी, तो बच्चू की सिट्टीपिट्टी गुम हो जाएगी, हां, यही ठीक रहेगा, सोचती हुई मां रसोई के काम में लग गई।

गोलू महाराज का हाल ये कि भूख लगे तो घर में घुसो वरना खेलते रहो। खेलने से उसका जी नहीं भरता था, सारे बच्चे सांझ होने तक घर लौट आतेपर वह खेलने में मग्न रहता। रात घिरने को आ गईमां गोलू को खोजने मैदान की तरफ निकल गईआज कोई नहीं था गोलू जी थे और उनकी फुटबाल जिसे वहां,  पैरों से उछालते हुए वह अकेले ही मग्न , मां ने तीखे स्वर में कहा-गोलू।

अंधेरा घिर आया है, देखो बत्तियां भी जल गई हैं, आज क्या यहीं रैनबसेरा डालेगा। गोलू ने सुनामुस्कराया और झट फुटबाल उठाकर तेजी से घर की तरफ दौड़ा, मां पीछेपीछे आ रही थी, गोलू ने घर में आते ही फुटबाल एक
ओर रख दी, हाथमुंह धोकर निकला तो मां से बोला, “देखा मां मैं कितनी तेजी से घर आ गया, अब कुछ खाने को दो मां। मेरी अच्छी मां।

पर मां गुस्से से मुंह फुलाए काम पर लगी रही, कुछ न बोली, गोलू समझ गया, आज तो दाल गलने वाली नहीं, फिर भी मां के पास जाकर मक्खनबाजी करने लगा.मां भूख लगी है कुछ खाने को दो ना. ये खा, ले खा, मां ने तड़ातड़ दो तमाचे गोलू को जड़ दिएअब गोलू का पारा सातवें आसमान में चढ़ गया, उसने मेज पर रखी चीजों को पटका और फिर पैर पटकता हुआ खुद भी बाहर निकल गयागली में उसे रामू और श्यामू दोनों मिल गएवे भी गोलू के जैसे ही थे, दिन-रात मटरगश्ती करने वाले, गोलू ने पास जाकर कहा-रामू ! यार कुछ है जेब में।

चार-पांच रुपये और क्या! क्यों?

भूख लग रही है जोर , मां बहुत नाराज है, खाने को चांटे मिले हैं, दे दो यार कुछ उधारीकल ही लौटा देंगा।
चल ठीक है, श्यामू ने जेब से एक दस रुपये का नोट निकाला, ले तू भी क्या याद करेगा कि किस रईस से पाला पड़ा, पर कल लौटा जरूर हां, हां! पक्का, गोलू ने नोट लियाउसकी बांछे खिल गई वह चटपट बाजार की तरफ निकल गया, प्लेट भर चाट पकौड़ी खाई, एक गिलास ठंडा पानी पियाफिर मगन होकर गलियों में घूमने लगा, आज तो मैं भी मां को खूब सताऊंगामुझे मारा है मां ने. .सोचता हुआ गोलू दूर तक निकल गयारास्ते में उसे बीरू मिल गया, वह अपने पापा के साथ था, पापा बोले…इतनी रात गए तक तुम क्या कर रहे हो गोलू । घर जाओ ना, देखो दस बज गए हैं ।

दस बज गएअरे बाप रे। पापा तो घर आ चुके होंगे, आज तो खैर नहीं, सोचता हुआ गोलू सरपट भागने लगा।
घर में मां ने गोलू की शिकायत पापा से कर दी थी, पापा गुस्से में भरे बैठे थे। गोलू के आते ही दो थप्पड़ पापा ने भी जमा दिए बेचारा गोलू मार खाकर चुपचाप कमरे में चला गया और “होमवर्क” करने लगा।

गनीमत थी कि गोलू पढ़ने में तेज था। स्कूल जाने में कभी टालमटोल नहीं करता था। इसलिए मां उसकी ज्यादतियां भी सह लेती थी, मां तो चुप थी। पर बड़बड़ाते जा रहे थे, दिव्या! तुम्हारे लाड़प्यार ने इस लड़के का
पापा दिमाग खराब कर दिया है। तुम्हारा उस पर जरा भी अनुशासन नहीं है।

देखना यह किसी दिन ऐसा कुछ करेगा कि हमारी नाक कटवा देगा, अभी से यह ऐसा बंडलबाज हो गया है।
मां चुपचाप सब सुनती रही। पापा खूब देर तक बोलते रहे।

फिर खाना खाकर सोने चले गए। गोलू बाहर नहीं निकला तो मां ने उसका खाना जाकर उसकी मेज में रख दिया।
सुबह समय पर गोलू उठा, नहाधोकर तैयार हुआ, चुपचाप नाश्ता किया और टिफिन उठाकर बस पकड़ने बस स्टैंड पर जा खड़ा हुआ।

श्यामू और रामू दोनों वहां खड़े थे, देखते ही बोले-दस का नोट । अरे! मैं जल्दी में लाना भूल गया। दिन में दे देंगा पक्का. पक्का.बस आ गई तो तीनों बस में जा बैठेश्यामू बोला-दिन में पैसे नहीं लौटाए तो खाल उधेड़ , समझे।
इसकी नौबत ही नहीं आएगी । यार घर आते ही गोलू ने अपनी गुल्लक टटोलीदो रुपये थे।

चटोरा तो था ही, पैसे जमा क्या करता, अब क्या क। हां! आइडिया..बस गोलू हाथ मुंह धोकर मेज में जा बैठा-मां खाना दे दो।

क्या बात है आज तो बड़ी शराफत से पेश आ रहे हो। कल की मार से होश ठिकाने आ गए क्या? हां मां! गोलू चुपचाप खाने लगा, मां भी रसोई में खटरपटर करने लगी।

मां व्यस्त है देखकर गोलू भगवान जी के मंदिर की ओर बढ़ा झट थाल से एक दस का नोट खिसकाया और चुपचाप वापस मेज में बैठ गया, खा-पीकर वह चुपचाप पीछे के रास्ते से बाहर निकल गया। उसने जल्दी से
श्यामू को नोट पकड़ाया और घर के अंदर दबे पांव लौटा ही था कि.मां की छड़ी पीठ पर पड़ी.चोरी भी करने लगा तू तू क्या सोच रहा था मेरी नजर तुझ पर नहीं थी, मैंने तुझे मेज से उठकर जाते देखादस का नोट जेब में सरकाते देखाउसी समय कान खींचती पर तू चुपचाप खिसक गया ।

ले खा मार मां की छड़ी दनादन बरसने लगी.गोलू चिल्लाया…मां! मुझे माफ कर दो, अब ऐसा कभी नहीं करूगा।
चोरी करेगा, दिनभर आवारागर्दी करेगाघर से चुपचाप निकलेगा ।
.

..ले..ले.म की छड़ी चल पड़ीसुधर जा गोलू । मुझे तेरे पापा से भी क्या-क्या सुनना पड़ता है।
मां! अब मनमानी भी नहीं करूगा।

न….न. तुझे तो मारना ही पड़ेगा, डाट का कोई असर नहीं होता है ना.कैसा लड़का है ये.इसे तो अपना भलाबुरा भी नजर नहीं आता।
आ रहा है मां! सब नजर आ रहा है, अब तो मुझे दिन में तारे भी नजर आने लगे..गोलू रो पड़ा। चल हट। मां ने छड़ी छोड़ दी। गोलू झटपट अपने कमरे में जा बैठा। तौबा, तौबा, मेरी तौबा, रहा । वह बड़बड़ा था

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