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दो गांव की लड़ाई

दो अलग-अलग गांव के बीच एक तालाब था। जिसका पानी बहुत ही साफ़ और मीठा था। दोनों गाँव का नाम विजयनगर और संग्रामपुर था। गांव के लोग कभी-कभी उसमें से पानी पीने आया करते थे क्योंकि उनके भी गांव में उनका अपना-अपना तालाब था। एक बार गर्मी में उन दोनों गांव का तालाब सूख गया लेकिन गांव के बीच का तालाब नहीं सुखा। वह हमेशा भरा हुआ रहता था। ऐसे में दोनों गांव के लोग उस तालाब से पानी लेने आने लगे। इससे चलते एक दिन दोनों गांव के लोगों में लड़ाई हो गई और अब वे दोनों तालाब पर अपना हक जमाना चाहते थे।

ऐसे में दोनों गांव के मुखिया ने निर्णय लिया कि वह युध्द करके इसका फैसला करेंगे। ऐसे में दोनों मुखिया एक साधु के पास गए और उससे पूछा कि उन दोनों में से कौन जीतेगा? तब साधु ने कहां की विजय नगर के लोग जीत जाएंगे। यह सुनते ही संग्रामपुर के लोग उदास हो गए लेकिन फिर भी उन्होंने लड़ने का सोचा। अगले दिन दोनों के बीच लड़ाई हुई। विजय नगर के लोग ठीक से युध्द नहीं कर रहे थे क्योंकि साधु ने कहा था की वे लोग जीत जाएँगे। लेकिन संग्रामपुर के लोग पूरी ताकत लगाकर लड़ रहे थे।

लड़ते-लड़ते संग्रामपुर के लोग जीत गए। यह देखकर सारे लोग अचंभित थे कि साधु ने तो कहा था विजय नगर के लोग जीत जाएंगे। लेकिन उसके विपरीत संग्रामपुर के लोग जीत गए। तब दोनों गांव के लोग साधु के पास गए और उनसे इसका कारण पूछा। तब साधु ने बताया, “मैं नहीं जानता था की तुम दोनों में से कौन जीतने वाला है। मैंने तो बस यूं ही कह दिया था कि विजय नगर के लोग जीतेंगे। जंग में विजय नगर के लोगों ने ठीक से लड़ना भी जरूरी नहीं समझा। वे यह सोचकर बड़े आराम से जंग लड़ रहे थे कि वह जीत जाएंगे लेकिन उनका यही आत्मविश्वास उन्हें ले डुबा। इसीलिए घमंड कभी नहीं करना।”

यह कहानी हमें बताता है कि हमें कभी भी अत्यधिक आत्मा विश्वास नहीं करना चाहिए और घमंड नहीं करना चाहिए। इस कहानी से हमें यह भी पता चलता है कि हार के डर से पीठ दिखाकर भागना नहीं चाहिए। सच जानते हुए भी हमें परेशानी का डटकर सामना करना चाहिए।

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