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चन्दन के कोयले न बनाओ

*सुनसान जंगल में एक लकड़हारे से पानी का लोटा पीकर प्रसन्न हुआ राजा कहने लगा – हे पानी पिलाने वाले ! किसी दिन मेरी राजधानी में अवश्य आना, मैं तुम्हें पुरस्कार दूँगा, लकड़हारे ने कहा – बहुत अच्छा।**इस घटना को घटे पर्याप्त समय व्यतीत हो गया, अन्ततः लकड़हारा एक दिन चलता-फिरता राजधानी में जा पहुँचा और राजा के पास जाकर कहने लगा – मैं वही लकड़हारा हूँ, जिसने आपको पानी पिलाया था, राजा ने उसे देखा और अत्यन्त प्रसन्नता से अपने पास बिठाकर सोचने लगा कि- इस निर्धन का दुःख कैसे दूर करुँ ? अन्ततः उसने सोच-विचार के पश्चात् चन्दन का एक विशाल उद्यान(बाग) उसको सौंप दिया। लकड़हारा भी मन में प्रसन्न हो गया। चलो अच्छा हुआ। इस बाग के वृक्षों के कोयले खूब होंगे, जीवन कट जाएगा।*

*यह सोचकर लकड़हारा प्रतिदिन चन्दन काट-काटकर कोयले बनाने लगा और उन्हें बेचकर अपना पेट पालने लगा। थोड़े समय में ही चन्दन का सुन्दर बगीचा एक वीरान बन गया, जिसमें स्थान-स्थान पर कोयले के ढेर लगे थे। इसमें अब केवल कुछ ही वृक्ष रह गये थे, जो लकड़हारे के लिए छाया का काम देते थे।*

*राजा को एक दिन यूँ ही विचार आया। चलो, तनिक लकड़हारे का हाल देख आएँ। चन्दन के उद्यान का भ्रमण भी हो जाएगा। यह सोचकर राजा चन्दन के उद्यान की और जा निकला। उसने दूर से उद्यान से धुआँ उठते देखा। निकट आने पर ज्ञात हुआ कि चन्दन जल रहा है और लकड़हारा पास खड़ा है। दूर से राजा को आते देखकर लकड़हारा उसके स्वागत के लिए आगे बढ़ा। राजा ने आते ही कहा – भाई ! यह तूने क्या किया ? लकड़हारा बोला – आपकी कृपा से इतना समय आराम से कट गया। आपने यह उद्यान देकर मेरा बड़ा कल्याण किया। कोयला बना-बनाकर बेचता रहा हूँ। अब तो कुछ ही वृक्ष रह गये हैं। यदि कोई और उद्यान मिल जाए तो शेष जीवन भी व्यतीत हो जाए।*

*राजा मुस्कुराया और कहा – अच्छा, मैं यहाँ खड़ा होता हूँ। तुम कोयला नहीं, प्रत्युत इस लकड़ी को ले-जाकर बाजार में बेच आओ। लकड़हारे ने दो गज [लगभग पौने दो मीटर] की लकड़ी उठाई और बाजार में ले गया। लोग चन्दन देखकर दौड़े और अन्ततः उसे तीन सौ रुपये मिल गये, जो कोयले से कई गुना ज्यादा थे, लकड़हारा मूल्य लेकर रोता हुआ राजा के पास आय और जोर-जोर से रोता हुआ अपनी भाग्यहीनता स्वीकार करने लगा।*

*मेरी कहानी यहीं रुक जाती है ।*

*इस कथा में चन्दन का बाग मनुष्य का शरीर और हमारा एक-एक श्वास चन्दन के वृक्ष हैं पर अज्ञानता वश हम इन चन्दन को कोयले में तब्दील कर रहे हैं। लोगों के साथ बैर, द्वेष, क्रोध, लालच, ईर्ष्या, मनमुटाव, को लेकर खिंच-तान आदि की अग्नि में हम इस जीवन रूपी चन्दन को जला रहे हैं। जब अंत में स्वास रूपी चन्दन के पेड़ कम रह जायेंगे तब अहसास होगा कि व्यर्थ ही अनमोल चन्दन को इन तुच्छ कारणों से हम दो कौड़ी के कोयले में बदल रहे थे, पर अभी भी देर नहीं हुई है हमारे पास जो भी चन्दन के पेड़ बचे है उन्ही से नए पेड़ बन सकते हैं। आपसी प्रेम, सहायता, सौहार्द, शांति,भाईचारा, और विश्वास, के द्वारा अभी भी जीवन सँवारा जा सकता है।

In English

In a deserted forest, the king was delighted to drink a lotus of water from a sticker – O drinkers! Must come in my capital someday, I will give you a reward, the logger said – very good. ** The time was spent enough time, the logger arrived in the capital one day and went to the king and started saying – I am the same logger, who had given you water, the king saw him and sat with great happiness, thinking about how to remove the pain of this poor man? Eventually, he handed over a huge garden (garden) to Chandan after thinking about it. The logger was also pleased with the mind. Let’s be good The trees of this garden will be full of coal, life will be cut off. *

* Thinking, the logger started cutting churning every day and started selling his stomach. In a short while, the beautiful garden of sandalwood became a deserted place, where there was a pile of coal in place of place. In it, only a few trees were left, which provided shade for woodcutting. *

* One day the king got the idea. Come on, see the story of a logger. Touring of Chandan’s garden will also be visited. Thinking that Raja went to the garden of Chandan and went out. He saw the smoke rising from the garden far away. On coming closer, it is known that the sandalwood is burning and the logger stands beside it. Seeing the King coming from far away, the logger went ahead to welcome him. As the King came, he said – Brother! What have you done ? Lakhhara said – By your grace so much time has been cut off comfortably. You gave me this garden by giving me great welfare. I am selling coal by making Now there are only some trees left. If any other garden is found, the remaining life will also be lost.

* The king smiled and said – Okay, I stand here. You do not get coal, but immediately take this wood and sell it in the market. The woodcutter picked up two yards [about a quarter to two meters] of wood and took it to the market. People ran on seeing the sandalwood and finally got three hundred rupees, which was many times more than coal, came to the king crying with a woodcutter price and cried loudly accepting his lucklessness. 

* My story stops here.

* In this story, the garden of sandalwood is the body of man and every breath of ours is a tree of sandalwood but under ignorance we are turning these sandalwood into coal. In the fire of hatred, envy, anger, greed, jealousy, estrangement with people, we are burning this life-like sandalwood. When in the end the sandalwood trees will be reduced, then it will be realized that we were unnecessarily turning precious sandal into coal for two frivolous reasons, but it is not too late for whatever sandalwood tree we have. New trees can be formed from them.Life can still be maintained by mutual love, support, harmony, peace, brotherhood, and faith.



 

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