मानव स्वभाव पर बुद्ध कहानी
आचार्य चाणक्य ने कहा था कि इंसान को ज्यादा सीधा भी नहीं होना चाहिए, क्योंकि अगर हम जंगल में जाकर देखे तो, जान पाएंगे की सीधे पेड काट दिए जाते हैं जबकि टेढे मेढे पेड छोड दिए जाते हैं। तो आज की हमारी ब्लॉग पोस्ट भी इसी बारे में है कि ज्यादा अच्छा बना बुरा क्यों होता है और आखिर क्यों एक अच्छा इंसान हमेशा दुखी और परेशान रहता है तो ये सब हम जानेगे एक कहानी के माध्यम से,
एक बार एक व्यक्ति बौद्ध भिक्षु के पास आता है और कहता है मास्टर मैं एक बहुत ही सीधा और अच्छा व्यक्ति हूँ। इतना सीधा ही आपने आज से पहले ही मुझसे सीधा व्यक्ति देखा होगा। मैं हमेशा ही सबकी मदद करने की कोशिश करता हूँ। सबको खुश रखने की कोशिश करता हूँ, लेकिन सब मेरा फायदा उठाते हैं, मेरा मजाक बनाते हैं और कोई भी मुझे गंभीरता से नहीं लेता। यहाँ तक की मेरे घर वाले भी मेरी इज्जत नहीं करते और ना ही घर के किसी महत्वपूर्ण काम में मेरी राय लेते। जबकि अपने दोनों भाइयों की तुलना में मैं सबसे ज्यादा काम भी करता हूँ। घरवालों की बात भी मानता हूँ। माँ बाप की सेवा भी करता हूँ और घर के सभी लोगों को खुश रखने की कोशिश करता हूँ। लेकिन मेरी भावनाओं को कोई भी नहीं समझता। सब मेरा फायदा उठाते हैं। आखिर मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है?
व्यक्ति की पूरी बात ध्यान से सुनने के बाद बौद्ध भिक्षु बोलीं किसने कहा की तुम एक सीधे और अच्छे व्यक्ति हो। असल में तुम एक अच्छे व्यक्ति होने का दिखावा कर रहे हो। ये सुन उस व्यक्ति को बुरा महसूस हुआ लेकिन वो फिर भी बौद्ध भिक्षु की बात सुनता रहा। बौद्ध भिक्षु ने उससे पूछा, अच्छा बताओ की तुम हर व्यक्ति की मदद क्यों करना चाहते हो? क्यों तुम सब को खुश रखने की कोशिश करते हो? व्यक्ति ने कहा ताकि सामने वाला मुझे भी खु़श रखे। मेरी बात मानी, मेरी इज्जत करे, मेरी भावनाओं को समझें और मुझे एक अच्छा इंसान माने।
बौद्ध भिक्षु ने कहा बस यही तुम्हारी समस्या है कि तुम दूसरों को खुश रखने का प्रयास कर रहे हो, ताकि वो भी तुम्हें खुश रखे। तुम अपनी खुशी दूसरों के अंदर ढूंढ रहे हो। तुम दूसरों की नजरों में अच्छा और खुद की तारीफ सुनने के लिए सामनेवाली की जी हजूरी कर रहे हो और फिर उम्मीद कर रहे हो की सामने वाला भी तुम्हारे साथ ऐसा ही व्यवहार करेगा तो ऐसा नहीं होता, क्योंकि कोई भी ऐसे व्यक्ति को गंभीरता से नहीं लेता जो लोगों की हर बात में हाँ में हाँ मिलाता है। अब मैं तुम्हें कुछ ऐसी आदतें बताता हूँ। तो तुम और तुम्हारे जैसे खुद को अच्छा मानने वाले लोगों के अंदर होती हैं।
पहली आदत खुद को अच्छा मानने वाले लोग ये दिखाने की कोशिश करते हैं कि वो लोगों का ध्यान रखते हैं। उन्हें लोगों की चिंता है इसीलिए वह सबकी मदद करने पहुँच जाते हैं। फिर चाहे सामने वाले को उनकी मदद की जरूरत हो या ना हो। दूसरी
दूसरी आदत खुद को अच्छा मानने वाले लोग दूसरों से खुद की तारीफ के भूखे होते हैं। इसीलिए वो ज्यादातर मौकों पर वही काम करते हैं जिससे सामने वाला खुश हो और उनकी तारीफ करें। अगर उन्हें लगता है कि किसी काम से सामने वाला नाराज हो जाएगा तो वह उस काम को हाथ तक नहीं लगाते।
तीसरी आदत खुद को अच्छा मानने वाले लोगों को लगता है कि उन्हें अपनी कमियों और कमजोरियों को दूसरे लोगों से छुपाना चाहिए, क्योंकि उन्हें लगता है कि अगर दूसरों को उनकी कमियों और गलतियों के बारे में पता चल गया तो लोग उनका मजाक बनाएंगे, उनकी बेजती करेंगे, उन पर गुस्सा होंगे और उन्हें एक कमजोर व्यक्ति मानेंगे।
चौथी आदत अच्छे लोग खुद की जरूरतों, खुद की प्राथमिकताओ को सबसे ऊपर रखने से डरते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि ऐसा करने से ही दूसरे लोग उन्हें स्वार्थी समझेंगे और फिर वो लोगों की नजरों में एक अच्छे इंसान नहीं रह जाएंगे।
पांचवीं आदत खुद को अच्छा समझने वाले लोग मानते हैं कि वो केवल तभी खुश रह सकते हैं जब उनके आसपास का हर इंसान खुश रहें। इसीलिए वो अपने आसपास के हर व्यक्ति को खुश रखने की कोशिश करते हैं। अब तुम्हें सुनने में लग सकता है की इन आदतों में क्या बुराइ है।
सबका भला करना तो अच्छी बात है, लेकिन समस्या यह है कि खुद को अच्छा समझने वाले लोग असल में जैसे दिखते हैं, वैसे होते नहीं। ये अंदर से कुछ और ही होते है।
जैसे कि पहला अच्छाई का दिखावा करने वाले लोग ज्यादातर मौकों पर ईमानदार नहीं हो। क्योंकि वो अच्छा बनने के चक्कर में दूसरों की बुराइ को भी छिपा देते हैं। सामने वाले को कभी भी उसकी गलतियाँ नहीं बताते और केवल वही बोलते और करते हैं जिससे सामने वाला खुश रहें।
दूसरा, खुद को अच्छा समझने वाले लोग दूसरों को खुश करने के पीछे इतने पागल होते हैं कि वो कई बार जरूरी और दूसरों के लिए महत्वपूर्ण बातों और कामों को भी उनसे छिपाकर रखते हैं और उन्हें बताते नहीं ताकि सामने वाला उनसे खु़श रहे।
तीसरा अच्छे लोग अपनी जरूरतों और कामों को महत्त्व नहीं देते। इसीलिए ये दूसरों से सीधे अपना काम करवाने से घबराते हैं, जिसकी वजह से ये दूसरे लोगों के साथ चालाकी करने की कोशिश करते हैं। अपने जरूरी कामों को करवाने के लिए भी जैसे की सामने वाले की चापलूसी करना या फिर उसके किसी काम के बहाने अपना काम भी कर लेना।
चौथा खुद को अच्छा मानने वाले लोग केवल पानी की उम्मीद से ही कुछ देते हैं। यह इस बात का दिखावा तो करते हैं कि यह लोगों की मदद करना चाहते हैं, लेकिन यह मदद सिर्फ इसीलिए करते हैं ताकि सामने वाला उनकी तारीफ करें। इन्हें अच्छा इंसान समझे और जरूरत पडने पर इनकी भी मदद करें। लेकिन अगर इन्हें मदद के बदले मदद नहीं मिलती तो ये गुस्सा हो जाते हैं। सामने वाले से अंदर ही अंदर नफरत करने लगते हैं और उससे बदला लेने का मौका ढूंढने लगते हैं।
पांचवा खुद को अच्छा दिखाने वाले लोग दूसरों को ना नहीं बोल पाते, उन्हें मना नहीं कर पाते और दूसरों के काम करने के चक्कर में ये अपने और अपने परिवार के जरूरी कामों को भी पूरा नहीं कर पाते।
छठा अच्छे लोगों को लगता है। ये सभी उन्हें पसंद करें, सभी इनसे प्यार करे, जिससे दूसरे लोगों को इनका दोस्त बनने या इनके साथ संबंध रखने में दिक्कत होती है क्योंकि यह हर किसी के सबसे पसंदीदा इंसान बनना चाहते हैं।
यह सारी बातें सुनने के बाद उस व्यक्ति ने बौद्ध भिक्षु से कहा तो आपके कहने का मतलब है कि हम एक अच्छे इंसान न बनें बल्कि एक बुरे इंसान बन जाए और लोगों को फायदा उठाए। बौद्ध भिक्षु ने कहा, नहीं, मैं तुम्हें बुरा इंसान बनने के लिए नहीं कह रहा, लेकिन हाँ तुम्हें बहुत सीधा इंसान भी नहीं बनना। अब मैं तुम्हें बताता हूँ कि एक व्यक्ति को कैसा इंसान बनने का प्रयास करना चाहिए।
दोस्तों इंसानी स्वभाव और उसकी अच्छाई वो बुराइ के बारे में अगर सबसे ज्यादा किसी ने बात की है तो वो है अखंड भारत के निर्माता राजनीति के महापंडित आचार्य चाणक्य, जिन्होंने अपनी किताब चाणक्यनीति में इंसानी स्वभाव और दुनिया भर की तमाम चीजों के बारे में विस्तार से चर्चा की है। वो इतने बडे ज्ञानी और दूरद्रष्टा थे कि आज हजारों साल बाद भी उनके द्वारा कही गई एक एक बात हमारे जीवन में पूरी सटीकता के साथ लागू होती है। बौद्ध भिक्षु ने कहना शुरू किया, तुम्हें एक सीधा या दूसरों की नजरों में अच्छा इंसान बनने की तुलना में एक सुलझा हुआ इंसान बनने का प्रयास करना चाहिए।
एक सुलझा हुआ इंसान वो होता है। जिसे सबसे अच्छा इंसान बनने का कोई शौक नहीं है। वो जैसा है वैसा ही खुद को पसंद करता है। वो जानता है कि वो एक इंसान हैं और उसमें बहुत सी कमियां हैं और वह अपनी कमियों को स्वीकार्यता भी है। एक सुलझा हुआ इंसान ये भी अच्छे से जानता है कि उसकी और उसके परिवार की कुछ महत्वपूर्ण जरूरतें हैं, जिन्हें उसे ऊपर रखना होगा, वरना उसके साथ साथ उसके परिवार का जीवन भी परेशानियों में पड जाएगा। हो सकता है कि उसकी ऐसी सोच की वजह से उसके आसपास के लोग उसके मित्र या रिश्तेदार उससे नाराज हो जाये। लेकिन वो इसे भी स्वीकारता है।
यहाँ पर बात स्वार्थी होने की नहीं, बल्कि जीवन की सच्चाई को स्वीकारने की है, क्योंकि तुम बुद्ध नहीं हो गए हो की तुम्हारी कोई इच्छा ही नहीं है। किसी से कोई उम्मीद नहीं है या कोई जरूरतें शेष नहीं रही। तुम एक साधारण इंसान हो और एक साधारण इंसान की सोच के साथ अगर तुम सब को खुश रखने का प्रयास करोगे, तो तुम हमेशा दुखी रहोगे, क्योंकि तुम्हारी भी सामने वाले से उम्मीदें बढेंगी और जब वो उम्मीदें पूरी नहीं होंगी तो तुम दुखी हो जाओगे।
इसीलिए जो इंसान ये कहता है कि मैं सबकी मदद करूँगा, सबको खुश रखूँगा और मुझे बदले में किसी से कुछ भी नहीं चाहिए। यहाँ तक की अपनी तारीफ भी नहीं, तो पहले उस इंसान को बुद्धत्व प्राप्त कर लेना चाहिए, क्योंकि एक आत्म ज्ञान को प्राप्त व्यक्ति ही किसी से कोई उम्मीद नहीं रखता, पर क्योंकि आत्म ज्ञान को प्राप्त करना सबके बस की बात नहीं है। इसीलिए तुम्हें इस जीवन के सत्य को स्वीकारना होगा और खुद को शोषण का शिकार वह दुखी होने से बचाने के लिए एक सीधा इंसान बनने की बजाय एक सुलझा हुआ इंसान बनने का प्रयास करना होगा। अब मैं तुम्हें बताता हूँ कि एक सुलझे हुए इंसान में क्या क्या विशेषताएं होती हैं।
पहली विशेषता ये अपनी और अपने चाहने वालों की जरूरतों को ऊपर रखते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि ये लोग दूसरों की जरूरतों को कम समझते हैं या फिर दूसरों को गिराकर खुद ऊपर बढने की कोशिश करते हैं, बल्कि इसका मतलब यह है कि ये लोग दूसरों की फालतू जरूरतों के लिए तब तक उपस्थित नहीं होते जब तक की इनकी खुद की महत्वपूर्ण जरूरतें पूरी ना हो जाए। हालांकि अगर कोई इंसान सच में मुसीबत में फंसा हुआ है और उसे इनकी सहायता की सख्त जरूरत है तभी अपने महत्वपूर्ण कामों को पीछे रखकर भी उसकी सहायता के लिए उपस्थित हो जाते हैं और ये अपने से कमजोर और जरूरतमंद लोगों की भी अपनी हैसियत के अनुसार सहायता करने के लिए तैयार रहते हैं। ये बस अपना बेवजह शोषण नहीं होने देते और इस बात पर भरोसा रखते हैं कि अगर इन्हें सच में किसी की सहायता करनी है तो पहले इन्हें उसकी सहायता करने के लायक बनाना होगा और लायक वो सक्षम बनने के लिए इन्हें अपनी जरूरतों का भी ध्यान रखना होगा क्योंकि अगर एक इंसान खुद ही बहुत ज्यादा बीमार है तो फिर वो दूसरे बीमार व्यक्ति की सेवा कैसे कर सकता है? एक सुलझा हुआ इंसान इस बात को मानता है कि हर इंसान की अपनी कुछ जरूरतें और इच्छाएं होती है, जिसका उसे ध्यान रखना चाहिए। लेकिन खुद को अच्छा दिखाने वाला इंसान हमेशा यह दिखाने की कोशिश करता है कि उसकी अपनी कोई जरूरतें या इच्छाएं नहीं है। इसीलिए वो हमेशा दुखी रहता है।
दूसरी विशेषता एक सुलझा हुआ इंसान इस बात को अच्छे से जानता है कि वो अपने आसपास के हर इंसान को कुछ नहीं रख सकता। इसीलिए वो केवल उसी इंसान को खुश रखने का प्रयास करता है जो उसके लिए मायने रखते हैं। जो सच में उससे प्यार करते हैं, उसकी परवाह करते हैं, लेकिन अगर उसकी बहुत कोशिश करने के बाद भी सामने वाला उससे दूरी बनाने का प्रयास करता है, उससे खुश नहीं रहता या फिर उसके साथ सहज महसूस नहीं करता तो फिर एक सुलझा हुआ इंसान ऐसे व्यक्ति से दूरी बनाने से भी पीछे नहीं हटता। फिर चाहे वो उसका कोई परिवारजन, सगा संबंधी या फिर मित्र क्यों ना हो, क्योंकि वो किसी की जबरदस्ती नहीं कर सकता। सिर्फ उसे खुश रखने या सामने वाले की नजरों में अच्छा इंसान बनने के लिए। इस तरह वो खुद को बेवजह दुखी होने से बचा लेता है लेकिन जो अच्छा होने का दिखावा करते हैं वो सब को खुश करने के चक्कर में अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण इंसान को ही दुखी कर बैठते हैं जो कि वो खुद हैं।
तीसरी विशेषता एक सुलझा हुआ इंसान वैसा जीवन जीने का प्रयास करता है जैसा वो जीना चाहता है। वो सिर्फ किसी दूसरे को खुश करने के लिए अपने जीने का तरीका नहीं बदलता। इसका मतलब यह नहीं है की उनके जीने का तरीका ऐसा है जिससे लोगों को समस्या हो। वो बस दूसरे क्या कहेंगे? इस चक्कर में अपना मन मार कर नहीं रहता और खुलकर पूरे जोश और उत्साह के साथ अपना जीवन जीता है। उसे अपनी पसंद, नापसंद पता होती है। इसीलिए वो वही करता है जिसमें उसे खुशी मिलती है। उसे अच्छे से पता होता है की वो कौन है उसे अपने आप पे भरोसा होता है। इसीलिए उसे किसी इंसान की छोटी चापलूसी करके खुद को अच्छा दिखाने या खुद की तारीफ सुनने की जरूरत नहीं होती।
जेन मिस्टर ने आगे कहा, अगर तुम अपने जीवन से संतुष्ट नहीं हो तो अपने आप से दो प्रश्न पूछो
पहला, क्या मैं अपने लिए वो जिंदगी बना रहा हूँ जो मैं असल में अपने लिए चाहता हूँ और
दूसरा अगर मैं नहीं बना रहा तो क्यों नहीं बना रहा.
जब तुम इन दोनों सवालों के बारे में गहराई से विचार करोगे? तब तुम जान पाओगे कि तुम अपनी मनचाही जिंदगी सिर्फ इसलिए नहीं बना पा रहे हो, क्योंकि तुम दूसरों के सामने अच्छा बनने का प्रयास कर रहे हों, जिसकी वजह से तुम अपनी इच्छाओं और जरूरतों को प्राथमिकता नहीं देते हो और दूसरों को ही खुश करने में लगे रहते हो। इसीलिए अगर तुम एक खुशहाल और मनचाहे जिंदगी जीना चाहते हो तो एक सुलझा हुआ इंसान बनने का प्रयास करो। ना की सीधा इंसान। इतना कहकर बौद्ध भिक्षु मौन हो गए। व्यक्ति को भी अब समझ आ चुका था कि उसे एक सुलझा हुआ इंसान बनना है ना की सीधा। उसने इतनी अमूल्य जानकारी के लिए बौद्ध भिक्षु का धन्यवाद किया और वहाँ से चला गया।
दोस्तों उम्मीद करता हूँ कि आपको इस कहानी से बहुत कुछ सीखने को मिला होगा.