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खाने के बर्तन और उनका महत्व

खाने के बर्तन, जिनमें प्लेटें, कटोरे, चम्मच, फोर्क, चाकू, ग्लास आदि शामिल हैं, न सिर्फ खाने की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाते हैं बल्कि भोजन के अनुभव को भी समृद्ध करते हैं। इनका महत्व निम्नलिखित कारणों से है:

  1. स्वच्छता और स्वास्थ्य: खाने के बर्तनों का उपयोग भोजन को स्वच्छ रखने में मदद करता है, जिससे खाने की सुरक्षा और स्वास्थ्य सुनिश्चित होता है। वे खाने को सीधे हाथों से छूने की आवश्यकता को कम करते हैं, जिससे रोगाणुओं के प्रसार की संभावना घटती है।
  2. सांस्कृतिक महत्व: विभिन्न संस्कृतियों में खाने के बर्तनों का उपयोग और डिजाइन उनकी पारंपरिक मान्यताओं और रीति-रिवाजों को दर्शाता है। वे सांस्कृतिक पहचान और परंपरा का हिस्सा होते हैं।
  3. आधुनिकता और सुविधा: आधुनिक खाने के बर्तनों के डिजाइन और मटेरियल में नवाचार ने खाना पकाने और परोसने की प्रक्रिया को अधिक सुविधाजनक और कुशल बना दिया है।
  4. सौंदर्य और प्रस्तुति: अच्छे डिजाइन वाले खाने के बर्तन भोजन की प्रस्तुति को बढ़ाते हैं, जिससे खाने का अनुभव और भी आकर्षक और आनंददायक हो जाता है।
  5. पर्यावरणीय प्रभाव: स्थायी मटेरियल से बने खाने के बर्तनों का चयन करके, लोग पर्यावरण के प्रति जागरूकता और जिम्मेदारी दिखा सकते हैं।
  6. अतिथि सत्कार: विशेष अवसरों पर उच्च गुणवत्ता वाले और सुंदर बर्तनों का उपयोग करके अतिथियों का सत्कार किया जाता है, जिससे उन्हें महत्वपूर्ण और सम्मानित महसूस होता है।

इस प्रकार, खाने के बर्तन सिर्फ उपयोगिता के लिए नहीं होते, बल्कि वे हमारे जीवन में सौंदर्य, संस्कृति, और पारस्परिक संबंधों को भी समृद्ध करते हैं।

खाने के बर्तन कैसे होने चाहिए यह सवाल लगातार पूछा गया है .एक पत्र भी मिला .खाने के बर्तन के बारे में मेरा मानना है कि परम्परागत रूप से इस्तेमाल किए जाने वाले बेहतर थे | मिर्जापुरी- भरत, पीतल के मुकाबले थोड़ी सफ़ेद धातु है .इसके बर्तन काफी वजनदार होते हैं .एक बार गर्म हो जाने के बाद दाल सब्जी आसानी से पकती है .भार की वजह से नीचे लगने का भी डर कम होता है .भरत की पतीली कुछ ज्यादा ही भारी होती है .इसमें रखा भोजन न पितलाता है न ही कसियाता है |

यह धातु पीतल स्टेनलेस स्टील के मुकाबले महंगी तो जरुर है लेकिन एलोपैथिक डाक्टरों को चुकाए जाने वाले हर्जाने में इतनी बचत कर देते हैं कि ये महंगे बर्तन सस्ते ही साबित होते हैं .खटाई युक्त भोजन कच्चे पक्के लोहे की कड़ाही में ही पकाया जा सकता है लेकिन पकते ही उसे मिटटी ,पत्थर या चीनी मिटटी के बर्तन में निकाल लेना चाहिए .इस तरह के भोजन को बार बार गर्म नहीं करना चाहिए .जिन्हें सिर्फ गर्म खाना ही रुचता हो उन्हें पुराने दिनों की तरह रसोई में आसन पर बैठकर आंच से उतरता भोजन करना चाहिए .

रसोई में खड़ा चूल्हा अगर अनिवार्य हो गया हो तो वहीँ एक मेज लगा ले .मौसम ठीक हो तो मिर्जापुरी भरत में रखा भोजन चार छह घंटे बिलकुल ठीक रहता है .तीस चालीस साल पहले बर्तन की आम दूकानों पर भरत की पतीली ,कड़ाही सहज उपलब्ध हुआ करती थी .अब तो जगाधरीतक में भरत की ढलाई आखिरी सांस गिन रही है .फिर भी बनारस और कोलकता के बर्तन बाजार में ढूढने पर ये मिल जाते हैं| अमदावाद शहर में जैन संत श्रीमंत हितरुचि विजय महाराज की चार पांच उत्साही युवाओं ने शुद्ध और अहिंसात्मक अन्न वस्त्र भांडों का व्यापार शुरू किया है |

बर्तन के मामले में यह जान लें कि कुम्हार के आंवें में पके मिटटी के बर्तन तो उपयुक्त हैं ही साथ ही बिहार ,बंगाल ,दक्षिण में ढले लोहे के बर्तन भी उपयुक्त हैं .मिर्जापुर में पीतल कसकूट आदि मिलकर ढाले गए भरत के बर्तन सभी तरह का भोजन बनाने के लिए उपयुक्त हैं .एल्यूमीनियम के बर्तन ठीक नहीं होते | स्टील में भी अगर अच्छी गुणवत्ता का स्टील न हुआ तो उसमे बना भोजन ठीक नहीं होता |

आजकल जो कूकर चल रहे हैं उनसे हो सके तो बचना चाहिए या फिर स्टील के कूकर का इस्तेमाल करना चाहिए . लोहे की कड़ाही में दमपुख्त यह मूल नुस्खा तो अवध के ग्रामीण अंचल से आया था .भीगे चनो में पालक ,परवल ,लौकी ,आलू और टमाटर का सालन .आज की खिचड़ी तो अपने आप में संपूर्ण भोजन है .पहला नुस्खा -गेंहू ,मूंग मोठ चना भीगोकर साठ से बहत्तर घंटे तक अंकुरित हो जाने दें .इस दौरान चारो अन्न बारी बारी से धोते रहिए .स्टार्च बचेगा ही नहीं .हीं चारो अन्न पूरी तरह अंकुरित होने पर सिर्फ प्रोटीन ,रफेज और उर्जा रूप रह जाएंगे .स्टार्च की जरूरत हो तो इसे पकाते समय इसमें मक्के का दलिया मिला सकते हैं

लोहे के पात्र में दूध पीना अच्छा होता है। लोहे के बर्तन में खाना नहीं खाना चाहिए क्योंकि इसमें खाना खाने से बुद्धि कम होती है और दिमाग का नाश होता है। पीतल के बर्तन में भोजन पकाने और करने से कृमि रोग, कफ और वायुदोष की बीमारी नहीं होती। पीतल के बर्तन में खाना बनाने से केवल 7 प्रतिशत पोषक तत्व नष्ट होते हैं।

कौन से बर्तन में खाना नहीं बनाना चाहिए?
मुख्य बात- आपको हेल्दी रहना है तो आप स्टेनलेस स्टील के बर्तन, मिट्टी के बर्तन, आयरन के बर्तन में खाना पका कर खाएं, लेकिन एल्युमीनियम, सिरैमिक, नॉन-स्टिक कुकवेयर के अधिक इस्तेमाल से बचना चाहिए.

क्या हम लोहे के बर्तन रोज इस्तेमाल कर सकते हैं?
प्रतिदिन लोहे की कड़ाही या लोहे की कड़ाही में पकाया गया भोजन आयरन की कमी को रोकता है और शरीर में हीमोग्लोबिन के स्तर को संतुलित करने में भी मदद करता है। इस प्रकार, लोहे का कुकवेयर किसी के स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए अच्छा है। 3) विभिन्न प्रकार के व्यंजन पकाने के लिए लोहे का कुकवेयर एक बढ़िया विकल्प हो सकता है।

अल्मुनियम के बर्तन में खाना क्यों नहीं बनाना चाहिए?
एल्युमीनियम के बर्तनों में खाना पकाने से वो खाने से आयरन और कैल्शियम जैसे तत्वों को सोख लेता है। इसका मतलब अगर खाने के साथ एल्युमीनियम पेट में जाता है तो यह शरीर से आयरन और कैल्शियम सोखना शुरू कर देता है। इससे हड्डियां कमजोर हो सकती हैं।

दूध कौन से बर्तन में गर्म करना चाहिए?
जी हां आप एलुमिनियम के बर्तन का इस्तेमाल दुध गर्म करने के लिए कर सकते हैं, लेकिन अगर स्टील के बर्तन का इस्तेमाल करेगें तो ज्यादा अच्छा होगा।

कौन सी थाली में खाना खाना चाहिए?
पीतल की थाली में खाना खाने से गैस की दिक्कत नहीं होती। पाचन ठीक रहता है।

सब्जी कौन से बर्तन में बनानी चाहिए?
मिट्टी के बर्तन- खाना बनाने का सबसे सुरक्षित और अच्छा विकल्प मिट्टी के बर्तन होते हैं.

कौन से बर्तन में पानी पीना चाहिए?
पानी के शुद्धीकरण और बैक्टीरिया प्रतिरोधी क्षमताओं के लिए तांबा व तांबे के बर्तन का पानी अच्छा माना गया है। आयुर्वेद के अनुसार, ताम्र जल शरीर के तीन दोषों वात, पित्त एवं कफ के कारण होने वाली परेशानियों को दूर करता है। तांबा एक खनिज है, जो शरीर के कई कार्यों के लिए जरूरी है।

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