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बाढ राहत

राशन नहीं मिला क्या” साइकिल से गैस सिलेंडर उतार रहे अपने पति राम सिंगार से उनकी पत्नी पार्वती ने पूछा।

मिला है। तो कहाँ रख आये, आई सिलेंडर कहाँ से भरवा लाये? वृद्धा पेन्शन आया था, निकाले हैं। ऐसा कहते नजरें चुराये वह वहाँ से चला गया। राम सिंगार और पार्वती पति पत्नी है। दोनों की उम्र सत्तर साल पार कर गयी है। नदी किनारे के गाँव मे रहते हैं। राम सिंगार मछली मारने और बेचने का काम करते थे। मगर अब हाथ पांव मे ताकत नहीं रही इसलिए मछली मारने नहीं जाते। पिछले साल की बरसात के समय नदी से जाल निकालते समय फिसलकर नदी मे चले गये थे। लगे थे डूबने, यह तो कहो नाव से मछली मार रहे भोला ने समय रहते देख लिया कि जान बच गयी। उसी दिन पार्वती ने रोते हुए जाल उठाकर आग मे डाल दी थी।

तुमको कुछ हो जाता तो मैं क्या करती कहाँ जाती।और कौन है दुनिया मे मेरा? कोई जरूरत नहीं मछली मारने की।पार्वती ठीक कहती है, उसके पति के सिवा उसका और कोई नहीं है दुनिया में। एक नहीं चार चार बार माँ बनी, चार के चारो बेटे। मगर एक्को की उम्र चार साल से अधिक नहीं रही। एक हजार तो पेन्शन आती है, उसमें से पचास रुपया अंगूठा लगवाने का लग जाता है। बचा साढ़े नौ सौ, ई बुड्ढा बारह सौ मे सिलेंडर कहाँ से भरा लाया? आ राशन काहें नहीं लाया? वृद्धा पेन्शन और सरकारी राशन इन्हीं दो पायों पर तो उनकी जिंदगी कट रही है। पार्वती घर से निकल कर बाहर चली आई।

राम सिंगार दरवाजे पर चुपचाप मन मारे बैठा है। आज वह नदी के किनारे चला गया था। पानी बहुत तेज़ बढ रहा था। लोग कह रहे थे कि ऐसे ही पानी बढता रहा तो दो तीन दिन के भीतर बाढ आ जायेगी। बाढ की सुनकर कांप गया था वह। बुढापा मे हर बात से डर लगता है। जब जवानी थी तब बाढ के नाम से आनन्द आ जाता था। खूब मछली ढेर सारी मछली मारता था तब।

अब बड़ी दिक्कत होती है बाढ से। सबसे बड़ी दिक्कत जलावन की लकड़ी। पहले था तो पूरे कछार मे बबूल के पेड़ होते थे। बाढ से पहले काट सुखाकर रख लेते थे। आये बाढ कोई दिक्कत नहीं। अब पार्वती ही बीनबानकर लाती है। बहुत होगा दो चार दिन का रखी होगी। पिछले साल की बाढ मे बहुते दिक्कत हुआ था।वैसे तो उज्जवला योजना का गैस सिलेंडर मिला है, बाकी बारह सौ रुपया कहाँ से आये? भरवाना तो पड़ेगा नहीं तो काम कैसे चलेगा। बुढिया को बताये बिना सिलेंडर लेकर चला गया था। एक पुरानी साइकिल है जो हर महीने राशन लाने और कभी कभार सिलेंडर लाने मे काम आती है।

पार्वती आकर उसके पास बैठ गयी है। काहें ऐसे मन मारे बैठे हो? सिलेंडर खातिर रुपया कहाँ से आया? राशन कहाँ रखे हो? एक साथ तीन चार सवाल पूछ गयी वह। बृद्ध पेन्शन निकाल कर लाया हूँ, कमीशन काटकर साढ़े नौ सौ रुपया मिला था।

मगर सिलेंडर तो बारह सौ मे मिल रहा है, किसी से रुपया उधार लिये क्या? नहीं उधार नहीं लिया। पहले उसमें से दो सौ खर्च कर कोटेदार से राशन लिया। राशन कहाँ रखे हो? बेच दिया साढ़े चार सौ मे। फिर बारह सौ का सिलेंडर लाया। अरे राशन बेचकर सिलेंडर ला दिये तो हम पूरे महीने खायेंगे क्या?

करीब पगली लोग कह रहे है एक दो दिन में बाढ आ रही है।राहत सामग्री मिलेगी, आराम से खायेंगे। बरसात बाढ मे लकड़ी कहाँ से लाओगी।सुनकर पार्वती उसे बाहों मे जकड़ कर रोने लगी। उसकी आंखों मे आंसुओं की बाढ आ गयी थी, जो राम सिंगार के रोकने से नहीं रुक रही थी।

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