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पूर्ण विराम

स्वयं आज मै बहुत खुश हूँ , इतने सालों के बाद मेरे जीवन की मेहनत रंग लायी । आज एवार्ड लेते समय मेरी आँखों से निरन्तर खुशी के आँसू छलक रहे थे । मै कितना भी कोशिश कर रही थी परन्तु रूकने का नाम नही ले रहे थे ।

फीलिगं सो पराउड जो मुझे तुम जैसी बीवी मिली

अरे आज मै डिनर भी नही बना पाई , कितनी लेट हो ..

नही आज सब डिनर के लिए बाहर…. कायरा , अनिकेता , शिवम तीनो रैडी हो , आज तुम्हारी मम्मी की जिन्दगी की सबसे बडी खुशी सेलीब्रेट करने जाना है । जाने से पहले थोडी देर रैस्ट कर लो , यू विल फ्रेश एण्ड एनर्जैटिक देयर ।

तुम ठीक कह रहे हो ।

मम्मी पापा की लाडली , दो भाईयो की इकलौती बहन । हर किसी के मुख पर बस खुशी ही खुशी रहता था । कितने नाजो से पाला गया था मुझे । हमेशा दी बैस्ट स्कूल मे पढी , बचपन से ही सपना था बढे होकर एक डाॅक्टर बनने का । दोनो भाई इंजीनियरिंग कर रहे थे और मै होम्योपैथिक मे डाॅक्टरी ।

डाॅक्टरी करते करते ही मेरे लिए बहुत रिश्ते आने लगे थे । लेकिन मां को छोड बाकि सभी मेरे भविष्य के लिए बहुत सजग थे । डाॅक्टरी करने के बाद मै कुछ महीने इंटर्नशिप कर ही रही थी कि अचानक एक रात पापा की हृदयघात से मृत्यु हो गयी ।मां बहुत सदमे मे रही । साल ही हुआ था कि मामा जी ने मेरी शादी के लिए मां पर दवाब डाला और मां का दवाब मुझ पर । मै शादी के लिए तैयार नही थी परन्तु मां की जिद्द के आगे मेरी बिलकुल नही चली । दोनो भाई भी कुछ न कहने की स्थिति मे ही थे ।

स्वयं एक आर्किटेक्ट थे और उनके पिताजी भी । उनकी मां एक रूढिवादी महिला थी , एक बहन भी परन्तु उनकी शादी बेंगलुरू हुई थी तो आना जाना उनका कम ही रहता था । अपनी सामर्थ्य अनुसार मेरी मां ने खूब अच्छी तरह से मुझे विदा करा था । मैने स्वयं से शादी से पहले ही कह दिया था कि मै शादी के बाद प्रैक्टिस जारी रखूंगी।

शादी के बाद हम घूमने गये , आने के मैने उन्हे प्रैक्टिस कन्टीनयू की बात करी । परन्तु मेरी सास ने कहा कि एक बच्चा हो जाये उसके बाद करते रहना । शादी के दो साल बाद मेरी कायरा का जन्म हुआ।

सासु मां का चेहरा जैसे किसी माहतम से होकर आयी हों। मेरी सास किसी रायसाहब की बेटी थी , कहा जाता है कि शादी के समय कई ट्रक सामान आया था , जिसके कारण ता जिन्दगी उन्होने सभी के ऊपर अपना रौब रखा । न ही पिता जी उनके आगे कुछ चलती थी , न ही स्वयं की । दीदी कभी ही आती थी और वो जाते समय ले जाते हुए सामान की प्रसन्नता मे मग्न रहती थी ।

मै अब फिर से प्रैक्टिस की सोचने लगी थी और मेरी सास वंश वृद्धि की । कायरा एक साल की हो चुकी थी । स्वयं जो खुद एक आर्किटेक्ट थे लेकिन मां के दवाब मे मुझ पर दवाब डाल रहे थे । मुझे अब बहुत बुरा लगने लगा था , मेरे जीवन के सारे सपने दिन प्रतिदिन धूमिल होते नजर आ रहे थे ।

मां को फोन करती तो वह कहती जो तुम्हारे परिवार के लोग कहे , वही करो । जीवन जैसे आगे बढने को तैयार ही नही था अल्पविराम ही अल्पविराम।

साल भर के अन्दर फिर एक और बेटी की मां बन चुकी थी । मै खुद एक डॉक्टर होकर ये सब कैसे कर सकती थी । लेकिन फिर वही बात वंश तो बढ नही पाया था । दो वर्ष के भीतर ही मैने पुनः एक पुत्र को जन्म दिया । अब मै खुद को भूल इन तीनो के लालन पालन और शिक्षा की आरम्भिक नीव मजबूत बनाने मे जुट गयी थी । एक दिन अनिकेता बहुत बीमार हुई , मै होमियोपैथी मे बहुत विश्वास करती थी । खुद ही उस दिन दवाई लेने चली गयी ।

पास मे ही सरकारी अस्पताल था , लेकिन कई दिनो से वहां होमियोपैथिक डाॅक्टर नही आ रहे थे । किसी से पूछा तो बताया गया कि वे बहुत बुजुर्ग हो गये है , आने की स्थिति मे अब नही है क्योकि यहां कोई और डाक्टर नही है तो सिर्फ अपना सेवादान करते है ।

मैने उत्सुकतापूर्वक वहां अपने बारे मे वहां के आफिस मे बात करी , उन्होने मुझे अगले दिन ही टैम्पोरेरी आने को कह दिया । बहुत दिनो बाद मेरे चेहरे पर मुस्कान की किरण आ रही थी । मैने घर जाकर यह बात सबको बताई। मेरी सास इसके बिलकुल विरोध मे थी , उनका मानना था कि बेटा अभी छोटा है और उसके लालन पालन मे कोई कमी नही आनी चाहिए।

मेरी स्थिति ऐसी मानो मै ठगी गई हूँ , मेरे सारे अरमानो की अर्थी उठने को तैयार थी । अचानक पहली बार स्वयं ने बोला , कल से तुम प्रैक्टिस के लिए जा रही हो मै तुम्हारे साथ हूं । दो मिनट रूक पिताजी ने भी मेरे सिर पर हाथ रखकर हामी भर दी । मेरी सास अब कुछ कहने की स्थिति मे नही थी ।

अगले ही दिन से मैने वहां जाना शुरू कर दिया । घर मे काम मे मदद के लिए एक आया और स्वयं ने अपना पूरा सहयोग दिया । मेरी प्रैक्टिस चल पडी। धीरे धीरे मै वहां परमानैन्ट एपोएन्ट हो गयी । दिन भर अस्पताल और आने के बच्चो के साथ मेरे जीवन की गाडी की रेस बढने लगी । आज शादी के सोलह साल बाद एवार्ड जैसे मेरे जीवन भर की तपस्या का फल मिला हो ।

मम्मा बाहर आ जाओ , सब रैडी है ।

अरे , ये सब घर मे ही मंगवा लिया , हमे तो बाहर जाना था । खुशी आज पहली बार मैने तुम्हे खुली आखों से कहीं खोये हुए देखा । मन ही नही करा कि तुम्हे कुछ बोलता । इसलिए हमने सभी कुछ घर मंगवा लिया ।

मम्मा से चीज, ऐसे मे सैलीबरेशन तो बनता ही है , अल्पविराम तो जिन्दगी मे आते ही रहते है लेकिन जिन्दगी की गाडी को आखरी स्टेशन तक पहुंचाने के बाद जो पूर्णविराम लगता है उस सुख का अनुभव ही जीवन मे खुशिया फैलाता है ।

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