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गरीब की शादी

गरीब की शादी
कुछ सालो पहले की बात है मेरे साथ में काम करने वाले चपरासी लखन की बहन की शादी थी तो उसने करीब एक महीने पहले ही मुझसे बता दिया था कि वो 20 दिन के लिए अपने गांव जाएगा, उसने कुछ अग्रिम राशि के लिए भी आवेदन किया था ।
जो 50000 थी मेने उस राशि को मंजूर कर दिया था लेकिन उससे पहले मेने पूछा था की इतने पैसे का क्या करेगा,तो उसका कहना था की बहन की शादी है वहां खर्च करना है बहन के लिए कपड़े बनवाने है और भी बहुत सा सामान बनवाना है।
मेरी रजामंदी के बाद वो पैसे ले कर और हमारे सभी सहकर्मियों को शादी का न्योता दे कर अपने गांव चला गया ,उसकी बहन की शादी 17मार्च को थी हम भी भूल गए थे कि उसके घर में शादी है एक दिन अचानक उसका फोन आता है कि साहब जी आपको सबको शादी में जरूर आना है और परसों शादी है, और साथ में अपना पता भी बताया उसी दिन सबने मिल कर यही सोचा की अमीरों की शादियां तो बहुत देखते है एक बार गांव की शादी भी देख लेते है तो हमने नियत तिथि के लिए एक वहां किराए पर ले लिया और सभी शाम को अपना कार्य निबटा कर 6 बजे गाड़ी में आ गए हम सभी अलीगढ़ से आगे छाता के पास एक गांव है ।
जिसकी दूरी दिल्ली से करीब 2.5 घंटे की है चल दिए । हम सभी 8.30 बजे वहां जा लगे,वो बिल्कुल पिछड़ा गांव था ये बात 2003की है उस समय इन्वर्टर नहीं हुआ करते थे ना ही उन लोगो के पास इतने पैसे थे की वो जेनरेटर किराए पर ले ले गैस वाली लालटेन से रोशनी की हुई थी बहुत लोग थे करीब 200 के आसपास फिर भी बड़ा अच्छा माहौल था सुकून था खाने में भी एक दाल एक सब्जी दही बुरा डाल कर और सब्जी में उपर से शुद्ध देशी घी डाल कर खाना खिला रहे थे।
बहुत ही अच्छा लग रहा था जैसे किसी स्वर्ग में आ गए हो ना ही फालतू का शोर,सिर्फ घर के नही बल्कि गांव के लोग भी पूरी बारात का स्वागत कर रहे थे लग ही नहीं रहा था की एक घर की शादी है पूरे गांव की बेटी की शादी थी, वहां एक खास बात और देखी की दही जमाने के लिए ये लोग हौदी का इस्तेमाल कर रहे थे सुबह भी बिदाई के समय पूरे गांव वाले परिवार की तरह खड़े थे
और सबकी आंखों में आंसू भी साफ दिखाई दे रहे थे बेटी की शादी के लिए हम सभी लोग मिलकर कुछ सामान लाए थे साथ में शगुन के लिए भी कुछ पैसे दिए थे, बिदाई के बाद हमने भी चलने के लिए बोला तो लखन ने सभी के लिए शादी में बनी सब्जी दही बुरा और सबको आधा किलो देशी घी का डब्बा बांध कर दिया हमारे मना करने के बाद भी नहीं माना तो हमको लेना पड़ा ।
निकलने से पहले मेने उसके हाथ पर 1000 रखे और बोला की इसे रखो तुम्हारे काम आयेंगे तो लखन ने वो रुपए वापस कर दिए और बोला साहब मेरी बहन की शादी बहुत अच्छे से हो गई है और मेरे ऊपर किसी भी तरह का कर्ज भी नही है तो मुझे इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी इसे देने के लिए आपका धन्यवाद ,फिर उसने बताया कि गांव के सभी लोगो ने मिलकर शादी की है किसी ने घी दिया किसी ने दूध तो किसी के घर से बुरा आया और साथ में अपने खेत की ताजी सब्जियां तो थी ही और सारा खर्च मिला कर भी 2000 मेरे पास बचे है,मतलब सिर्फ 48000 में शादी ये सब तो हम शहरी लोग कभी सोच ही नहीं सकते, साथ का असली मतलब गांव होता है मेने पहली बार समझा था, धन्य हो ऐसे लोग जो सबको अपना परिवार मान कर कार्य करते हो वहां कभी परेशानी आ ही नहीं सकती है।
क्या हम शाही लोग ऐसा नहीं कर सकते दिखावे के चक्कर में लाखों रुपए बर्बाद कर देते हैं दो दिन बाद किसी को याद ही नहीं रहता की हम किसी अमीर की शादी में गए थे और वहां क्या खाया ।

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