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गौतम बुद्ध और शिकारी

गौतम बुद्ध और शिकारी
एक समय की बात है, महात्मा बुद्ध अपनी तपस्या में लीन थे, उन्हें तपस्या में बैठे हुए कई दिन बीत चुके थे। तभी एक शिकारी उस रास्ते जा रहा था उस शिकारी ने महात्मा बुद्ध को पहचान लिया। शिकारी ने महात्मा बुद्ध के बारे में बहुत बढ़ाई सुनी थी, किंतु वह महात्मा बुद्ध की बडाई से संतुष्ट नहीं था उसने परीक्षा लेने के लिए सोचा – शिकारी पहले तो महात्मा बुद्ध को एक छोटा सा पत्थर फेंककर मारता है, किंतु महात्मा बुद्ध कोई प्रतिक्रिया नहीं करते हैं। क्योंकि उनका मानना था शरीर को तकलीफ होती है, आत्मा को नहीं।
अतः शिकारी द्वारा फेंके गए पत्थर के कारण शरीर को कष्ट हुआ, किंतु आत्मा को नहीं।शिकारी कुछ समय सोचता रहा महात्मा बुद्ध कुछ प्रतिक्रिया करेंगे, किंतु महात्मा बुद्ध अपनी तपस्या में लीन थे, उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं की।पुनः शिकारी ने पत्थर फेंका वह पत्थर महात्मा बुद्ध के आंखों के ऊपर लगा और उस जगह से खून बहने लगा।
महात्मा बुद्ध को आभास हुआ उनके शरीर से रक्त बह रही है, किंतु वह फिर भी अपनी तपस्या से नहीं उठे। शिकारी को गुस्सा आया और उसने पुनः एक पत्थर और महात्मा बुद्ध की ओर फेंका। महात्मा बुद्ध के शरीर से अब खून अधिक बहने लगी, इतनी पीड़ा महसूस कर महात्मा बुद्ध के आंखों से आंसू निकलने लगा । शिकारी ने महात्मा बुद्ध के पास जाकर पूछा आपको जब मैंने पत्थर मारा तो आपने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, महात्मा बुद्ध ने बड़े ही सरलता के साथ कहा क्योंकि इससे मेरे शरीर को कष्ट हुआ है, मेरे मन मस्तिष्क को नहीं।शिकारी अचंभित रह गया उसने पूछा फिर आपके आँखों से आंसू क्यों बह रहे हैं ?
इस पर महात्मा बुद्ध ने पुनः कहा तुम्हारे द्वारा किए गए अनुचित कार्य के परिणाम के बारे में मेरा मस्तिष्क मेरी आत्मा विचार कर रो रही है।
तुमने इतना बड़ा पाप किया है, तुम्हें कैसी सजा मिलेगी।
बुद्ध की बातों को सुनकर शिकारी महात्मा बुद्ध के चरणो में नतमस्तक हुआ और उनसे क्षमा याचना की। महात्मा बुद्ध क्षमाशील व्यक्ति थे, उन्होंने तुरंत शिकारी को क्षमा क्र दिया और अपना आशीर्वाद दिया। वह शिकारी महात्मा बुद्ध का आशीर्वाद पाकर एक महान व्यक्ति और साधक के रूप में जीवन व्यतीत करने लगा।

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