एक दिन गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ कुटिया में बैठे थे। सभी शिष्य आज जानना चाहते थे कि मोक्ष कैसे प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए उन्होंने बुद्ध जी से निवेदन किया कि वो आज मोक्ष पर उपदेश दें।
शिष्यों की बात मान कर बुद्ध जी ने एक कहानी सुनाना शुरू किया।
यह कहानी थी एक जल्लाद और भिक्षुक की।
अपने राज्य का मुख्य जल्लाद, जिसने बहुत से गुनाहगारों को दंड दिया था। अब वह रिटायर हो कर राज्य से बाहर एक कुटिया बना कर अपना जीवन व्यतीत कर रहा था। उसे हमेशा लगता था कि उसने कितने लोगों की हत्या की है, वह कितना पापी है, ऐसे ख्यालों से वह हमेशा घिरा रहता था। वह अपना सारा दिन पश्चाताप में ही गुजारता था।
एक दिन वह रोज की तरह इन्हीं खयालों में खोया हुआ, खाना खाने के लिए थाली परोस रहा था। तभी उसको दरवाजे से किसी की आवाज आई। उसने बाहर जा कर देखा तो एक भिक्षुक खड़ा था। भिक्षुक के चेहरे को देख कर ही जल्लाद समझ गया कि भिक्षुक बहुत ही लम्बी साधना के बाद आज उठा है और भूख से व्यकुल भी है।
जल्लाद के मन में आया की जिंदगी भर तो मैंने बस हत्याएं ही की हैं, आज मौका मिला है कुछ पुण्य कमाने का तो इसे गंवाना नहीं चाहिए।
उसने भिक्षुक को अन्दर बुलाया और अपनी खाने की थाली उसे दे दी। भिक्षुक खाना देख कर बहुत प्रसन्न हुए। भर पेट भोजन कर के भिक्षुक ने जल्लाद से बातचीत शुरू की।
जल्लाद ने भिक्षुक को अपने जीवन की सारी कहानी सुनाई। उसने बताया कि वह कैसा काम करता था, उसने कितने लोगों को फांसी दी और वह सोचता है कि वह कितना बड़ा अपराधी है।
जल्लाद की वेदना सुन कर भिक्षुक बहुत ही शांत स्वर में बोले कि क्या तुमने वो जीव हत्याएं अपनी मर्जी से की थी?
जल्लाद ने कहा, नहीं मैं तो बस मेरे राजा की आज्ञा का पालन कर रहा था। मेरा कोई भाव नही था उन्हें मृत्युदंड या सजा देने का।
तब भिक्षुक ने कहा, तब तुम अपराधी कैसे हुए। तुम तो अपने राजा के आदेशों का पालन कर रहे थे।
जल्लाद को एहसास हुआ कि वह किसी गलत काम के लिए जिम्मेदार नहीं था उसका कोई दोष नहीं है, वह तो सिर्फ अपना दायित्व पूरा कर रहा था। इस प्रकार जल्लाद का मन शांत हुआ फिर भिक्षुक ने जल्लाद को उपदेश दिया और उस से विदा ले ली।
भिक्षुक को विदा कर के जब जल्लाद वापस घर में आया, उसकी मृत्यु हो गयी। जिसके बाद उसको मोक्ष प्राप्त हुआ।
इतना कह कर बुद्ध जी ने कहानी को विराम दिया।
सभी शिष्य बहुत ही आश्चर्य के साथ बुद्ध जी की ओर देख रहे थे। किसी को समझ नहीं आ रहा था कि जिसने इतनी हत्याएं की हो उसे मोक्ष कैसे प्राप्त हो सकता है।
तब एक शिष्य ने यह दुविधा बुद्ध जी के सामने रखी। बुद्ध जी ने तब शिष्यों को समझाया की भिक्षुक के उपदेश से जल्लाद को ज्ञान प्राप्त हो गया था। जल्लाद के जीवन में पहली बार किसी ने उसे ज्ञान का उपदेश दिया था। इसलिए मृत्यु के बाद उसे मोक्ष प्राप्त हुआ।
अपनी बात को विराम देते हुए अंत में बुद्ध जी बोले, बिना ज्ञान के हजार शब्दों का उपदेश भी बेकार है, किन्तु जब शांत मन से उपदेश का एक शब्द भी सुन लिया जाए तो वह ज्ञान दे देता है। और ज्ञान से ही मोक्ष की प्राप्ति संभव है।
कहानी से सीख
इस कहानी ने हमे सिखाया की अपने कर्तव्यों का पालन बिना किसी दुर्भाव के पूरी निष्ठा के साथ करना चाहिए। साथ ही अपना मन हमेशा शांत रखना चाहिए। क्योंकि शांत मन से उपदेश सुनने पर ही वास्तविक ज्ञान प्राप्त हो सकता है। जो मोक्ष की ओर ले जाता है।
Inspirational story of Gautam Buddha – attainment of salvation through knowledge
One day Gautam Buddha was sitting in a hut with his disciples. All the disciples today wanted to know how salvation can be attained. That is why he requested Buddha ji to preach on salvation today.
After listening to the disciples, Buddha started telling a story.
This was the story of a hangman and a beggar.
The chief executioner of his kingdom, who punished many criminals. Now he was retiring and living his life by making a cottage outside the state. He always felt that how many people he had killed, how sinner he was, he was always surrounded by such thoughts. He spent all his day in repentance.
One day he, lost in these thoughts as usual, was serving a plate to eat. Then he heard someone’s voice coming from the door. He went outside and saw a beggar standing. Seeing the face of the beggar, the executioner understood that the beggar has woken up today after a very long sadhana and is also troubled by hunger.
It came to the mind of the executioner that I have only committed murders throughout my life, today I have got a chance to earn some merit, so it should not be lost.
He called the beggar in and gave him his plate of food. The beggars were very pleased to see the food. After eating a full stomach, the beggar started talking to the executioner.
The executioner told the beggar the whole story of his life. He told how he used to work, how many people he hanged and what a great criminal he thinks he is.
Hearing the pain of the executioner, the beggar said in a very calm voice that did you kill those creatures of your own free will?
The executioner said, no, I was just following the orders of my king. I had no intention of punishing or punishing them.
Then the beggar said, then how did you become a criminal? You were just following the orders of your king.
The executioner realized that he was not responsible for any wrongdoing, he was not at fault, he was just fulfilling his duty. In this way the executioner’s mind became calm, then the beggar preached to the executioner and took leave from him.
When the executioner returned home after leaving the beggar, he died. After which he attained salvation.
Saying this Buddha ji stopped the story.
All the disciples were looking at Buddha with great surprise. No one could understand how one who had committed so many murders could attain salvation.
Then a disciple put this dilemma in front of Buddha. Buddha then explained to the disciples that the executioner had attained enlightenment by the teachings of the beggar. For the first time in the life of the executioner, someone preached knowledge to him. Hence he attained salvation after death.
Ending his speech, Buddha said, “Even a thousand words of preaching is useless without knowledge, but when even a single word of sermon is heard with a calm mind, it gives knowledge.” And attainment of salvation is possible only through knowledge.
learn from the story
This story taught us that we should perform our duties with full devotion without any ill-will. Also, you should always keep your mind calm. Because real knowledge can be attained only by listening to the sermon with a calm mind. which leads to salvation.