सम्भल राज्य का राजा बहुत ही धार्मिक और प्रजापालक था। उसके राज्य में बड़ी सुख शांति थी। राजा अपने प्रजा की देखभाल पुत्र की भाँति करता था।उसके राज्य में न तो अपराध होते थे न ही कोई गरीब था। राजा की कीर्ति दूर दूर तक फैली थी।
एक रात राजा अपने राजमहल में सो रहा था। रात्रि के अंतिम पहर में उसने एक स्वप्न देखा। सपने में उसने देखा कि एक महात्मा उससे कह रहे हैं कि महल से एक कोस दूर जो पीपल का पेड़ है। उसमें एक भयंकर विषधर नाग रहता है। पूर्वजन्म में राजा ने उसकी हत्या की थी। जिसका बदला लेने के लिए वह कल रात्रि में राजा को डंसेगा और राजा की मृत्यु हो जाएगी।
इतना कहकर महात्मा अंतर्ध्यान हो गए। सुबह राजा की नींद खुली तो उसे वह स्वप्न याद आया। राजा का प्रधानमंत्री विद्वान एवं बुद्धिमान था। राजा ने तुरंत प्रधानमंत्री को बुलवाया। प्रधानमंत्री के उपस्थित होने पर राजा ने उसे पूरी घटना बताई।
विद्वान प्रधानमंत्री ने राजा से कहा, “महाराज ! रात्रिके अंतिम प्रहर में देखे गए स्वप्न प्रायः सत्य होते हैं। अतः इस विषय में गम्भीरतापूर्वक विचार करना चाहिए।” राजा ने कहा, ” आप ही कोई उपाय बताइये”।
प्रधानमंत्री ने उत्तर दिया, “महाराज ! अगर हम कल उस साँप को रोक लेंगे तो वह किसी अन्य दिन आपको काटने का प्रयत्न करेगा। अगर उसको मार दिया जाएगा तो वह किसी अन्य जन्म में आपसे बदला लेने का प्रयत्न करेगा। इसलिए हमें सांप से बचने की बजाय उसके हृदय से आपके लिए बैरभाव को दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए।”
प्रधानमंत्री ने आगे कहा, “शास्त्रों में कहा गया है कि मधुर व्यवहार से किसी को भी वश में किया जा सकता है। मधुर व्यवहार बड़े से बड़े क्रोध को शांत कर देता है। इसलिए हमें उस सांप के साथ मधुरतापूर्ण व्यवहार करना चाहिए। जिससे उसका क्रोध शांत हो जाय और वह आपसे शत्रुता छोड़ दे।
राजा को अपने प्रधानमंत्री पर पूर्ण विश्वास था। उसने प्रधानमंत्री के कहे अनुसार सांप से मधुर व्यवहार करने का फैसला लिया। राजा ने अपने महल से लेकर सांप के बिल तक पूरे रास्ते को सुगन्धित फूलों से सजवा दिया। जगह जगह पर चांदी के कटोरों में दूध रखवा दिया।
पहरेदारों और सेवकों को आज्ञा दे दी कि सांप को कोई किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुँचायेगा। निर्धारित समय में वह सांप अपने पूर्वजन्म का बदला लेने के लिए बड़े ही क्रोध में अपने बिल से निकला। रास्ते में बिछे फूलों को देखकर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ।
जैसे जैसे वह आगे बढ़ा, रास्ते में रखे दूध के कटोरों और और सुगन्धित फूलों की महक से उसका क्रोध कम होने लगा। राजा के महल के दरवाजे पर पहुँच कर उसने देखा कि पूरे रास्ते और हर दरवाजे पर सशस्त्र पहरेदार खड़े हैं। लेकिन न तो कोई उसे रोकने का प्रयत्न कर रहा है, न ही कोई नुकसान पंहुचा रहा है।
महल के अंदर जाने पर उसने देखा कि राजा स्वयं उसके सामने हाथ जोड़कर खड़ा है और कह रहा है, “है नागराज ! महल तक पहुंचने के दौरान आपको कोई कष्ट तो नहीं हुआ। पूर्वजन्म में आपके प्रति किये गए पाप के प्रायश्चित हेतु मैं आपके सामने प्रस्तुत हूँ। आप मुझे डंसकर अपना बदला पूरा कीजिये।”
सांप राजा के द्वारा किये गए व्यवहार से बहुत प्रभावित हुआ और बोला, “हे राजन ! शत्रु के साथ भी आपने जो मधुरतापूर्ण व्यवहार किया है। उससे मैं बहुत प्रसन्न हूँ। आप जैसे योग्य और धर्मात्मा राजा को मृत्यु देकर मैं स्वयं पाप का भागी नहीं बनना चाहता।
सांप ने आगे कहा, “हे राजन ! इसलिए मैं पूर्वजन्म में किये गए कृत्य के लिए आपको क्षमा करता हूँ और आपके इस मधुर व्यवहार के लिए उपहारस्वरूप आपको यह अमूल्य नागमणि भेंट करता हूँ।” इतना कहकर उसने अपनी नागमणि निकालकर राजा के सामने रख दी और चुपचाप वहां से चला गया।
कहानी की सीख Moral of the Story
मोरल स्टोरी- मधुर व्यवहार हमें यह सिखाती है कि अपने व्यवहार से हम अपने शत्रुओं का भी हृदय परिवर्तन कर सकते हैं। विपरीत परिस्थितियों को भी हम अपने मधुर व्यवहार के द्वारा अपने पक्ष में कर सकते हैं।