एक समय की बात है एक गुरु के २ शिष्य थे एक का नाम (गोरा राम) और दूसरे का नाम (काला राम) था, गुरु जी का ज्यादा लगाव (काले राम) के साथ था और गुरु जी उसको ज्यादा अहमियत देते थे,
एक दिन एक शख्स ने उनसे से पूछा गुरु जी आप (गोरे) से ज्यादा (काले) को तवज्जो क्यूँ देते है जब कि (गोरा) सुबह शाम पाठ पूजा करता है और रोज रामायण भी पड़ता है और डेरे मे खूब सेवा भी करता है,
तब गुरु जी ने कहा कल सुबह आप हमारे डेरे मे एक ऊंट लेकर आईयेगा फिर मै आपकी बात का जवाब दुंगा, वो शख्स दूसरे दिन एक ऊंट लेकर डेरे पहुँच गया, और कहा लीजिए हुजूर मै ऊंट ले आया
गुरु जी ने (गोरे) को आवाज दी और कहा के गोरेराम यह ऊंट छत पर चढ़ा दो,
गोरे राम ने कहा हुजूर यह कैसे हो सकता है यह ऊंट बहुत बड़ा है और मुझमे इतना बल नही के मै इसे उठा सकूँ, गुरु जी ने कहा ठीक है आप जाओ अपना काम करो
थोड़ी देर बाद गुरु जी ने (कालेराम) को आवाज दी और कहा कालेराम: यह ऊँट जरा छत पर चढ़ा दो, कालेराम ने बिना कोई सवाल किए ऊँट की टाँगो मे अपना सिर फँसा कर अपने कँधों से उठाने के लिए जोर लगाने लगा,
इस पर गुरु जी ने उस शख्स की और देखकर कहा यही आपके सवाल का जवाब है,
सच्चा शिष्य वही है जो तन से नही मन् से जुड़े, अपने सतगुरु के हुक्म की परख न करें, संत मार्ग मे बुद्धि से काम नही चलता, बल्कि बुद्धु बनना पड़ता है.
पूर्ण समर्पण के प्रतीक हनुमान जी को कोटि कोटि नमन
एक महात्मा था, उनके एक शिष्य ने सवाल किया कि संसार में किस तरह के इन्सान को मुक्ति मिलती है ?
महात्मा अपने शिष्य को तेज बहाव की नदी पर लेकर गये और जाल डालकर मछलियों को पकडने के लिए कहा।
शिष्य ने नदी में जाल फेंका और कुछ मछलियाँ जाल में फंस गई।फिर महात्मा ने शिष्य से सवाल किया कि जाल मे अटकने के बाद मछलियों का व्यवहार कैसा है ?
शिष्य ने कहा कि कुछ मछलियाँ अपनी मस्ती में मस्त हैं , कुछ मछलियाँ छटपटा रही है और कुछ मछलियाँ आजाद होने के लिए भरपूर प्रयास कर रही हैं ,
लेकिन आजाद नहीं हो पा रही है। सभी मछलियां एक जैसी ही दिखाई दे रही है लेकिन तीन प्रकार का मछलियां का रवैया देखा।
महात्मा ने मुस्कराते हुए कहा तुम्हें तीन प्रकार की मछलियां दिखाई दिया लेकिन चार प्रकार की मछलियां है।
शिष्य ने कहा वो चौथे प्रकार मछली किस तरह और उसका रवैया क्या है ?
महात्मा ने कहा कि जो मछलियां अपनी मस्ती में मस्त हैं वो वह इन्सान जो इस संसार में खा-पीकर मस्त है।
दुसरा वो मछलियां जो छटपटा रही यह वो लोग हैं जो कभी-कभी सतसंग जाते हैं और ज्ञान की बातें करते हैं लेकिन अमल नहीं करते।
तीसरे प्रकार की मछलियां उस प्रकार के लोग हैं जो नित नेम सतंसग जाते है और भजन सिमरन भी करते हैं लेकिन मन में बदले में कुछ सांसारिक कामना रखते हैं
और जिसके अंदर सांसारिक कामना हो वो ना मुक्त हो सकते और ना ही ईश्वर के प्रति प्रेम।
शिष्य ने कहा चौथे प्रकार की मछलियां और लोग किस तरह है ?
महात्मा ने कहा कुछ मछलियां इस जाल में फंसती नहीं है वो सच्चे भक्त हैं ,
संसार महासागर है उसके अंदर मायाजाल है जो निस्वार्थ परमात्मा का भजन सिमरन करते वो इस मायाजाल में नहीं फंसते है।
Hindi to English
For a time, there were two disciples of a Guru, one named (Gora Ram) and the other’s name (Kala Ram) was with Guru Ji’s great attachment (black ram) and Guru ji gave him more importance,
One day a man asked him, why do you give more (black) than you (white) when that (blonde) worshiped in the morning in the evening and also Ramayana everyday and also performs a lot of service in the camp,
Then guru said that in the morning you will bring a camel in our tent. Then I will answer your point, the person reached the camp with a camel the other day, and said,
Guruji gave voice to (white) and said that Goreram should mount this camel on the roof,
Gore Ram said, how could this be that this camel is very big and I can not lift it so I can lift it, Guru ji said okay you go get your work done
After a while, Guruji gave a voice to (Kalaeram) and said, Calarama: Let this camel be on the roof; Blackam asked without asking any questions, to put his head in the tango of the camel, and pushing him to lift his shoulders,
On this, Guru ji looked at the person and said this is the answer to your question,
The true disciple is the one who is not related to the mind, do not judge the order of your Satguru, in the path of the Saint, intellect does not work, but it becomes a fool.
Hanuman ji was honored with a lot of dedication to complete surrender.
There was a Mahatma, one of his disciples questioned what kind of person is liberated in the world?
The Mahatma took his disciple on the river of drift and asked him to catch fish by catching a trap.
The disciple threw a trap in the river and some fish were trapped in the trap. Then Mahatma asked the disciple how is the behavior of fish after being trapped in the trap?
The disciple said that some fish are cool in their fun, some fish are staggering and some fish are making great efforts to be free,
But can not be free. All the fish are looking similar but look at the three types of fishes.
Mahatma smiled saying, you see three types of fish but there are four kinds of fish.
The disciple said that what is the fourth type of fish and what is his attitude?
The Mahatma said that the fish which are good in their fun, is the person who is happy eating and drinking in this world.
The other fish that are tingling are those people who sometimes go to Satak and talk about knowledge but do not do it.
The third type of fishes are those people who go under the stomach and also do bhajan simran but some mundane wishes in return in mind
And within which worldly wishes can not be free and neither can love for God.
The disciple said, how are four types of fish and how are people?
Mahatma said that some fish do not get entangled in this trap, they are true devotees,
The world is the ocean, there is a delusion inside it, which indulge in the worship of selfless soul, they do not get trapped in this delusion.