एक बार की बात है एक बढ़ई था। वह दूर किसी शहर में एक सेठ के यहाँ काम करने गया। एक दिन काम करते-करते उसकी आरी टूट गयी। बिना आरी के वह काम नहीं कर सकता था, और वापस अपने गाँव लौटना भी मुश्किल था, इसलिए वह शहर से सटे एक गाँव पहुंचा। इधर-उधर पूछने पर उसे लोहार का पता चल गया।
वह लोहार के पास गया और बोला-
भाई मेरी आरी टूट गयी है, तुम मेरे लिए एक अच्छी सी आरी बना दो।
लोहार बोला, “बना दूंगा, पर इसमें समय लगेगा, तुम कल इसी वक़्त आकर मुझसे आरी ले सकते हो।”
बढ़ई को तो जल्दी थी सो उसने कहा, ” भाई कुछ पैसे अधिक ले लो पर मुझे अभी आरी बना कर दे दो!”
“बात पैसे की नहीं है भाई…अगर मैं इतनी जल्दबाजी में औजार बनाऊंगा तो मुझे खुद उससे संतुष्टि नहीं होगी, मैं औजार बनाने में कभी भी अपनी तरफ से कोई कमी नहीं रखता!”, लोहार ने समझाया।
बढ़ई तैयार हो गया, और अगले दिन आकर अपनी आरी ले गया।
आरी बहुत अच्छी बनी थी। बढ़ई पहले की अपेक्षा आसानी से और पहले से बेहतर काम कर पा रहा था।
बढ़ई ने ख़ुशी से ये बात अपने सेठ को भी बताई और लोहार की खूब प्रसंशा की।
सेठ ने भी आरी को करीब से देखा!
“इसके कितने पैसे लिए उस लोहार ने?”, सेठ ने बढ़ई से पूछा।
“दस रुपये
सेठ ने मन ही मन सोचा कि शहर में इतनी अच्छी आरी के तो कोई भी तीस रुपये देने को तैयार हो जाएगा। क्यों न उस लोहार से ऐसी दर्जनों आरियाँ बनवा कर शहर में बेचा जाये!
अगले दिन सेठ लोहार के पास पहुंचा और बोला, “मैं तुमसे ढेर सारी आरियाँ बनवाऊंगा और हर आरी के दस रुपये दूंगा, लेकिन मेरी एक शर्त है… आज के बाद तुम सिर्फ मेरे लिए काम करोगे। किसी और को आरी बनाकर नहीं बेचोगे।”
“मैं आपकी शर्त नहीं मान सकता!” लोहार बोला।
सेठ ने सोचा कि लोहार को और अधिक पैसे चाहिए। वह बोला, “ठीक है मैं तुम्हे हर आरी के पन्द्रह रूपए दूंगा….अब तो मेरी शर्त मंजूर है।”
लोहार ने कहा, “नहीं मैं अभी भी आपकी शर्त नहीं मान सकता। मैं अपनी मेहनत का मूल्य खुद निर्धारित करूँगा। मैं आपके लिए काम नहीं कर सकता। मैं इस दाम से संतुष्ट हूँ इससे ज्यादा दाम मुझे नहीं चाहिए।”
“बड़े अजीब आदमी हो…भला कोई आती हुई लक्ष्मी को मना करता है?”, व्यापारी ने आश्चर्य से बोला।
लोहार बोला, “आप मुझसे आरी लेंगे फिर उसे दुगने दाम में गरीब खरीदारों को बेचेंगे। लेकिन मैं किसी गरीब के शोषण का माध्यम नहीं बन सकता। अगर मैं लालच करूँगा तो उसका भुगतान कई लोगों को करना पड़ेगा, इसलिए आपका ये प्रस्ताव मैं स्वीकार नहीं कर सकता।”
सेठ समझ गया कि एक सच्चे और ईमानदार व्यक्ति को दुनिया की कोई दौलत नहीं खरीद सकती। वह अपने सिद्धांतों पर अडिग रहता है।
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अपने हित से ऊपर उठ कर और लोगों के बारे में सोचना एक महान गुण है। लोहार चाहता तो आसानी से अच्छे पैसे कमा सकता था पर वह जानता था कि उसका जरा सा लालच बहुत से ज़रूरतमंद लोगों के लिए नुक्सानदायक साबित होगा और वह सेठ के लालच में नहीं पड़ता।
दोस्तों, अगर ध्यान से देखा जाए तो लोहार की तरह ही हममे से अधिकतर लोग जानते हैं कि कब हमारी selfishness या Greediness की वजह से बाकी लोगों को नुक्सान होता है पर ये जानते हुए भी हम अपने फायदे के लिए काम करते हैं। हमें इस behaviour को बदलना होगा, बाकी लोग क्या करते हैं इसकी परवाह किये बगैर हमें खुद ये फैसला करना होगा कि हम अपने फायदे के लिए ऐसा कोई काम न करें जिससे औरों को तकलीफ पहुँचती हो।
In English
Once upon a time, there was a carpenter. He went away to work in a city in a Seth. One day while working, his saw broke. He could not work without a saw, and it was also difficult to return to his village, so he reached a village adjacent to the city. On the other hand, the blacksmith came to know about it.
He went to blacksmith and said-
Brother has broken my sari, you make a good sari for me.
Blacksmith said, “I will make it, but it will take time, you can come tomorrow and take a sari from me.”
The carpenter was quick, so he said, “Brother take some money, but give me a saw now!”
“It’s not a matter of money, brother … If I make tools in such a hurry, then I will not be satisfied with it myself, I have never lacked anything in my making tool,” said Blacksmith.
The carpenter got ready, and the next day he took his saw.
The saw was made very well. Carpenter was able to work better and easier than before.
The carpenter gladly told this to Seth and gave a great deal of blacksmith.
Seth also saw the saws closely!
“How much of that blacksmith’s money?”, Seth asked the carpenter.
“Ten Rupees
Seth thought to himself that if a good saw in the city would be ready to give thirty rupees. Why not make such a dozen organs from the blacksmith and be sold in the city!
The next day Seth reached near blacksmith and said, “I will make you many aires and give ten rupees of every ary, but I have a condition … after today you will only work for me. Will not sell someone else by making a saw. ”
“I can not accept your condition!”
Seth thought that blacksmith needed more money. He said, “Okay, I will give you fifteen rupees of every saw …. Now my condition is approved.”
Blacksmith said, “No, I still can not accept your condition. I will determine the value of my hard work myself. I can not work for you I am satisfied with this price and I do not want much price. ”
“There is a big strange man … does anyone forbid Lakshmi coming?”, The trader spoke with surprise.
The blacksmith said, “You will take a beaver from me and then you will sell it to the poor buyers at twice the price. But I can not become the medium of exploitation of any poor. If I tempt, many people will have to pay it, so I can not accept your proposal. ”
Seth understood that a true and honest person can not buy any wealth of the world. He remains firm on his principles.
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Thinking about your own interests and thinking about people is a great quality. The blacksmith wanted to earn good money easily but he knew that his bit of greed would prove to be a harm to many needy people and he would not be in the greed of Seth.
Friends, if you see carefully, most of us like Blacksmith know that when our selfishness or greediness leads to losses to others, knowing this, we work for our own benefit. We have to change this behavior, regardless of what others do, we have to make a decision that we do not do any kind of work for our benefit which helps others to suffer.