हिन्दू पंचांग के अनुसार आषाढ़ पूर्णिमा के दिन गुरु की पूजा करने की परंपरा है। इस दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। नारदपुराण के अनुसार यह पर्व आत्मस्वरूप का ज्ञान पाने के अपने कर्तव्य की याद दिलाने वाला और गुरु के प्रति अपनी आस्था जाहिर करने वाला होता है।
गुरु पूर्णिमा व्रत विधि (Guru Purnima Vrat Vidhi in Hindi)
इस दिन सुबह उठकर घर साफ करने के बाद अपने गुरु की प्रतिमा या चित्र सामने रखकर पूजा करनी चाहिए। मन में शुकदेव जी, गुरु व्यास, बृहस्पतिदेव आदि का ध्यान करना चाहिए। इस दिन सिर्फ गुरु या शिक्षक ही नहीं बल्कि जीवन में जिसे भी गुरु मानते हो उसकी पूजा करनी चाहिए।कोशिश करनी चाहिए कि इस दिन किसी पवित्र नदी में नहाया जा सके। साथ ही इस दिन गरीबों और ब्राह्मणों को दान देने से अत्यधिक पुण्य प्राप्त होता है।
व्यास पूर्णिमा (Vyas Purnima)
गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है, क्योंकि मान्यता है कि भगवान वेद व्यास ने महाभारत की रचना इसी पूर्णिमा के दिन की थी। तब देवताओं ने वेद व्यास जी का पूजन किया और तभी से व्यास पूर्णिमा मनाई जा रही है। विश्व के सुप्रसिद्ध आर्य ग्रन्थ ब्रह्मसूत्र का लेखन इसी दिन आरम्भ किया।
कहा जाता है प्राचीन काल में गुरु शिष्य परम्परा के अनुसार शिक्षा ग्रहण की जाती थी। इस दिन शिष्यगण अपने घर से गुरु आश्रम जाकर गुरु की प्रसन्नता के लिए अन्न, वस्त्र और द्रव्य से उनका पूजन करते थे। उसके उपरान्त ही उन्हें धर्म ग्रन्थ, वेद, शास्त्र तथा अन्य विद्याओं की जानकारी और शिक्षण का प्रशिक्षण मिल पाता था। गुरु को समर्पित इस पर्व से हमें भी शिक्षा लेते हुए हमें उनके प्रति ह्रदय से श्रद्धा रखनी चाहिए।