ये कहानी एक सैनिक की है, जो वियतनाम में युद्ध के लिए गया था. युद्ध समाप्त होने के बाद जब उसके घर लौटने की बारी आई, तो उसने अपने माता-पिता को सैन फ्रांसिस्को से फ़ोन किया, “माँ और पिताजी! मैं घर आ रहा हूँ. लेकिन घर आने से पहले मुझे आपसे एक बात पूछनी है. मेरा एक दोस्त है, जिसे मैं अपने साथ घर लाना चाहता हूँ. क्या मैं उसे ला सकता हूँ?”
बिल्कुल बेटा, ये भी कोई पूछने की बात है. हमें तुम्हारे दोस्त से मिलकर बहुत ख़ुशी होगी.” माता–पिता ने जवाब दिया.
“लेकिन पहले एक बात आप लोग जान लें.” सैनिक बोलता गया, “युद्ध में वह बहुत बुरी तरह घायल हो गया है. उसने एक बारूदी सुरंग पर पैर रख दिया था और उसमें उसने अपना एक हाथ और पैर गँवा दिया है. उसके पास कोई जगह नहीं है, जहाँ वो जा सके, इसलिये मैं उसे अपने साथ रहने के लिए लाना चाहता हूँ.”
उसकी यह बात सुनकर उसकी माँ बोली, “बेटा! तुम्हारे दोस्त के बारे में जानकर हमें बहुत दुःख हुआ. हो सकता है, हम उसके रहने के लिये कोई जगह तलाश कर सकें.”
“नहीं माँ! मैं चाहता हूँ कि वो हमारे साथ रहे.”
“लेकिन बेटा!” अब पिता ने कहा, “तुम समझ नहीं रहे हो कि तुम क्या चाह रहे हो? इस तरह का अपाहिज व्यक्ति हमारे लिए कितना बड़ा बोझ होगा. हमारी अपनी ज़िंदगी है, जीने के लिए और हम नहीं चाहते कि इस तरह की कोई भी परिस्थिति हमारी ज़िंदगी में दखल दे. मेरे हिसाब से तुम्हें अकेले घर आना चाहिए और अपने दोस्त को वहीं छोड़ देना चाहिए. वह अपनी ज़िंदगी जीने के लिए कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेगा.”
सुनकर उस सैनिक ने फ़ोन रख दिया. कुछ दिनों बाद, उसके माता-पिता को सैन फ्रांसिस्को पुलिस से एक संदेश मिला. जिसमें उन्हें बताया गया कि उनके बेटे की एक बिल्डिंग से गिरकर मौत हो गई है. पुलिस के हिसाब से ये एक सुसाइड केस था.
दु:खी माता-पिता ने तुरंत ही सैन फ्रांसिस्को के लिए फ्लाइट बुक कराई और वहां पहुँच गए. वहाँ उन्हें शहर के मुर्दाघर ले जाया गया, ताकि वे अपने बेटे की पहचान कर सकें. उन्होंने उसकी पहचान कर ली, किंतु ये देखकर उनकी कंपकंपी छूट गई कि उनके बेटे का बस एक हाथ और एक पैर था.
इस कहानी में जो माता-पिता हैं, वे हममें से बहुत से लोगों की तरह हैं, जो अपनी सुविधाओं को सबसे अधिक महत्व देते है. वे उन लोगों से प्यार करना या रहना या समय बिताना चाहते हैं, जो दिखने में अच्छे है, स्वस्थ हैं या फिर जिनके साथ रहकर उन्हें मज़ा आता है. वे ऐसे लोगों को पसंद नहीं करते, जो देखने में स्वस्थ, सुंदर या स्मार्ट नहीं हैं या जिनके साथ वे मज़ा नहीं कर पाते या जो किसी भी रूप में उनके लिए असुविधाजनक हैं. वे ऐसे लोगों से दूरी बनाकर रखते है.
लेकिन कभी-कभी उनके इसी व्यवहार के कारण उनके सामने ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती है, जब उन्हें पछताना पड़ता है. आइये लोगों को वे जैसे हैं, वैसे ही अपनायें और ज़रूरत पड़ने पर उनकी मदद करें ||