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नींव की तलाश: एक सेठ की चिंता

बड़े बाजार में एक शानदार हवेली बनाने की तैयारियाँ हो रही थीं। खबर थी यहाँ एक सेठ जी संगमरमर का सतखण्डा महल बनवाएँगे। लाखों रुपये खर्च होंगे। पूरा होने पर उस जैसी शानदार हवेली शहर में दूसरी कोई नहीं होगी। पूरे शहर में इस बात की चर्चा होने लगी।

मुहूर्त निकला, भूमि पूजा हुई और फिर नींव भरने के लिए खुदाई होने लगी। मजदूर तेजी से काम में लगे हुए थे। तभी एक चमचमाती कार आकर रुकी। उसमें से कीमती रेशमी वस्त्रों से सजे सेठ जी उतरे। उनकी उंगलियों में हीरे-मोती की अंगूठियाँ थीं, गले में सोने की चेन पहने हुए थे। दूर से ही पता चल जाता था कि कोई बहुत संपन्न व्यक्ति हैं।

सेठ जी आए और खड़े होकर काम देखने लगे। राज-मजदूरों का मुखिया हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। सेठ जी हँसकर बोले, “देखो, गाँव में हमारी पुश्तैनी हवेली पिछले दो सौ सालों से खड़ी है। वह आज भी उतनी ही मजबूत है। इस हवेली को भी वैसा ही बनना चाहिए। इसकी नींव जरा गहरी खुदवाओ।”

“जी, बिल्कुल ऐसा ही होगा। मैंने अब तक सैकड़ों हवेलियाँ बनवाई हैं। कहीं से कोई शिकायत नहीं मिली। आप बेफिक्र रहिए।”

“सो तो है। फिर भी जरा ध्यान रखना।” सेठ जी ने कहा।

वहीं एक बूढ़ा मजदूर काम कर रहा था। सेठ जी की बात सुनकर वह मुँह फेरकर हँसने लगा। सेठ जी ने उसे हँसते देख लिया। उन्हें लगा जैसे वह उन्हीं पर हँस रहा था। बड़े आदमी ठहरे, उनका पारा चढ़ गया। तुरंत मुंशी से कहा, “इस का हिसाब कर दो। मैं ऐसे आदमियों को नहीं रखना चाहता।”

उनके हुक्म का पालन हुआ। उस बूढ़े मजदूर का हिसाब कर दिया गया। निर्माण कार्य चलता रहा। सेठ जी कुछ देर तक खड़े-खड़े काम की रफ्तार देखते रहे। फिर कार में बैठकर चले गए।

सेठ जी घर तो चल गए, पर बूढ़े की हँसी उनके मन में कांटे की तरह कसकती रही। पता नहीं क्यों रात में कई बार नींद में एक विचित्र हँसी कानों में गूँजी। सेठ ने बूढ़े मजदूर को अपनी ओर से दंड दे दिया था, फिर भी यह समझ नहीं पाए कि बूढ़ा उनकी बात सुनकर हँसा क्यों था! कई दिन तक बात उनके मन में गड़ी रही तो उन्होंने हवेली के काम पर लगे राज-मजदूरों के मुखिया से पूछा उस बूढ़े के बारे में। लेकिन वह इतना ही बात सका कि बूढ़े मजदूर का पता ठिकाना कुछ मालूम नहीं। वह हैरान था कि सेठ जी एक साधारण मजदूर को लेकर क्यों इतने परेशान थे। उसे क्या पता था कि सेठ जी के मन में कैसा तूफान उठ रहा है।

सेठ जी कार में बैठकर लौट आए। इस बात को कई महीने बीत गए। उन्हें भी उतनी मानसिक परेशानी नहीं रही, लेकिन जब कभी बूढ़े मजदूर की हँसी याद आ जाती तो कुछ परेशान जरूर हो जाते |

एक रोज सेठ जी कार में कहीं जा रहे थे तो एकाएक उन्होंने उसी बूढ़े को एक तसले में गारा ढोते हुए देखा। उनको एकदम पूरी घटना याद आ गई। मन चंचल हो उठा। ड्राइवर को कार रोकने का आदेश दिया। उतरकर बूढ़े के पास गए। पूछा, “मुझे पहचानते हो?”

बूढ़ा पलकें झपकाता खड़ा रहा, जैसे याद करने की कोशिश कर रहा हो, फिर बोला, “आप सेठ जी हैं। शायद मैंने आपके पास कुछ दिन काम किया था, बताओ, क्या बात है? कुछ गलती हो गई क्या?” सेठ जी समझ गए कि इसे कुछ याद नहीं है।

उन्होंने बूढ़े को उस दिन की घटना याद दिलानी चाही। उसे बताया कि कैसे क्या हुआ था। उसे क्यों काम से हटा दिया गया था। बूढ़ा कुछ देर सोचता रहा, फिर उसके होंठों पर हँसी झलकने लगी। बोला, “वाह सेठ जी, आपने खूब याद रखी वह बात। लेकिन मैंने तो कुछ नहीं कहा था।”

“फिर भी…” सेठ जी ने जानना चाहा कि वह क्यों हँसा था।

बूढ़े ने गारे का तसला एक तरफ रख दिया। सिर पर बंधा कपड़ा फटकारता हुआ बोला, “सेठ जी, आपने कहा था न आपकी गाँव वाली हवेली पिछले दो सौ सालों से खड़ी है। आपने नई हवेली की नींव खूब गहरी खोदने को कहा, इसी पर हँसी आ गई थी। मैं इतना बूढ़ा हो गया, न जाने कितनी हवेलियाँ खड़ी करवा दीं। कैसे-कैसे बड़े सेठों को देखा। आज हवेलियाँ तो खड़ी हैं पर मजबूत हवेलियां बनवाने वाले सेठों का कहीं पता नहीं। हर आदमी इमारत की गहरी नींव की बात करता है| आप भी जब वैसी बात करने लगे तो मुझे हँसी आ गई। आपको बुरी लगी मेरी हँसी, क्षमा करना।” कहकर बूढ़े ने हाथ जोड़ दिए।

सेठ जी ने बूढ़े मजदूर के हाथ थाम लिए। बोले, “नहीं बाबा, मुझे और शर्मिंदा मत करो। सचमुच मैं भी पागल हूँ, ईंट-पत्थर की इमारतों की नींव मजबूत करने की चिंता कर रहा हूँ, लेकिन आज पहली बार पता चला कि मेरी अपनी नींव कहाँ है—इसका कुछ पता ही नहीं।

सेठ जी को अपनी बात जवाब नहीं मिला। बूढ़ा मजदूर फिर गारे का तसला सिर पर रख कर जा चुका था, लेकिन सेठ जी को नई रोशनी दिख गई थी। मन की बेचैनी शांत हो गई थी।

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