दड़बे की मुर्गी !💐
एक शिष्य अपने गुरु के पास पहुंचा और बोला, ” लोगों को खुश रहने के लिए क्या चाहिए?”
“तुम्हे क्या लगता है?”, गुरु ने शिष्य से खुद इसका उत्तर देने के लिए कहा.
शिष्य एक क्षण के लिए सोचने लगा और बोला, “मुझे लगता है कि अगर किसी की मूलभूत आवश्यकताएं पूरी हो रही हों… खाना-पीना मिल जाए …रहने के लिए जगह हो…एक अच्छी सी नौकरी या कोई काम हो… सुरक्षा हो…तो वह खुश रहेगा.”
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यह सुनकर गुरु कुछ नहीं बोले और शिष्य को अपने पीछे आने का इशारा करते हुए चलने लगे.
वह एक दरवाजे के पास जाकर रुके और बोले, “इस दरवाजे को खोलो…”
शिष्य ने दरवाजा खोला, सामने मुर्गी का दड़बा था. वहां मुर्गियों और चूजों का ढेर लगा हुआ था… वे सभी बड़े-बड़े पिंजड़ों में कैद थे….
“आप मुझे ये क्यों दिखा रहे हैं.” शिष्य ने आश्चर्य से पूछा.
इस पर गुरु शिष्य से ही प्रश्न-उत्तर करने लगे.
“क्या इन मुर्गियों को खाना मिलता है?’”
“हाँ.”
“क्या इनके पास रहने को घर है?”
“हाँ… कह सकते हैं.”
“क्या ये यहाँ कुत्ते-बिल्लियों से सुरक्षित हैं?”
“हम्म”
“क्या उनके पास कोई काम है?”
“हाँ, अंडा देना.”
“क्या वे खुश हैं?”
शिष्य मुर्गियों को करीब से देखने लगा. उसे नहीं पता था कि कैसे पता किया जाए कि कोई मुर्गी खुश है भी या नहीं…और क्या सचमुच कोई मुर्गी खुश हो सकती है?
वो ये सोच ही रहा था कि गुरूजी बोले, “मेरे साथ आओ.”
दोनों चलने लगे और कुछ देर बाद एक बड़े से मैदान के पास जा कर रुके. मैदान में ढेर सारे मुर्गियां और चूजे थे… वे न किसी पिंजड़े में कैद थे और न उन्हें कोई दाना डालने वाला था… वे खुद ही ढूंढ-ढूंढ कर दाना चुग रहे थे और आपस में खेल-कूद रहे थे.
“क्या ये मुर्गियां खुश दिख रही हैं?” गुरु जी ने पूछा.
शिष्य को ये सवाल कुछ अटपटा लगा, वह सोचने लगा…यहाँ का माहौल अलग है…और ये मुर्गियां प्राकृतिक तरीके से रह रही हैं… खा-पी रही रही है…और ज्यादा स्वस्थ दिख रही हैं…और फिर वह दबी आवाज़ में बोला-
“शायद!”
“बिलकुल ये मुर्गियां खुश है, बेतुके मत बनो,” गुरु जी बोले, ” पहली जगह पर जो मुर्गियों हैं उनके पास वो सारी चीजें हैं जो तुमने खुश रहने के लिए ज़रूरी मानी थीं.
उनकी मूलभूत आवश्यकताएं… खाना-पीना, रहना सबकुछ है… करने के लिए काम भी है….सुरक्षा भी है… पर क्या वे खुश हैं?
वहीँ मैदानों में घूम रही मुर्गियों को खुद अपना भोजन ढूंढना है… रहने का इंतजाम करना है… अपनी और अपने चूजों की सुरक्षा करनी है… पर फिर भी वे खुश हैं…”
_गुरु जी गंभीर होते हुए बोले, ” हम सभी को एक चुनाव करना है, “या तो हम दड़बे की मुर्गियों की तरह एक पिंजड़े में रह कर जी सकते हैं एक ऐसा जीवन जहाँ हमारा कोई अस्तित्व नहीं होगा… या हम मैदान की उन मुर्गियों की तरह जोखिम उठा कर एक आज़ाद जीवन जी सकते हैं और अपने अन्दर समाहित अनन्त संभावनाओं को टटोल सकते हैं…तुमने खुश रहने के बारे में पूछा था न… तो यही मेरा जवाब है… सिर्फ सांस लेकर तुम खुश नहीं रह सकते… खुश रहने के लिए तुम्हारे अन्दर जीवन को सचमुच जीने की हिम्मत होनी चाहिए…. इसलिए खुश रहना है तो दड़बे की मुर्गी मत बनो!”
In English
Avalanche chicken! 💐
A disciple approached his guru and said, “What do people need to be happy?”
“What do you think?”, The Guru asked the disciple to answer it himself.
The disciple started thinking for a moment and said, “I think if someone’s basic needs are being fulfilled… get food and drink… have a place to live… have a good job or some work… security… then He will be happy. ”
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Hearing this, the Guru did not say anything and started walking, indicating to the disciple to follow him.
He stopped near a door and said, “Open this door…”
The disciple opened the door, hen was in front. There was a pile of chickens and chickens… They were all imprisoned in big cages….
“Why are you showing me this?” The disciple asked in surprise.
On this, the Guru started answering questions from the disciple itself.
“Do these chickens get food?”
“Yes.”
“Do they have a home to live in?”
“Yes… you can say that.”
“Are they safe from dogs and cats here?”
“Hmm”
“Do they have any work?”
“Yes, lay eggs.”
“Are they happy?”
The disciple started watching the chickens closely. He did not know how to know whether a chicken is happy or not… and can a chicken really be happy?
He was thinking that Guruji said, “Come with me.”
Both started walking and after some time stopped near a big field. There were a lot of chickens and chickens in the field… they were not imprisoned in any cage nor were they going to feed them.
“Do these chickens look happy?” Guruji asked.
The disciple felt this question a bit strange, he started thinking… the atmosphere here is different… and these chickens are living in a natural way… eating and drinking… looking more healthy… and then he said in a suppressed voice –
“Maybe!”
“All these chickens are happy, don’t be ridiculous,” Guruji said, “The chickens in the first place have all the things you considered necessary to be happy.
Their basic needs… eating and drinking, living is everything… there is work to do… also safety… but are they happy?
While the chickens roaming in the plains have to find their own food… have to make arrangements for living… have to protect themselves and their chickens… but still they are happy… ”
_Guru ji said being serious, “We all have to make a choice,” either we can live in a cage like avid chickens, a life where we will have no existence… or we can take care of those chickens in the field. By taking risks, you can live a free life and explore the infinite possibilities contained within you… You did not ask about being happy… So this is my answer… You cannot be happy just by breathing… to be happy. You must really dare to live life in you…. So if you want to be happy, don’t be a chicken hen! “