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मन चंगा तो कठौती में गंगा

मन चंगा तो कठौती में गंगा’
भक्त रैदास का रहन-सहन गृहस्थ जीवन में रहने के बाद भी संतों जैसा ही था। पेशा था, जूते-चप्पल बनाना और उनकी मरम्मत करना। एक बार कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा-स्नान पर्व के समय बड़ी संख्या में लोग गंगाघाट की ओर जा रहे थे। लेकिन रैदास की तो दुनिया ही अलग थी। वह अपने काम में रमे रहते और मधुर स्वर से भजन गाया करते थे। एक महिला रैदास के पास अपनी चप्पल ठीक कराने आई तो उसने पूछा, ‘सब गंगा स्नान करने जा रहे हैं, भगतजी। मैं भी जा रही हूं। आप नहीं जाओेगे क्या?’ रैदास ने जूतों के ढेर की ओर इंगित करते हुए कहा, ‘यह देखो बहन, इतना सारा काम ले रखा है। समय पर सबको देना है। मैं तो यहीं अपना काम करता-करता गंगा मां के भाव दर्शन कर लूंगा।’
महिला वहां से गंगा स्नान करने के लिए चली गई। जब वही महिला गंगा स्नान करके लौटी तो रैदास भक्त से फिर मिलने आई। वह काफी निराश और उदास थी। उस समय रैदास भजन कर रहे थे। उन्होंने भजन पूरा कर महिला से निराशा का कारण पूछा तो वह बोली, ‘गंगा की धारा में डुबकी लगा रही थी, न जाने कैसे सोने का कंगन पानी में ही छूट गया।’ महिला मन और भावों से बहुत साफ थी। उसे आभूषण खोने का गम सता रहा था। उसके दुख का असर चेहरे पर साफ दिख रहा था।
इस पर रैदास ने अपना हाथ पास में रखी कठौती (चमड़ा भिगोने के लिए पानी से भरा पात्र) में डाला और सोने के दो कंगन निकाल कर बोले, ‘देखो, कहीं यह तो नहीं?’ महिला की आंखें खुशी से चमक उठीं। वह बोली, ‘हां भगतजी! यही हैं मेरे कंगन, लेकिन ये तो बहती गंगा में गिर गए थे, यहां आपकी कठौती में कैसे? रैदास ने कहा, ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा। मन को चंगा रखो तो जहां हो वहीं तीर्थस्नान का लाभ मिल जाएगा।

English Translation

If Mind is healthy the everything is fine’
The living of Bhakta Raidas was similar to that of the saints even after living in the household life. The profession was to make footwear and repair them. Once during the Ganga-Snan festival on Kartik Purnima, a large number of people were going towards Gangaghat. But Raidas had a different world. He used to live in his work and sang hymns with a melodious voice. When a lady came to Raidas to get her sandal fixed, she asked, ‘All Ganga is going to bathe, Bhagatji. I am also going. Won’t you go? ‘ Pointing to the pile of shoes, Raidas said, ‘Look here sister, you have taken all this work. Time has to be given to everyone. I will do my work here, I will see the spirit of Ganga Maa. ‘
The woman went from there to take a bath in the Ganges. When the same woman returned after taking a bath in the Ganges, Raidas came again to meet the devotee. She was quite disappointed and depressed. At that time, Raidas was doing bhajan. When he completed the hymn and asked the woman the reason for despair, she said, ‘I was taking a dip in the Ganges stream, do not know how the gold bracelet was left in the water.’ The woman was very clear of mind and emotions. He was suffering from the loss of jewelery. The effect of his grief was clearly visible on his face.
On this, Raidas put his hand in a kathouti (vessel filled with water to soak the leather) and took out two gold bracelets and said, ‘Look, is it at all?’ The woman’s eyes shone with joy. She said, ‘Yes Bhagatji! This is my bracelet, but it had fallen into the flowing Ganges, how in your battle here? Raidas said, ‘If the mind is healed, Ganga is in disarray. Keep your mind healthy, you will get the benefit of the pilgrimage wherever you are.

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