इक तमना है जीवन की निधि वन रात बिताऊ
समाने श्याम हॉवे फिर चाहे मैं मर जाऊ,
चाहे मैं मर जाऊ चाहे मैं मर जाऊ,
समाने श्याम हॉवे फिर चाहे मैं मर जाऊ,
निधि वन की सब लता पताये,
देख श्याम को नित हरषाए,
मुझपर मोहन रीज गए तो मैं भी नित हरषाऊ,
समाने श्याम हॉवे फिर चाहे मैं मर जाऊ,
रंग मेहल की छटा सुहाए
रास रसीली सुध बिसराए
युगल छवि हो समाने मेरे पलके न झ्प्काऊ,
समाने श्याम हॉवे फिर चाहे मैं मर जाऊ,
रंग संवारा रूप सलोना
चाहू निधिवन का इक कोना
केवल कोई प्यास रहे न एसी प्यास बुजाऊ
समाने श्याम हॉवे फिर चाहे मैं मर जाऊ……………