मूर्तिकार की कल्पना, उंगलियों की जादूगरी, छेनी की हजारों चोट और रेती की घिसाई। और इस तरह महीनों की तपस्या के बाद वह मूर्ति उभरती है, जिसमें देवता निवास करते हैं। पर मूर्ति से देवता होने की प्रक्रिया भी इतनी सहज कहाँ…
सोच कर देखिये, पूरा संसार बड़े बड़े पत्थरों, पहाड़ों से भरा हुआ है। बड़े बड़े पहाड़ तोड़ कर सड़क के नीचे डाल दिये जाते हैं। घर की दीवालों में जोड़ दिए जाते हैं, फर्श में लगा दिए जाते हैं। पर उन्ही में किसी पत्थर का भाग्य उसे देवता बना देता है न? सौभाग्य-दुर्भाग्य का भेद केवल मनुष्य के लिए ही नहीं, हर जीव जन्तु, नदी तालाब, माटी पत्थर के लिए भी होता है।
प्राण प्रतिष्ठा के पूर्व देव की आंखों पर पट्टी बांध दी जाती है। ऐसा क्यों? इसका शास्त्रीय उत्तर तो विद्वान जानें, मुझे जो लौकिक उत्तर समझ में आता है, वह सुनिये।
जब तक प्राण प्रतिष्ठा नहीं होती तब तक वह केवल मूर्ति होती है, पर प्रतिष्ठा होते ही वे देव हो जाते हैं। तो देव की पहली दृष्टि किसपर पड़े? कौन सहन कर पायेगा वह तेज? क्या कोई सामान्य जन? कभी नहीं। तो इसका सबसे सहज उपाय ढूंढा गया कि देव की पहली दृष्टि सीधे देव पर ही पड़े। इसीलिए आंखों की पट्टी खोलते समय उनके सामने आईना लगा दिया जाता है। इस भाव से कि आपन तेज सम्हारो आपै… इस तरह देव की पहली दृष्टि उन्ही पर पड़ती है, वे अपना तेज स्वयं ही सम्हारते हैं। कितना सुंदर विधान है न?
प्राणप्रतिष्ठा के पूर्व विग्रह को जलाधिवास, अन्नाधिवास, फलाधिवास, घृताधिवास और फिर शय्याधिवास में रखा जाता है। एक रात जल में निवास होता है, फिर अन्न से ढक कर रखा जाता है, फिर पुष्पादि से…. घी और फिर शय्या… जहाँ जहाँ जीवन है, जीवन के लिए आवश्यक तत्व हैं, वहाँ वहाँ से तेज प्राप्त करती है मूर्ति! उसके बाद होता है देव का आवाहन, और फिर वे विराजते हैं विग्रह में… इसके बाद खुलता है पट। लम्बी चरणबद्ध प्रक्रिया है… देवत्व यूँ ही नहीं आता।
कल कहीं एक मूर्खतापूर्ण प्रश्न पढ़ा। किसी ने लिखा था कि मनुष्य ईश्वर की प्राणप्रतिष्ठा कैसे कर सकता है? बकवास प्रश्न है यह। मनुष्य मूर्ति में ही नहीं, सृष्टि के कण कण में देवता को देख सकता है, पर इसके लिए हृदय में श्रद्धा होनी चाहिये। जैसे बिना आंखों के आप संसार को नहीं देख सकते, वैसे हीं बिना श्रद्धा के आप ईश्वर को नहीं देख सकते |
प्राण प्रतिष्ठा कैसे की जाती है?
प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम में विद्वान, पंडित और कर्मकांडी पूजा, मंत्रों का जाप, स्नान के जरिए भगवान की मूर्ति को स्थापित करते हैं. प्राण प्रतिष्ठा के समय जो पुजारी भगवान की प्रतिमा लेकर मंदिर में प्रवेश करता है तो सबसे पहले उस पुजारे के पैर धोए जाते हैं. इसके बाद मूर्ति को स्नान कराने के बाद वस्त्र पहनाए जाते हैं.
घर में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कैसे करें?
शुभ मुहूर्त में ही मूर्ति को मंदिर में स्थापित करें. इसके लिए अभिजीत मुहूर्त सही और बेहद शुभ होता है. आपको बता दें कि इसी समय अयोध्या में राम मंदिर में श्री राम भगवान की प्राण प्रतिष्ठा होगी. मूर्ति का जलाभिषेक भी अवश्य करें
मंदिर में शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा कैसे की जाती है?
ॐ (15 बार) मम देहस्य पंचदश संस्काराः सम्पद्यन्ताम् इत्युक्त्वा। विधि- जिस विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा करना हो पहले उसका षोडषोपचार पूजन करें फिर हाथ मे जल लेकर संकल्प करें फिर उपरोक्त विधि से प्राण प्रतिष्ठित करें फिर षोडषोपचार पूजन करें इस प्रकार प्राण प्रतिष्ठा सम्पन्न होगा।
श्री राम प्राण प्रतिष्ठा क्या है?
नवनिर्मित राम जन्मभूमि मंदिर में श्री राम लल्ला की मूर्ति का शुभ और विशाल प्राण प्रतिष्ठा समारोह 22 जनवरी को मंदिर शहर अयोध्या में हुआ। प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के लिए कई कार्यक्रम और अनुष्ठान आयोजित किए गए, जिसमें एक संगीतमय कार्यक्रम भी शामिल था।
क्या हम घर पर प्राण प्रतिष्ठा कर सकते हैं?
1) दोपहर 1 बजे तक घर पर भगवान राम की पूजा कर सकते हैं । 2) संयुक्त पूजा भगवान राम और देवी सीता दोनों के नामों का जाप करके की जानी चाहिए। 3) अनुष्ठान पीले रंग के कपड़े पहनकर करना चाहिए और मूर्ति के सामने एक दीया रखना चाहिए।
घर में मूर्ति की स्थापना कैसे करें?
Ghar ke mandir me murti kaise rakhe? घर में मंदिर या मूर्ति रखने के लिए सबसे अच्छी दिशा ईशान कोण या ईशान कोण है, जिसे वास्तु शास्त्र के अनुसार शुभ माना जाता है। पूजा कक्ष वास्तु के अनुसार, देवताओं का मुख पश्चिम की ओर हो सकता है ताकि पूजा करते समय आपका मुख पूर्व दिशा की ओर रहे।
शिवलिंग की पूजा करते समय मुंह किधर होना चाहिए?
शास्त्रों के अनुसार, दक्षिण दिशा में खड़े होकर शिवलिंग पर जल चढ़ाना चाहिए। कभी भी आपका मुख उत्तर, पूर्व या पश्चिम दिशा में नहीं होना चाहिए। इसे शुभ नहीं माना जाता। क्योंकि शास्त्रों के अनुसार, इन दिशाओं में शिव जी की पीठ, कंधा आदि होते हैं।