कल्पना करिए।
एक ऐसा पेड़ जिसकी पत्तियों एवं फलियों में 300 से अधिक रोगों की रोकथाम के गुण, 92 विटामिन्स, 46 एंटी आक्सीडेंट, 36 दर्द निवारक और 18 तरह के एमिनो एसिड मिलते हों, तो इसे पेड़ की जगह चमत्कार ही मानेंगे न। आपके इर्द-गिर्द यूं ही उगने वाले ‘सहजन’ में यह सभी गुण मिलते हैं।
इसकी खूबियां यहीं खत्म नहीं होतीं। चारे के रूप में इसकी हरी या सूखी पत्तियों के प्रयोग से पशुओं के दूध में डेढ़ गुने से अधिक और वजन में एक तिहाई से अधिक की वृद्धि की रिपोर्ट है। यही नहीं इसकी पत्तियों के रस को पानी के घोल में मिलाकर फसल पर छिड़कने से उपज में सवाया से अधिक की वृद्धि होती है। कुपोषण, एनीमिया (खून की कमी) के खिलाफ जंग में सर्वसुलभ और हर जगह पैदा होने वाला सहजन उपेक्षित है।
राष्ट्रीय बागवानी शोध एवं विकास संस्थान (एनएचआरडीएफ) के उप निदेशक डा.रजनीश मिश्र के मुताबिक करीब पांच हजार साल पहले आयुर्वेद ने सहजन की जिन खूबियों को पहचाना था, आधुनिक विज्ञान में वे साबित हो चुकी हैं। दुर्भाग्य से जिनको (आम आदमी) इसके गुणों को जानना चाहिए वही इससे अनजान हैं। डा.मिश्र के अनुसार इसका मूल स्थान हिमालय की तराई ही है। यही वजह है कि यहां जहां-तहां सहजन के पेड़ दिख जाते हैं। इसे दैवी चमत्कार ही कहेंगे कि दुनियां में जहां-जहां कुपोषण की समस्या है वहां सहजन का वजूद है। देश के अपेक्षाकृत प्रगतिशील दक्षिणी भारत के राज्यों आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और कर्नाटक में इसकी खेती होती है। साथ ही इसकी फलियों और पत्तियों का कई तरह से प्रयोग भी। तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय ने पीकेएम-1 और पीकेएम-2 नाम से दो प्रजातियां विकसित की हैं। पीकेएम-1 यहां के कृषि जलवायु क्षेत्र के अनुकूल भी है। इच्छुक किसानों को एनएचआरडीएफ बीज मुहैया कराने के साथ ही खेती के उन्नत तरीकों के बारे में भी बताएगा’
सहजन के पौष्टिक गुणों की तुलना
-विटामिन सी- संतरे से सात गुना।
-विटामिन ए- गाजर से चार गुना।
-कैलशियम- दूध से चार गुना।
-पोटेशियम- केले से तीन गुना।
-प्रोटीन- दही की तुलना में तीन गुना।
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सेंजन, मुनगा या सहजन आदि नामों से जाना जाने वाला सहजन औषधीय गुणों से भरपूर है। इसके अलग-अलग हिस्सों में 300 से अधिक रोगों के रोकथाम के गुण हैं। इसमें 92 तरह के मल्टीविटामिन्स, 46 तरह के एंटी आक्सीडेंट गुण, 36 तरह के दर्द निवारक और 18 तरह के एमिनो एसिड मिलते हैं। चारे के रूप में इसकी पत्तियों के प्रयोग से पशुओं के दूध में डेढ़ गुना और वजन में एक तिहाई से अधिक की वृद्धि की रिपोर्ट है। यही नहीं इसकी पत्तियों के रस को पानी के घोल में मिलाकर फसल पर छिड़कने से उपज में सवाया से अधिक की वृद्धि होती है। इतने गुणों के नाते सहजन चमत्कार से कम नहीं है। गोरखपुर में राष्ट्रीय बागवानी शोध एवं विकास संस्थान के उपनिदेशक रजनीश मिश्र ने बताया कि करीब पांच हजार वर्ष पूर्व आयुर्वेद ने सहजन की जिन खूबियों को पहचाना था, आज के वैज्ञानिक युग में वे साबित हो चुकी हैं। सहजन को अंग्रेजी में ड्रमस्टिक कहा जाता है। इसका वनस्पति नाम मोरिंगा ओलिफेरा है। फिलीपीन्स, मैक्सिको, श्रीलंका, मलेशिया आदि देशों में भी सहजन का उपयोग बहुत अधिक किया जाता है। दक्षिण भारत में व्यंजनों में इसका उपयोग खूब किया जाता है।
English Translation
Imagine that
A tree that has more than 300 disease prevention properties, 92 vitamins, 46 anti-oxidants, 36 pain relievers and 18 types of amino acids in its leaves and legumes, would not be considered a miracle instead of a tree. All these qualities are found in the ‘Sahajan’ that grows around you.
Its merits do not end here. The use of its green or dry leaves as fodder has been reported to increase animal milk by more than one-and-a-half times and increase in weight by more than one-third. Not only this, by mixing the juice of its leaves in water solution and sprinkling it on the crop, the yield increases more than two times. The battle against malnutrition, anemia (anemia), and all-encompassing diseases are neglected.
According to Dr. Rajneesh Mishra, Deputy Director of the National Institute of Horticultural Research and Development (NHRDF), about five thousand years ago, Ayurveda recognized the merits of dredging, they have been proved in modern science. Unfortunately those who (common man) should know its qualities are unaware of it. According to Dr. Misra, its original place is only the foothills of the Himalayas. This is the reason why drumstick trees are seen everywhere. It would be called a divine miracle that wherever there is a problem of malnutrition in the world, there is a presence of drunkenness. It is cultivated in the relatively progressive southern Indian states of Andhra Pradesh, Telangana, Tamil Nadu and Karnataka. Also, its beans and leaves are also used in many ways. Tamil Nadu Agricultural University has developed two species named PKM-1 and PKM-2. PKM-1 is also adapted to the agro-climatic zone here. Apart from providing seed to interested farmers, NHRDF will also tell about advanced farming methods. ‘
Comparison of nutritional properties of drumstick
-Vitamin C- Seven times orange.
-Vitamin A- Four times carrots.
-Calcium – four times milk.
-Potassium- three times the banana.
-Protein- three times than curd.
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The drumstick known as sensean, munga or drumstick etc. is full of medicinal properties. Its individual parts have preventive properties of more than 300 diseases. It has 92 types of multivitamins, 46 types of anti-oxidant properties, 36 types of pain relievers and 18 types of amino acids. The use of its leaves as fodder has been reported to increase animal milk by one-and-a-half times and by more than a third in weight. Not only this, by mixing the juice of its leaves in water solution and spraying it on the crop, the yield increases more than two times. Being so virtuous is nothing short of a miracle. Rajneesh Mishra, deputy director of the National Horticultural Research and Development Institute in Gorakhpur, said that about five thousand years ago, the characteristics of Ayurveda which were recognized by Ayurveda have been proved in today’s scientific era. Drumstick is called drumstick in English. Its botanical name is Moringa oleifera. In countries like Philippines, Mexico, Sri Lanka, Malaysia etc., drumstick is also used a lot. It is used extensively in cuisine in South India.