हिन्दू मान्यताओं के अनुसार आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को इन्दिरा एकादशी कहा जाता है। इस शुभ दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इन्दिरा एकादशी व्रत सभी प्रकार के कष्टों को दूर करता है।
इन्दिरा एकादशी व्रत 2016 (Indira Ekadashi Vrat)
साल 2016 में इन्दिरा एकादशी व्रत 26 सितंबर, दिन सोमवार को रखा जाएगा। पितृपक्ष की एकादशी होने के कारण यह एकादशी पितरों की मुक्ति के लिए उत्तम मानी गई। पितृपक्ष में मनाई जाने वाली इस एकादशी को पितरों के लिए विशेष माना जाता है।
इन्दिरा एकादशी व्रत विधि (Indira Ekadashi Vrat Vidhi in Hindi)
पद्म पुराण के अनुसार एकादशी व्रतों के नियमों का पालन दशमी तिथि से किया जाता है, जिसमें एक बार भोजन, ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। अगले दिन यानि एकादशी व्रत के दिन स्नानादि से पवित्र होकर व्रत संकल्प लेना चाहिए।
पितरों का आशीष लेने के लिए विधि- पूर्वक श्राद्ध कर ब्राह्मण को भोजन व दक्षिणा देना चाहिए। पितरों को दिया गया अन्न- पिंड गाय को खिलाना चाहिए। फिर धूप, फूल, मिठाई, फल आदि से भगवान विष्णु का पूजन करने का विधान है।
उसके बाद अगले दिन यानि द्वादशी तिथि को सवेरा होने पर पुन: पूजन कर ब्राह्मणों को भोजन करवाकर, परिवार के साथ मौन होकर भोजन करना चाहिए।
इन्दिरा एकादशी व्रत का महत्त्व (Importance of Indira Ekadashi Vrat in Hindi)
पद्म पुराण के अनुसार इन्दिरा एकादशी व्रत, साधक की मृत्यु के बाद भी प्रभावित करता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति के सभी पापों का नाश तथा स्वर्गलोक प्राप्त करता है। इस व्रत के प्रभाव से जातक के पितरों का दोष भी समाप्त होता है।
1. हिन्दू एकादशियां
हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार 24 एकादशियों में से एक एकादशी है ‘इंदिरा एकादशी’। कई बार किसी वर्ष में अधिक मास होने के कारण 26 एकादशियां भी होती हैं, लेकिन इंदिरा एकादशी हर वर्ष अश्विन मास में आने वाली एकादशी है। यह कृष्ण पक्ष की एकादशी है।
2. इंदिरा एकादशी
यह एकादशी हमेशा श्राद्ध पक्ष के भीतर ही आती है इसलिए इसका व्रत करने का फल पितरों की शांति से जोड़ा गया है। लेकिन इसके अलावा भी इंदिरा एकादशी को करने के अनेक फायदे हैं। परन्तु उससे पहले जानिए इंदिरा एकादशी की पौराणिक कथा…
3. कृष्ण पक्ष की एकादशी
महाभारत काल में धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्रीकृष्ण से कहने लगे, “भगवान! आश्विन कृष्ण एकादशी का क्या नाम है? कृपया आप मुझे इसकी विधि तथा फल बताएं। इस पर भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि इस एकादशी का नाम इंदिरा एकादशी है। यह एकादशी पापों को नष्ट करने वाली तथा पितरों को अधोगति से मुक्ति देने वाली होती है और फिर आगे भगवान इसकी कथा सुनाते हैं।
4. राजा इंद्रसेन
जिसके अनुसार प्राचीनकाल में सतयुग के समय में महिष्मति नाम की एक नगरी में इंद्रसेन नाम का एक प्रतापी राजा धर्मपूर्वक अपनी प्रजा का पालन करते हुए शासन करता था। कहते हैं कि उस राजा को किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी।
5. तभी नारद मुनि आए
पुत्र, पौत्र और धन आदि से संपन्न वह राजा सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु जी का परम भक्त था। एक दिन राजा सुखपूर्वक अपनी सभा में बैठा था कि अचानक आकाश मार्ग से महर्षि नारद उतरकर उसकी सभा में आए। उन्हें देखते ही राजा हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और उनका अपनी सभा में स्वागत किया।
6. राजा से प्रश्न किया
सुख से बैठकर मुनि ने राजा से पूछा कि हे राजन! आपके सातो अंग कुशलपूर्वक तो हैं? तुम्हारी बुद्धि धर्म में और तुम्हारा मन विष्णु भक्ति में तो रहता है? नारद मुनि की ऐसी बातें सुनकर पहले तो राजा कुछ भौचक्का रह गया लेकिन फिर विनम्रता से बताया।
7. राजा हैरान हुए
हे महर्षि! आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल है। किसी को किसी प्रकार का कोई कष्ट नहीं है। हमारे यहां सभी धार्मिक कार्य भी सही तरीके से हो रहे हैं। आप कृपा करके अपने आगमन का कारण कहिए। तब ऋषि कहने लगे कि हे राजन! जो दृश्य मैं देखकर आ रहा हूं उसे तुम्हें बताना बेहद आवश्यक है।
8. नारद मुनि ने अपने आगमन का कारण बताया
ऋषि आगे बोले, मैं एक समय ब्रह्मलोक से यमलोक को गया, वहां श्रद्धापूर्वक यमराज से पूजित होकर मैंने धर्मशील और सत्यवान धर्मराज की प्रशंसा की। उसी यमराज की सभा में महान ज्ञानी और धर्मात्मा तुम्हारे पिता को एकादशी का व्रत भंग होने के कारण देखा।
9. पिता का हाल बताया
तुम्हारे जैसे विद्वान राजा के पिता को ऐसे स्थान पर देखकर मैं हैरान हो गया। मेरा यहां आने का यही कारण है राजन्। तुम्हारे पिता ने तुम्हारे लिए एक संदेश भेजा है। उन्होंने कहा कि पूर्व जन्म में कोई विघ्न हो जाने के कारण मैं यमराज के निकट रह रहा हूं, सो हे पुत्र यदि तुम आश्विन कृष्ण इंदिरा एकादशी का व्रत मेरे निमित्त करो तो मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है।
10. पितरों की आत्मा की शांति के लिए
इसी मान्यता के आधार आज तक पितरों की आत्मा की शांति के लिए एवं उनके उद्धार के लिए इंदिरा एकादशी का व्रत रखा जाता है। संदेश पाने के बाद जिज्ञासु राजा ने नारद मुनि से इस एकादशी के व्रत को करने की विधि पूछी।
11. व्रत विधि
उत्तर में नारद बोले, ‘आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन प्रात:काल उठकर श्रद्धापूर्वक स्नान करें और फिर अपने पितरों का श्राद्ध करें और एक बार भोजन करें। प्रात:काल होने पर एकादशी के दिन दातून आदि करके स्नान करें, फिर व्रत के नियमों को भक्तिपूर्वक ग्रहण करते हुए प्रतिज्ञा करें कि ‘मैं आज संपूर्ण भोगों को त्याग कर निराहार एकादशी का व्रत करूंगा।
12. शालिग्राम की मूर्ति की पूजा
पूजा के लिए शालिग्राम की मूर्ति को स्थापित करें। शालिग्राम की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराना चाहिए और फिर पूजा के दौरान भोग लगाना चाहिए। पूजा समाप्त होने पर शालिग्राम की मूर्ति की आरती भी करनी चाहिए।
13. ब्राह्मणों को भोजन कराएं
पूजा के दौरान कहें ‘हे अच्युत! हे पुंडरीकाक्ष! मैं आपकी शरण हूं, आप मेरी रक्षा कीजिए। पूजा के बाद नियमों का खास ध्यान रखते हुए ब्राह्मणों का भोजन तैयार करें और उन्हें भोजन कराएं, साथ ही दक्षिणा भी दें।
14. व्रत की मान्यता
ऐसा माना जाता है कि कोई भी मनुष्य यदि इंदिरा एकादशी की तिथि को आलस्य रहित होकर इस एकादशी का व्रत करता है, उसके पितरों को अवश्य स्वर्गलोक प्राप्त होता है।