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तपस्विनी उर्मिला!!

“मानस-मंदिर में सती पति की प्रतिमा थाप,
जलती सी उस विरह में बनी आरती आप !
आँखों में प्रिय मूर्ति थी भूले थे सब भोग,
हुआ योग से भी अधिक उसका विषम-वियोग !
आठ पहर चौंसठ घड़ी स्वामी का ही ध्यान,
छूट गया पीछे स्वयं उससे आत्मज्ञान ! ,,


“तपस्विनी उर्मिला”
उर्मिला इस धरा की अनमोल मोती है . रामायण की सबसे मूक एवं गम्भीर नायिका है. त्याग के मामले में शायद रामायण में उर्मिला से अधिक त्यागमयी नारी का वर्णन नहीं हुआ है. कर्तव्य निष्ठा , वचन निभाने वाली सरला,निश्छल एवं सुशीला स्वभाव की नारी थीं उर्मिला !
विस्तार में जाने-
यह जनकपुर के राजा जनक की बेटी थीं, और उनकी माता रानी सुनयना थीं। सीता उनकी बड़ी बहन थीं। वह राम के अनुज लक्ष्मण की पत्नी थीं। लक्ष्मण सुमित्रा के पुत्र और शत्रुघ्न के जुड़वे भाई थे। लक्ष्मण और उर्मिला के दो पुत्र थे जिनका नाम थे – अंगद और चन्द्रकेतु !
अनकहे अनसुने प्रसंग:-
२–बहन की प्यारी -दुलारी :-
“चलो दीदी! क्या आपको आज पूजा के लिए पुष्पवाटिका से फूल नहीं लाने? “और फिर कुछ छेड़ते हुए उर्मिला ने कहा, “आपको तो अपने प्रिय के लिए माला भी बनानी है दीदी !” चल हट ,देख रही हूँ आजकल तू अधिक बोलने लगी है !
३– कर्तव्य परायण :-
विवाह बाद जब लक्ष्मण भैया राम, सीता के साथ वनवास जाने लगे तो इन्होंने अपने पति के रास्ते में रोड़ा न बनने और खुद को उनके अंदर से प्रेम को कम करने के लिए एक नाटक रचा ! लक्ष्मण वन जाने से पहले उर्मिला से मिलने भवन में जाते हैं और देखते हैं !
उर्मिला सोलह श्रृंगार में सजा-धज कर हैं ,देखकर वे उनपर बहुत क्रोधित हुए और जब उर्मिला से कारण पूछा तो उन्होंने कहा- “मैंने आप से विवाह इसीलिए किया कि मैं राजसी ठाठ-बाट भोग सकूँ।” ये सुनकर लक्ष्मण अत्यंत क्रोधित हुए, बोले कि – “मैं आज से तुम्हारा मुख तक नहीं देखूँगा।”
कुछ मान्यता ये भी है कि लक्ष्मण जाते जाते उनको पूरा परिवार का भार सौंप कर जाते है , तब उर्मिला विवश होकर माता सीता के पास जाती हैं , और रोते-२ कहती हैं कि है बहन ! आज तक आप मेरी सहायता करती अाई हो, में अकेले कैसे भार का वहन कर पाऊंगी, तब माता सीता एक वरदान देती हैं !
उन्होने बताया कि ईश कृपा से मेरे पास एक वरदान है, जो मैं तुम्हे दे सकती हूँ !
इस वरदान के अनुसार तुम एक समय में 3 कार्यो को एक साथ पूरा कर सकती हो. सीता ने उर्मिला को वरदान देते हुए कहा अब बेफ्रिक होकर 14 वर्षों तक महल और परिवार की सेवा करो ! और माता सीता चली गई !
कुछ मान्यता है, कि लक्ष्मण जाते – जाते उर्मिला से वचन लिए की आप किसी भी विपदा , शोक में अपने अश्रु को अपनी कमजोरी नहीं बनने दोगी.. इसी वचन को पूरा करने के लिए उर्मिला वनवास जाते वक़्त और महराज दशरथ के मृत्यु के तदोपरांत भी नहीं रोई उनके अश्रु जैसे सुख गए हो !
कुछ मान्यता ऐसे भी हैं, कि लक्ष्मण १४वर्ष जग सके इसलिए उर्मिला १४वर्ष तक निद्रा के आधीन रही ! और उनका निद्रा वनवास ख़तम होने के बाद ही ख़तम हुआ और तब लक्ष्मण १४ वर्ष के लिए निद्रा में चले गए ! ऐसी मान्यता है कि लक्ष्मण श्री राम के राज्याभिषेक में निद्रा के आधीन थे !
एक मान्यता है कि :-
उर्मिला लक्ष्मण को मेघनाथ द्वारा शक्ति बाण लगने की जानकारी पहले ही थी, जब हनुमान संजीवनी लेकर अयोध्या पहुंचते है तो माता उर्मिला मिलती है तब माता हनुमान जी को सब बात बताती हैं ,कि यह संजीवनी माता शबरी के झूठे बैर ही हैं जिनका उन्होंने अपमान किया था !
मेघनाथ वध :-
सुलोचना मेघनाथ की मृत्यु के पश्चात :-
पति का छिन्न शीश देखते ही सुलोचना का हृदय अत्यधिक द्रवित हो गया। उसकी आंखें बरसने लगीं ! रोते-रोते उसने पास खड़े लक्ष्मण की ओर देखा और कहा- “सुमित्रानन्दन, तुम भूलकर भी गर्व मत करना कि मेघनाद का वध मैंने किया है !
मेघनाथ को मारने का शक्ति किसी के पास नहीं थी , यह तो पतिव्रता नारियों का भाग्य था ! उर्मिला के त्याग का वर्णन खुद माता सीता भी कर चुकी हैं !
सीता जी ने भी लक्ष्मण से कहा था कि “हजारों सीता मिलकर भी उर्मिला के त्याग की बराबरी नहीं कर सकती !”
आज भी त्याग की मूर्ति को पूजा जाता है !
राजस्थान के भरतपुर जिले में लक्ष्मण और उर्मिला को समर्पित एक मंदिर है। मंदिर का निर्माण 1870 ई में भरतपुर के तत्कालीन शासक बलवंत सिंह ने करवाया था और इसे एक शाही मंदिर माना जाता है !
देवी की जितनी प्रशंसा की जाए कम है। आज इनके त्याग का वर्णन कम ही मिलता है !
जय श्री राम ||

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