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बैसाखी बीमा की

अनवरत प्रयास के बाद भी प्रीति के मानष पटल से वह घटना हट नहीं पा रही थी, जब उसका जीवन साथी पीयूष, दो अबोध बच्चों का लालन-पालन तथा दो वृद्ध जन अर्थात माँ-पिताजी की सेवा-शुश्रूषा, देखभाल की जिम्मेदारी छोड़, परमात्मा के चरण शरण को चला गया।

यूँ तो पिछले चार-पाँच माह से पीयूष रोगग्रस्त था पर प्रीति के मन में एक आस थी, उचित चिकित्सा उपरान्त पीयूष रोगमुक्त हो अपने कार्य को जाएगा और चिकित्सा में हुए खर्च तथा रोग ग्रस्त छुट्टी पर रहने के कारण मासिक वेतन ना मिलने से हो रहा धनाभाव, शनै-शनै समाप्त हो जाएगा। जीवन नैया पुनः समस्याओं के नद में, समस्या मुक्त हो चल पड़ेगी, यह उसकी कपोल कल्पित आस नहीं, पूर्ण विश्वास था।

यह क्या! पीयूष तो जीवन पथ पर उसे एकांत कर गया। एक वह दिन था जब वह पीयूष के संग व्याह कर अपने ससुराल आयी थी, उज्जवल और सुख सम्पन्न भविष्य की अगणित स्वप्न देख डाली थी।

वह घर जिसमें वह व्याह कर आई है, पीयूष के पिताजी के अर्जित धन से बना हुआ था, उसे वह सास-ससुर की सेवा से प्राप्त आशीर्वाद, अपनी श्रद्धा और श्रम से, शास्त्रों में वर्णित स्वर्ग समान सुसज्जित करेगी, हमारे दो बच्चे होंगे, दोनों को अति शिक्षित कर प्रशासनिक सेवा में लगाएगी, गर्व से वक्ष चौड़ी कर परिवार-समाज को दिखाएगी।

प्रीति, स्वयं एक प्रशासनिक पदाधिकारी बनने का स्वप्न देखी थी, जो उसके पिता के धनाभाव के कारण पूर्ण ना हो सका, उसे अपने बच्चों में पूर्ण होता देख पुलकित हो जाएगी।

पीयूष का देहांत, उसे अन्दर से निचोड़ कर रख दिया, वह टूट सी गयी, श्राद्धकर्म पूर्णाहुति पर घर शुद्धि की पूजा में, भक्ति और श्रद्धा युक्त भावना से देवी-देवताओं, भगवान और दिवंगत पूर्वजों से विनती की, इस अचानक से आयी आपदा से मुक्ति, शोक सहने और समस्या समाधान निकालने की शक्ति प्रदान करने की कामना व्यक्त की।

कोई एक माह उपरांत पीयुष का मित्र विनोद, जो एक बीमा अभिकर्ता भी है, प्रीति के घर आया, शोक व्यक्त करते हुए, सांत्वना भरे शब्दों में बोला, मैं पिछले दो माह से बाहर गया हुआ था, वापस आते हीं पीयूष के देहांत की सूचना मिली, अतः मिलने चला आया। भाभी, पीयूष एक बीमा करा रखा है, उसके पैसे निकालने के लिए आवेदन देना होगा, अतः बीमा प्रमाणपत्र मुझे दें तो प्रक्रिया प्रारंभ हो जाए।

अचानक से प्रीति को बीमा कराने की बात, स्मरण में आया जो वह भूली बैठी थी। उसने शीघ्रता करते हुए बीमा प्रमाणपत्र विनोद को दिया। विनोद के प्रयास से बीमा की एक मोटी राशि उसे मिला जो उसके, उसके सास-ससुर और बच्चों के जीवनयापन में सहयोगी समान हो गया। उसने जो एक कल्पना की थी कभी बच्चों के लिए, उसके साकार होने का साधन बन गया।

उसे आत्मसंतुष्टि हुई। उसे लगा पीयुष भले हीं उसके साथ नहीं पर उसका किया यह कृत सहायक सदृश रहती जीवन में उसके साथ रहेगा। जो उसके, उसके सास-ससुर, उसके बच्चों के जीवनयापन में एक वैसाखी होगा।

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