एक समय की बात है. जंगल के किनारे दो राजाओं में मध्य घमासान युद्ध हुआ. इस युद्ध में एक राजा विजयी हुआ, एक पराजित. विजयी राजा के सिपाही और साथ गए भांड व चारण रात भर ढोल पीटकर उत्सव मनाते रहे और वीरगीत गाते रहे.
सुबह-सुबह तेज आंधी आयी और उस आंधी में सिपाहियों का एक ढोल (Drum) लुड़ककर दूर चला गया और एक पेड़ से जाकर टिक गया.
आंधी थमने के उपरांत राजा और उसके सिपाही अपने राज्य की ओर प्रस्थान कर गये. ढोल वहीं जंगल में पड़ा रह गया.
ढोल जिस पेड़ से टिका पड़ा हुआ था, उसकी सूखी टहनियाँ तेज हवा चलने पर ढोल से टकराती और ढोल बज उठता. उसकी “ढमाढम” की आवाज पूरे जंगल में गूंज उठती.
एक भूखा सियार (Jackal) शिकार की तलाश में उस स्थान से गुजरा, जहाँ ढोल पड़ा हुआ था. ठीक उसी समय तेज हवा चली और पेड़ की सूखी टहनियाँ हिलते हुए ढोल से टकराई. ढोल “ढमाढम” करता बज उठा.
आंधी थमने के उपरांत राजा और उसके सिपाही अपने राज्य की ओर प्रस्थान कर गये. ढोल वहीं जंगल में पड़ा रह गया.
ढोल जिस पेड़ से टिका पड़ा हुआ था, उसकी सूखी टहनियाँ तेज हवा चलने पर ढोल से टकराती और ढोल बज उठता. उसकी “ढमाढम” की आवाज पूरे जंगल में गूंज उठती.
एक भूखा सियार(Jackal) शिकार की तलाश में उस स्थान से गुजरा, जहाँ ढोल पड़ा हुआ था. ठीक उसी समय तेज हवा चली और पेड़ की सूखी टहनियाँ हिलते हुए ढोल से टकराई. ढोल “ढमाढम” करता बज उठा.
उसने ढोल के मोटे चमड़े के बाहरी आवरण पर अपने दांत गड़ा दिए. वह चमड़ा कठोर था. उसे काटने के प्रयास में सियार के सामने के दो दांत टूट गए.
लेकिन अपनी ज़ोरों की भूख शांत करने के लिए वह डटा रहा और किसी प्रकार ढोल में छेदकर उसमें घुस गया. ढोल अंदर से खाली था. उसमें मांस-रक्त-मज्जा ना पाकर सियार बड़ा निराश हुआ. उसकी मेहनत व्यर्थ गई.
सीख (The Jackal And The Drum Story Moral)
जैसे ढोल बाहर से विशाल और अंदर से खोखला था. वैसे ही अपने मुँह से स्वयं की बढ़-चढ़कर बड़ाई करने और शेखी बघारने वाले वास्तव में ढोल की तरह की खोखले होते हैं. इसलिए किसी के बाहरी आवरण और दिखावे से उसके प्रभाव में नहीं आना चाहिए. वास्तविकता का ज्ञान किसी चीज़ को भली-भांति जानने के बाद ही होता है ||