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संयुक्त परिवार

परिवार में हुई थी, वह घर की छोटी बहू थी । उसके ससुर शामलाल जी का होलसेल कपड़ो का बहुत बड़ा व्यापार था। उससे बड़ी दो जेठानियां और थी पर दोनो ही अमीर घराने की थी जो बहुत दान दहेज लेकर आई थी।

उसके पति घर में सबसे छोटे थे और पैदाइशी लकवाग्रस्त थे इस कारण श्यामलाल जी ने रंजना के पिता जो उन की दुकान में मुनीम थे उनकी तीन बेटियां थी उन्होंने अपनी बड़ी बेटी की शादी में उनसे कर्ज लिया था जो वह चुका नही पा रहे थे इस कारण उनकी इस मजबूरी का फायदा उठाकर उनकी दूसरी बेटी रंजना से अपने अपाहिज बेटे चिराग की शादी करवा दी थी।

उसकी दोनो जेठानियां हमेशा उससे अकडकर रहती थी । दोनो ही उससे नौकरानियों जैसा व्यवहार करती थी । रंजना एक अच्छे दिल की सु संस्कारी और बहुत पढ़ी लिखी लडकी थी ,उसने अपने पति चिराग को कभी महसूस नही होने दिया की वह अपाहिज है । वह घर में सभी का ध्यान रखती थी।

इस कारण उसके सास ससुर भी धीरे धीरे उससे अच्छा व्यवहार करने लगे थे । वक्त गुजरता गया वह एक बेटी मनाली की मां बन गई ,दोनो जेठनियों को दो दो लडके थे इस कारण उन दोनो का घमंड और बढ़ गया था ।

रंजना अपनी बेटी को खुद पढ़ाती थी और उससे कहती की मेरी रानी बेटी एक दिन अपनी मां का सपना पूरा करेगी क्योंकि वह शुरू से ही आई ए एस बनना चहाती थी ,पर जल्दी शादी हो जाने के कारण वह अपना ख्वाब पूरा नही कर पाई थी। उसकी बेटी भी पढ़ने में बहुत अच्छी थी ,वह हर क्लास में अव्वल आती थी इस कारण उस को हर साल स्कालरशिप भी मिलती थी ।दोनो जेठानियों के लड़के लाड प्यार में बिगड़ गए थे वह बहुत मुश्किल से जैसे तैसे पास होते और अपनी कॉलेज की पढ़ाई भी पूरी नही कर सके थे।

यह देख कर अब रंजना की दोनों जेठानियों की अकड़ और गरुर दोनो टूट गए थे उनकी जो गर्दन हमेशा ऐंठी रहती थी वह अब झुकने लगी थी। अपने बेटो की असफलता के कारण उनके पति और ससुर भी अब उनको डांटते रहते और रंजना की अच्छी परवरिश के लिए उनको बोलते रहते थे यह देखकर वह दोनो अब रंजना से जलने लगी थी।

मनाली ने कॉलेज की पढ़ाई हो जाने के बाद उसने IAS की तैयारी शुरू कर दी थी चिराग और रंजना दोनो उसका हर वक्त ध्यान रखते थे। प्रतियोगी परीक्षा खत्म हो गई थी अब बस रिजल्ट आने वाला था | रंजना रोज भगवान से प्रार्थना करती मनाली कहती मां चिंता मत करो तुम्हारी बेटी अव्वल आयेगी और ऐसा ही हुआ जब रिजल्ट आया तो मनाली ने पूरे देश में प्रथम स्थान प्राप्त किया था।

आज सुबह से उनके घर पर पेपर वालो और मीडिया वालो की भीड़ थी ।सभी लोग उसका इंटरव्यू ले रहे थे। शामलालाजी ने मनाली की इस सफलता पर एक बहुत बड़ी पार्टी रखी थी ,चूंकि उनकी इकलौती परिवार की एकमात्र बेटी ने आज दुनिया में उनके और उनके परिवार का नाम को रोशन जो किया था ।

आभार :-मंगला श्रीवास्तव, इंदौर मध्यप्रदेश

संयुक्त परिवार में रहने के फायदे

संयुक्त परिवार में रहने के फायदे, जो रखते हैं हमारी मेंटल हेल्थ का ध्यान

इन दिनों लोगों को जॉइंट फैमिली में रहने में काफी मुश्किल आ रही हैं। कुछ लोग आजाद ख्यालों के होते हैं, जिन्हें किसी भी प्रकार की बंदिश में रहना पसंद नहीं होता। नतीजतन लगातार भारत में संयुक्त परिवार की आंकड़ों में कमी आ रही है। लोगों का संयुक्त परिवार के प्रति उदासीन रवैये के बावजूद जॉइंट फैमिली के अनेक फायदे हैं। संयुक्त परिवार से न सिर्फ आपको मनोवैज्ञानिक फायदा मिलता है, बल्कि सामाजिक जीवन को सुदृढ़ करने में भी मदद मिलती है। आज हम आपको संयुक्त परिवार के फायदों के बारे में बताएंगे।

जानिए संयुक्त परिवार (Joint Family) के फायदे क्या हैं

संयुक्त परिवार में मिलता है प्यार , आमतौर पर परिवार में 3-4 से ज्यादा सदस्य होने से आपको अतिरिक्त प्यार और सपोर्ट मिलता है। यह अतिरिक्त, प्यार आपको अपने दादा दादी, चाची और चाचा, चचेरे भाई बहनों और माता पिता से मिलता है। संयुक्त परिवार में रहने वाले बच्चे बड़े होकर ज्यादा परिपक्व और समझदार निकलते हैं। संयुक्त परिवार यानी जॉइंट फैमिली का यह सबसे बड़ा फायदा है।

परिवार के साथ मिलता है सैर सपाटे का समय

मानसिक रूप से जब आप काम के दबाव या डिप्रेशन में रहते हैं, तब आपकी मेंटल हेल्थ का ध्यान रखना बेहद ही जरूरी होता है। दोनों ही समस्याओं का इलाज संयुक्त परिवार में आसानी से किया जा सकता है। यदि आप अपने संयुक्त परिवार के साथ पिकनिक या सैर सपाटे के लिए जाते हैं तो काम के दबाव या डिप्रेशन से आपको काफी हद तक छुटकारा मिलता है। संयुक्त परिवार में आपको घूमने फिरने का ज्यादा वक्त मिलता है।

संयुक्त परिवार में होता जिम्मेदारियों का अहसास

यदि आप एकल परिवार या न्यूक्लियर फैमिली में रहते हैं तो सभी कार्यों को खुद से पूरा कर पाना मुश्किल होता है। हालांकि, जब आप किसी संयुक्त परिवार में रहते हैं तो आपके अंदर कार्य को सामूहिक रूप से करने की भावना का विकास होता है। आसान भाषा में आपको अपनी जिम्मेदारी का अहसास होता है। जिम्मेदारियों का यही अहसास किसी भी कार्य को हल्का कर देता है। आपको पूरे काम का भार अपने सिर पर लेने की जरूरत नहीं होती है।

संयुक्त परिवार में सीखते हैं बांटना और परवाह करना

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