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कर भला तो हो भला !!

बहुत समय पहले अमेरिका, यूरोप और मध्य एशिया के देशों में गुलामी की प्रथा थी। गुलामों के साथ बहुत ही बुरा व्यवहार किया जाता था।

एथेंस शहर में एक बहुत धनी जमींदार रहता था। उसके यहां बहुत से गुलाम थे। लेकिन वह गुलामों से बहुत क्रूरता से पेश आता था। उन्हें ठीक से भोजन भी नहीं देता था। इसके अलावा वह उन्हें मारता पीटता भी था। इन्हीं गुलामों में लूथर नाम का एक युवक भी था।

रोज रोज की मारपीट और दुर्व्यवहार से तंग आकर एक दिन लूथर उसके घर से भाग निकला। अब शहर में तो जमींदार के लोगों और राजा के सैनिकों से बचना नामुमकिन था। इसलिए वह जंगल की ओर भागा।

शाम होते होते वह घने जंगल में पहुंच गया। बचपन में उसने जंगल में रहकर जीवन यापन करने वाले लोगों की बहुत सी प्रेरणादायक कहानियां सुनी थीं। सो उसने भी वहीं रहने का निश्चय किया।

यहाँ रहकर वह राजा और जमींदार दोनों से बच सकता था।

तो लूथर ने जंगल को ही अपना ठिकाना बना लिया। जंगली फल फूल खाकर वह अपनी भूख मिटा लेता। रात को कोई सुरक्षित स्थान देखकर सो जाता। इस प्रकार वह अपनी स्वतंत्रता का आनंद लेने लगा।

एक दिन वह एक पेड़ के नीचे लेटा आराम कर रहा था। तभी एक शेर वहां आ गया। वह लूथर को देखकर गुर्राया। लूथर डर के मारे कांपने लगा। उसके पैर अपनी जगह जम गए। वह भाग भी नहीं पा रहा था।
वह धड़कते दिल से अपनी मृत्यु की प्रतीक्षा करने लगा। लेकिन शेर ने उस पर आक्रमण नहीं किया। बल्कि वह बार बार अपना दायां पंजा लूथर को दिखा रहा था। लूथर ने गौर किया कि शेर की गुर्राहट में क्रोध नहीं पीड़ा थी।

 

शायद शेर के दाएं पंजे में कुछ घुस गया था। जिसे वह निकाल नहीं पा रहा था। इसलिए वह लूथर से मदद मांग रहा था। मगर लूथर की हिम्मत शेर के पास जाने की नहीं हो रही थी। लेकिन शेर की पीड़ा को देखकर दया आ गयी।

उसे अपने पीड़ादायक दिन याद आ गए। उसने सोचा उस नरक भरे जीवन से अच्छा तो किसी की मदद करते हुए मर जाना ठीक है। यह सोचकर वह धीरे धीरे शेर के पास गया। उसने शेर के पंजे को गौर से देखा तो उसमें एक कील घुसी थी। उसने कील निकाल दी।

शेर थोड़ी देर लूथर को देखता रहा। उसके शरीर से अपने शरीर को रगड़ता रहा। फिर चुपचाप घने जंगल में गायब हो गया। लूथर वहीं बैठकर अपनी सांसें नियंत्रित करने लगा।

इस प्रकार कुछ दिन बीत गए। एक दिन राजा के कुछ सैनिक शिकार के लिए आये। लूथर की गुलामों वाली भेषभूषा देखकर उन्हें शक हुआ। वे उसे पकड़कर राजा के पास ले गए। पूछताछ से राजा को पता चला कि वह एक गुलाम है और अपने मालिक के यहां से भागा हुआ है।

उस समय अपने मालिक के यहां से भागने वाले गुलामों को क्रूरतापूर्ण मृत्युदंड की सजा दी जाती उसे भी वही सजा मिली। राजा ने फैसला सुनाया की कल भरे मैदान में लूथर को भूखे शेर के सामने छोड़ दिया जाएगा।

दूसरे दिन मैदान तमाशबीनों से खचाखच भरा था। हथकड़ियाँ पहने लूथर को मैदान के बीचोबीच खड़ा कर दिया गया। उधर कई दिनों से भूखे एक शेर का पिजरा खोल दिया गया। शेर दहाड़ते हुए अपने शिकार की ओर बढ़ा।

लूथर ने मृत्यु निश्चित जानकर अपनी आँखें बंद कर लीं। शेर पास आया। थोड़ी देर अपने शिकार को घूरने के बाद उसने दहाड़ना बन्द कर दिया। शेर लूथर के शरीर से अपना शरीर रगड़ने लगा।

लूथर ने आँख खोलकर देखा तो वह वही शेर था। जिसकी उसने मदद की थी। अब लूथर ने भी उसे सहलाना शुरू कर दिया। यह दृश्य देखकर राजा सहित सारे लोग आश्चर्यचकित थे। राजा ने लूथर को अपने पास बुलाया और इस घटना का रहस्य पूछा।

लूथर ने शेर की मदद करने वाली सारी बात बता दी। राजा बहुत प्रभावित हुआ। उसने लूथर को माफ कर दिया। साथ ही उसे एक सम्मानजनक नौकरी भी दी। इतना ही नहीं राजा ने उस शेर को भी जंगल में छुड़वा दिया।

इस प्रकार बिना किसी स्वार्थ के किये गए एक परोपकार ने न केवल लूथर को जीवनदान दिया बल्कि उसे एक सम्मानजनक जिंदगी भी दी। इसीलिए कहते हैं कर भला तो हो भला।

कहानी से सीख Moral of the Story

मोरल स्टोरी- कर भला तो हो भला से हमें सीख मिलती है कि हमें निस्वार्थ परोपकार करने का प्रयास करना चाहिए। जब हम किसी की मदद करते हैं तो किसी न किसी रूप में हमारा भी भला होता है।

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