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केदारनाथ मंदिर

Kedarnath Story

पवित्र ज्योतिर्लिंग केदारनाथ भगवान शिव के साधना स्थल हिमालय पर्वत के केदार नामक शृंग पर स्थित हैं। उत्तराखंड में हिमालय पर्वत की गोद में केदारनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ-साथ चार धाम में से भी एक है। यहां की प्रतिकूल जलवायु के कारण यह मंदिर अप्रैल से नवंबर माह के मध्य ही दर्शन के लिए खुलता है। कहते हैं इसका निर्माण पांडव वंशी जनमेजय ने कराया था, जबकि आदि शंकराचार्य ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था।

केदारनाथ की यात्रा (Kedarnath Yatra)

उत्तराखंड में केदारनाथ के अलावा बद्रीनाथ भी एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। कहते हैं जो व्यक्ति केदारनाथ के दर्शन किए बिना बद्रीनाथ की यात्रा करता है, उसकी यात्रा निष्फल रह जाती है। केदारनाथ सहित नर-नारायण-मूर्ति के दर्शन करने से समस्त पापों का नाश होता है तथा जीवन चक्र से मुक्ति मिलती है।

केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा (Story of Kedarnath in Hindi)

शिवपुराण के अनुसार भगवान विष्णु के नर नारायण रूप नामक दो अवतार थे। वह बदरिकाश्रमतीर्थ में तपस्या करते थे। उन दोनों ने पार्थिव शिवलिंग बनाकर भगवान भोलेनाथ की आराधना की थी। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनकी प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया।

कहा जाता है कि भगवान शिव के दर्शन अगर सपने में भी हो तो जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। केदारनाथ धन्य हैं जहां शिव को महसूस किया जा सकता है; कहा जाता है केदरानाथ के दर्शन साक्षात भगवान शिव के दर्शन करने जैसा है। भगवान शिव सर्वव्यापी, अनंत, अगोचर, अविनाशी और कण -कण में मौजूद हैं लेकिन 12 ज्योतिर्लिंगो में बाबा केदारनाथ के पास वही शक्ति है जो भगवान शिव के तीसरे नेत्र के खुलने पर सब कुछ विनाश करके रख देती है।
“श्री केदानाथ धाम” हिमालय की गोद में स्थित भगवान शिव की भक्ति का यह धाम खूबसूरत प्राकृतिक दृश्यों के साथ ही तमाम पौराणिक कथाओं को समेटे हुए है। भगवान शिव के कई प्रमुख नामों में से एक केदारनाथ भी 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है। भगवान शिव का नाम केदारनाथ क्यों पड़ा और क्या है इस मंदिर का इतिहास आज आइए जानते हैं…
केदारनाथ के साथ शिव के अंग जहां जहां प्रकट हुए उन्हें पंच केदार कहा गया। मान्यता है कि पंच केदार पर पांडवों ने पूजा की और वो पाप मुक्त हुए।
पंच केदार और पाप मुक्ति की कथाः-
महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव कौरवों की हत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने भगवान शिव का आशीर्वाद लेने की कामना की, परंतु भगवान कुरूक्षेत्र नरसंहार की वजह से पांडवों से रुष्ट थे। इसलिए वो काशी से गुप्त काशी और फिर गुप्त काशी से केदार में जा बसे। पांडव उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच ही गए। तब भगवान ने बैल का रूप धारण किया और अन्य पशुओं के साथ जा कर मिल गए।
पांडवों को शिव के पशुओं के साथ में मिलने का संदेह हो गया था इसलिए भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाड़ों पर पैर फैला दिए। पशुओं के दल में शामिल बाकी सारे पशु तो निकल गए, लेकिन बैल का रूप धारण किए शंकरजी भीम के पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए।
भीम ने तुरंत उनको पहचान लिया और उनको पकड़ने के लिए झपटे, शिव ने भीम की मंशा को भांप लिया और वह अंतर्ध्यान होने लगे। जब शिवजी ने पांडवों की श्रद्धा और अपार भक्ति को देखा तो वह प्रसन्न हुए और उन्होंने पांडवों को युद्ध के पापों से मुक्त कर दिया। भगवान शंकर उसी समय से बैल की पीठ की आकृति यानी पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं। भगवान शंकर बैल के रूप में अंर्तध्यान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ। अब वहां पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है।
शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए।
वर्ष 2013 में जब यहां भीषण प्राकृतिक आपदा आई थी तो एक विशालकाय शिला ने मंदिर पर बाढ़ का प्रभाव नहीं पड़ने दिया। तब से इस विशालकाय शिला को “देव शिला” के रूप में पूजा जाने लगा और मंदिर के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ गया।

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