केले का पत्ता यानी द्वैत में अद्वैत
जब रावण की सेना को हरा कर और सीता जी को लेकर श्री राम चन्द्र जी वापस अयोध्या पहुंचे – तो वहां उन सब के लौटने की ख़ुशी में एक बड़े भोज का आयोजन हुआ | वानर सेना के सभी लोग भी आमंत्रित थे – लेकिन बेचारे सब ठहरे वानर ही न ? तो सुग्रीव जी ने उन सब को खूब समझाया – देखो – यहाँ हम मेहमान हैं और अयोध्या के लोग हमारे मेजबान | तुम सब यहाँ खूब अच्छे से पेश आना – हम वानर जाति वालों को लोग शिष्टाचार विहीन न समझें, इस बात का ध्यान रखना |
वानर भी अपनी जाती का मान रखने के लिए तत्पर थे, किन्तु एक वानर आगे आया और हाथ जोड़ कर श्री सुग्रीव से कहने लगा ” प्रभो – हम प्रयास तो करेंगे कि अपना आचार अच्छा रखें, किन्तु हम ठहरे बन्दर | कहीं भूल चूक भी हो सकती है – तो अयोध्या वासियों के आगे हमारी अच्छी छवि रहे – इसके लिए मैं प्रार्थना करता हूँ कि आप किसी को हमारा अगुवा बना दें, जो न सिर्फ हमें मार्गदर्शन देता रहे, बल्कि हमारे बैठने आदि का प्रबंध भी सुचारू रूप से चलाये, कि कही इसी चीज़ के लिए वानर आपस में लड़ने भिड़ने लगें तो हमारी छवि धूमिल होगी |”
अब वानरों में सबसे ज्ञानी, व श्री राम के सर्वप्रिय तो हनुमान ही माने जाते थे – तो यह जिम्मेदारी भी उन पर आई |
भोज के दिन श्री हनुमान सबके बैठने वगैरह का इंतज़ाम करते रहे , और सब को ठीक से बैठने के बाद श्री राम के समीप पहुंचे, तो श्री राम के उन्हें बड़े प्रेम से कहा कि तुम भी मेरे साथ ही बैठ कर भोजन करो |
अब हनुमान पशोपेश में आ गए | उनकी योजना में प्रभु के बराबर बैठना तो था ही नहीं – वे तो अपने प्रभु के जीमने के बाद ही प्रसाद के रूप में भोजन ग्रहण करने वाले थे | न तो उनके लिए बैठने की जगह ही थी ना ही केले का पत्ता
तो हनुमान बेचारे पशोपेश में थे –
ना प्रभु की आज्ञा टाली जाए, ना उनके साथ खाया जाए |
प्रभु तो भक्त के मन की बात जानते हैं ना ?
तो वे जान गए कि मेरे हनुमान के लिए केले का पत्ता नहीं है , ना स्थान है |
उन्होंने अपनी कृपा से अपने से लगता हनुमान के बैठने जितना स्थान बढ़ा दिया (जिन्होंने इतने बड़े संसार की रचना की हो उन्होंने ज़रा से और स्थान की रचना कर दी) | लेकिन प्रभु ने एक और केले का पत्ता नहीं बनाया |
उन्होंने कहा ” हे मेरे प्रिय अति प्रिय छोटे भाई या पुत्र की तरह प्रिय हनुमान | यूं मेरे साथ मेरे ही केले के पत्ते में भोजन करो | क्योंकि भक्त और भगवान एक हैं – तो कोई हनुमान को भी पूजे तो मुझे ही प्राप्त करेगा (यही अद्वैत यानी एकेवरवाद है.) |”
इस पर श्री हनुमान जी बोले – “हे प्रभु – आप मुझे कितने ही अपने बराबर बताएं, मैं कभी आप नहीं होऊँगा, ना तो कभी हो सकता हूँ – ना ही होने की अभिलाषा है | (यह है द्वैत, यानी जीव और ब्रह्म के बीच की मर्यादा) – मैं सदा सर्वदा से आपका सेवक हूँ, और रहूँगा – आपके चरणों में ही मेरा स्थान था – और रहेगा | तो मैं आपकी थाल में से खा ही नहीं सकता | ” जब हनुमान जी ने प्रभु के साथ भोजन करने से इनकार कर दिया।
तब श्री राम ने अपने सीधे हाथ की मध्यमा अंगुली से केले के पत्ते के मध्य में एक रेखा खींच दी – जिससे वह पत्ता एक भी रहा और दो भी हो गया | एक भाग में प्रभु ने भोजन किया -और दूसरे अर्ध में हनुमान को कराया | तो जीवात्मा और परमात्मा के ऐक्य और द्वैत दोनों के चिन्ह के रूप में केले के पत्ते आज भी एक होते हुए भी दो हैं – और दो होते हुए भी एक है |
यानी द्वैत में अद्वैत । यही सृष्टि की व्यवस्था जो ब्रह्म और जीव के संबंध यानी द्वैत में अद्वैत को दर्शाती है। इसे समझ लिया तो जीवन से उद्धार तय है।
जय जय सियाराम
English Translation
Banana leaf means Advaita in duality
When Shri Ram Chandra ji reached Ayodhya after defeating Ravana’s army and taking Sita ji – a big banquet was organized there in the joy of their return. All the people of the monkey army were also invited – but all the poor remained apes, didn’t they? So Sugriva explained them very well – Look – here we are guests and the people of Ayodhya are our hosts. All of you should be very nice here – We should not consider the people of the monkey race to be devoid of manners, keep this in mind.
The monkeys were also ready to respect their caste, but a monkey came forward and said with folded hands to Shri Sugriva, “Lord – we will try to keep our conduct good, but we remain monkeys. If so, we should have a good image in front of the people of Ayodhya – for this I pray that you make someone our leader, who not only guides us, but also manages our seating etc. smoothly, that somewhere like this Our image will be tarnished if the apes start fighting for the thing.
Now Hanuman was considered to be the most knowledgeable of the monkeys, and Lord Rama’s favorite, so this responsibility also came on him.
On the day of the feast, Shri Hanuman kept arranging for everyone’s seating, etc., and after making everyone sit properly, reached near Shri Ram, then Shri Ram told him with great love that you also sit with me and eat food.
Now Hanuman has come to the fore. His plan was not to sit equal to the Lord – he was going to take food in the form of prasad only after the life of his Lord. There was neither a place for them to sit nor a banana leaf.
So poor Hanuman was in a dilemma –
Neither the command of the Lord should be disobeyed, nor should it be eaten with him.
Lord knows the mind of the devotee, doesn’t he?
So they came to know that there is no banana leaf, no place for my Hanuman.
By his grace, he increased the seating area of Hanuman as he thought (who has created such a big world, he has created a little more space). But the Lord did not make another banana leaf.
He said, “O my dearest dearest brother or son, dear Hanuman like a son. Just eat with me in my own banana leaf. Because the devotee and the Lord are one – if anyone worships Hanuman, he will attain me (this is Advaita). That is, it is monotheism.)
On this Shri Hanuman ji said – “O Lord – you tell me how much you are equal to me, I will never be you, I can never be – there is no desire to be. (This is duality, that is, between Jiva and Brahman) ki dignity) – I am your servant forever and ever – I was and will be my place at your feet. So I cannot eat from your plate.” When Hanuman ji refused to have food with the Lord gave.
Then Shri Ram drew a line in the middle of the banana leaf with the middle finger of his right hand – so that the leaf remained one and became two. In one part the Lord ate food – and in the other half offered it to Hanuman. So, as a symbol of both the unity and duality of the soul and the Supreme Soul, the banana leaves are still one, but two – and being two is one.
That is, Advaita in duality. This is the system of creation which shows the relation of Brahman and Jiva i.e. Advaita in duality. If this is understood then salvation from life is certain.
Jai Jai Siyaram