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राजा का दावत

एक राजा ने अपने राज्य के सभी ब्राह्मण सभी साधु महात्माओं को भोजन के लिए बुलाया। वह राजा बहुत धर्मात्मा था। लेकिन जहाँ पर भोजन बन रहा था वहाँ आसमान में एक चील गुजर रहा था। उस चील के पंजे में एक सर्प था जो उसके पंजो से छूटकर उस बनते हुए भोजन में आकर गिरा। जिसके कारन वह भोजन बिषैला हो गया। उसमे जहर आ गया। और उस भोजन को खाने से कई लोग मर गए।

जब राजा के यहाँ भोजन खा कर बहुत से लोग मरने लगे तो सारे शहर में उस राजा की निंदा होने लगी। सब उस राजा को गालिया देने लगे। उसकी बबुराई करने लगे। राज्य के सभी लोग कहने लगे, “यह कैसा राजा है। अपने घर ब्राह्मणों को, महात्माओं को बुलाकर उनकी हत्या कर दी। बड़ा अधर्मी राजा है।”

वह राजा भी मन ही मन बहुत रोने लगा। वह मन ही मन कहने लगा, “यह क्या अनरथ हो गया? मैं तो महात्माओं को खुश करना चाहता था। और बदले में मुझसे इतना बड़ा पाप हो गया।”

यह लोग मरकर जब परलोक में गए तो वहाँ पर चर्चा होने लगी की इन लोगों की मौत का पाप किसको लगेगा। “क्या यह पाप राजा को लगेगा? क्या यह पाप खाना बनाने वाले को लगेगा? क्या यह पाप चील को लगेगा? या सर्प को लगेगा? किसका दोष है यह?” तो वहाँ पर बैठे किसी बिद्वान ने कहा, “यह पाप राजा को नहीं लग सकता। क्यूंकि राजा को पता ही नहीं था की भोजन में बिष मिला हुआ है। और यह पाप खाना बनाने वाले को भी नहीं लग सकता। क्यूंकि उन्हें भी इस बात का ज्ञान नहीं था। और यह पाप चील और सर्प को तो लग ही नहीं सकता। क्यूंकि उन्हें तो कुछ पता ही नहीं था की निचे क्या हो रहा है।” फिर सबने प्रश्न किया, “तो आखिर यह पाप किसको लगेगा? किसको सजा मिलेगी?”

उस बिद्वान ने कहा, “उस राज्य में जितने भी लोग राजा की निंदा कर रहे है, उसकी बुराई कर रहे है इस पाप का फल उन सबको मिलेगा। क्यूंकि जब किसी व्यक्ति से अनजाने में कोई दोष हो जाता है, अनजाने में कोई पाप कार्य हो जाता है और दूसरे लोग जब उसकी बुराई करते है उसकी निंदा करते है उस पापा का फल करने वालों को नहीं उसकी निंदा करने वालों को मिलती है।

यह कहानी भी हमारी जिंदगी से जुडी है। हमारी ज़िंगगी में बहुत सारे लोग ऐसे होते है जो हमारे लिए बे बजह उलटा सीधा बोलते है। हमारे पीठ पीछे हमारी बुराइया करते है। हमारे मुँह पर तो मीठे बनते है लेकिन हमारे पीठ पीछे हमारे लिए बहुत उल्टा सीधा बोलते है। अगर आपके जिंदगी में भी ऐसे लोग है तो आप बिलकुल भी चिंता करें। क्यूंकि आपसे जो भी गलतिया होती है, जो भी भूल हो जाती है आपके उन सारी कर्मो का दोष उन सब लोगों में बट जाता है।

किसी ने सच ही कहा है, “जो हमारी निंदा करता है, जो हमारी बुराई करते है उसको बिलकुल हमारे घर के पास होना चाहिए। क्यूंकि वह हमें हमारे हर दोष से मुक्ति कर देता है।”

English Translation

A king called all the Brahmins of his kingdom all the sage Mahatmas for food. That king was very devout. But where food was being made, there was a eagle passing in the sky. There was a snake in the claw of that eagle, which got out of its claw and fell into the food that was being made. Due to which that food became heavy. He got poisoned. And many people died by eating that food.

When many people started dying after eating food at the king, then that king was condemned in the whole city. Everyone started abusing that king. Started babbling her. All the people of the kingdom started saying, “What kind of a king this is.” Calling the Brahmins, Mahatmas to their home, killed them. The king is very unrighteous. ”

That king also started crying a lot in his heart. He started to say in his heart, “What has happened? I wanted to please the Mahatmas. And in return I committed such a great sin. ”

When these people died and went to the other world, then there was a discussion about who would feel the sin of death of these people. “Will the king bear this sin? Will the cook make this sin? Will eagle commit this sin? Or will the snake feel it? Whose fault is it? ” So someone sitting there said, “The king cannot bear this sin.” Because the king did not know that food was mixed with food. And even the cook cannot commit this sin. Because they too did not know this. And this sin cannot be committed to eagles and snakes. Because they did not know what was happening below. ” Then everyone asked, “So who will bear this sin?” Who will get punished? ”

The Bidwan said, “All the people who are condemning the king in that state are doing evil to them, they will get the fruits of this sin.” Because when a person inadvertently gets a blame, inadvertently commits a sin and others condemn it when they do evil, not those who do the consequences of that sin, but those who condemn it.

This story is also related to our life. In our zinggi, there are many people who speak upright for us. We do our evil behind our back. They are sweet on our mouth, but behind our back, they speak very directly to us. If you have such people in your life too, then you should worry at all. Because whatever is wrong with you, whatever mistake is made, the blame of all your deeds gets caught in all those people.

Somebody has told the truth, “He who condemns us, who does evil to us must be right near our house.” Because he frees us from all our faults. ”

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