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कृष्ण गोवर्धनधारि हरे


कृष्ण गोवर्धन  धारि हरे,
जय मुरमर्दन मुरारि हरे,

गोकुल कृत गोचारण ये,
ब्रह्मा के भ्रम कारण हे
महेन्द्र महामद हारण हे
जन-पशु-त्रास निवारण हे
नन्द सुवन सुख कारण हे
मोहन मुरली प्यारि धरे।। कृष्ण०

जय नररूप नरायन हे,
जग-हित गीता गायन हे
जय सुख सौख्य प्रदायन हे
भक्ति देहि अनपायन हे
मति रत पाप परायन ये
चक्र सुदर्शन धारि हरे, कृष्ण०

जय यदुवंश विभूषण हे
कंस विमर्दन भूषण ये,
जय हरि वाग-विभूषण हे
हर परमेश्वर दूषण ये,
राधा के हिय भूषण ये
रुक्मिणि-त्रास निवारि हरे, कृष्ण०

मुरलीधर पद मूरति ये,
मन-वश जाये सूरति ये,
गोपिका नाम विसूरति ये,
हरिपद हो अविचल मति ये,
तव भजन करे पूजारति ये,
गोविन्द का ध्यान पुरारि धरे, कृष्ण०

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