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क्रोध से सर्वनाश

सभी धर्मग्रंथों में काम, क्रोध और लोभ को पतन का कारण बताया गया है। भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं

त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः। कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेत वयं त्यजेत॥'

अर्थात् काम, क्रोध और लोभ नरक के द्वार हैं। ये तीनों आत्मा को नष्ट कर देते हैं, इसलिए इनको त्यागना ही उचित है।

इच्छाओं की पूर्ति में बाधा आने से अनायास क्रोध पनपता है। क्रोध के आवेग से बुद्धि नष्ट हो जाती है। बुद्धि नष्ट हो जाने से पतन का रास्ता साफ हो जाता है। पग-पग पर देखने में आता है कि कामनाओं का कभी अंत नहीं होता। आकांक्षा संतोष और शांति में बाधा डालने वाली होती है।

सुविख्यात दार्शनिक सिसरो ने कहा था, ‘इच्छाओं की प्यास कभी नहीं बुझती और न आदमी कभी पूर्ण रूप से संतुष्ट हो सकता है। स्वामी विवेकानंद ने भी कहा है,

‘कामना सागर की भाँति अतृप्त है। ज्यों-ज्यों सागर में पीछे से जल की आपूर्ति होती रहती है, त्यों-त्यों सागर का कोलाहल बढ़ता रहता है।

यह स्पष्ट है कि कामनाएँ पूरी न हो पाने के कारण ही मानव हर समय तनावग्रस्त बना रहता है। अधिकांश रोगों का कारण भी तरह-तरह की लालसाएँ ही हैं।

क्रोध से बचने के भी शास्त्रों में उपाय बताए गए हैं। ऋग्वेद में कहा गया है, ‘कामनाएँ कम करने के लिए सात्त्विक और मर्यादापूर्वक जीवन जीना चाहिए। क्रोध को नम्रता से परास्त किया जा सकता है।’

संत कबीरदास क्रोध से मुक्ति का साधन सत्पुरुषों और संतों का सत्संग बताते हुए कहते हैं, ‘दसों दिसा से क्रोध की, उठी अपर बल आगि। सीतल संगति साधु की, तहां उबरिये भागि॥

English Translation

In all scriptures, lust, anger, and greed are the causes of downfall. Lord Shri Krishna says

Trividham narkasyedam dwaram nasanamatmanah. Kama: krodhastatha lobhastasmadet vayam tyajeta.
That is, lust, anger, and greed are the gates of hell. These three destroy the soul, so it is advisable to abandon them.

Anger develops spontaneously due to obstruction in the fulfillment of desires. Wisdom is destroyed by the impulse of anger. When the intellect is destroyed, the path to downfall is cleared. It is seen at every step that the desires never end. Desire is a hindrance to contentment and peace.

The famous philosopher Cicero said, ‘The thirst for desires is never quenched, and man can never be completely satisfied. Swami Vivekananda has also said,

Desire is unsatisfied like an ocean. As water continues to be supplied from behind in the ocean, the noise of the ocean keeps on increasing.

It is clear that human beings remain stressed all the time due to not being able to fulfill their desires. The cause of most diseases is also different kinds of cravings.

Remedies have also been given in the scriptures to avoid anger. It is said in the Rigveda, ‘To reduce desires, one should lead a sattvic and dignified life. Anger can be defeated with humility.’

Sant Kabirdas, while describing the means of liberation from anger, says of satsangs of saints and saints, ‘From ten directions of anger, a great force of fire arose. Sital fellowship of the sage, recover there and run.

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