एक नगर में एक सेठ रहता था। उसके पास अपार धन संपदा थी। उसका एक ही पुत्र था। कालांतर में सेठ के परलोकगमन के उपरांत उसके पुत्र ने कुसंगति के प्रभाव में सारा धन नष्ट कर दिया।
अब उसे खाने के लाले पड़ गए। तब उसकी पत्नी ने कहा, “स्वामी ! अगर हम दोनों काम करें तो तो हमारी समस्याएं कुछ कम हो सकती हैं। कम से कम भोजन की दिक्कत तो नहीं होगी।”
सेठ की पत्नी दूसरों के घर खाना बनाने और अन्य घरेलू काम करने लगी। सेठ जंगल से लकड़ियां काटकर लाता और बाजार में बेचता। जैसे तैसे उनका गुजर-बसर होने लगा। लेकिन कभी अभावपूर्ण जीवन और कठिन कार्य करने का अभ्यस्त न होने के कारण सेठपुत्र को बड़ा कष्ट था।
एक दिन जंगल में वह अपने पुराने दिनों को यादकर जोर-जोर से रोने लगा। उसी समय भाग्यदेवता और लक्ष्मीजी जंगल में घूमने निकले। सेठ की दीन दशा देखकर देवी लक्ष्मी गर्व से बोलीं- “देखिए भाग्यदेवता! मेरे बिना आदमी की क्या हालत होती है!”
भाग्यदेवता मुस्कुराकर बोले, “देवि! आपका कथन सत्य नहीं है। मनुष्य भाग्य प्रधान होता है। सुख-दुख सब उसके कर्मों का फल है। यदि मनुष्य के कर्म सही नहीं हैं तो उसका भाग्य भी खराब हो जाता है। विपुल संपत्ति भी उसका भला नहीं कर सकती है।”
लेकिन लक्ष्मीजी उनके कथन से संतुष्ट नहीं हुईं। अंततः भाग्यदेवता ने कहा, “ठीक है, आप इस सेठ को पुनः धनवान बना दीजिये।” लक्ष्मी जी ने उस सेठ के रास्ते में दो बहुमूल्य “लाल” डाल दिये।
सेठ पहले धनवान था। वह लालों के महत्व को जानता था। उसने खुशी खुशी लाल उठा लिए और घर की ओर चल दिया। उसने सोचा अब उसके दुखभरे दिन बीत गए हैं। रास्ते में नदी किनारे वह पानी पीने के लिए रुका।
जैसे ही वह पानी पीने झुका। दोनों लाल जेब से निकलकर नदी में गिर गए और एक मछली उन्हें खाने की चीज समझकर निगल गयी। सेठ के देखते देखते वह मछली नदी में गायब हो गयी। अपने भाग्य को कोसता सेठ घर वापस आ गया।
दूसरे दिन जब वह जंगल में लकड़ी काटने गया तब लक्ष्मी जी ने उसके रास्ते में बहुमूल्य मोतियों का हार रख दिया। सेठ ने खुश होकर उसे उठा लिया और हार को अपनी पगड़ी में सुरक्षित रख लिया।
आज फिर वह पानी पीने के लिए नदी के किनारे पर गया। लेकिन सावधानीवश उसने पगड़ी उतारकर किनारे पर ही रख दी और पानी पीने लगा। भाग्य का खेल देखिए कि उसी समय एक चील पगड़ी को हार समेत लेकर उड़ गई। सेठ फिर खाली हाथ रह गया।
अगले दिन लक्ष्मीजी ने उसके रास्ते में सोने की अशर्फियों से भरी थैली रख दी। सेठ ने थैली को देखकर ऊपरवाले को धन्यवाद दिया। वह थैली को लेकर इस बार सीधे घर गया। घर पर उसने देखा कि दरवाजा बंद है। उसकी पत्नी किसी काम से पड़ोस में गयी थी।
उसने अशर्फियों की थैली को घर के बाहर ही एक खूंटी पर टांग दिया और अपनी पत्नी को बुलाने पड़ोसी के घर चला गया। उसी समय उसकी एक दूसरी पड़ोसन उसकी पत्नी से मिलने आयी। उसने देखा कि दरवाजा बंद है और एक थैली बाहर खूंटी पर टंगी है।
उत्सुकतावश उसने थैली को खोलकर देखा तो उसमें सोने की अशर्फियां भरी थीं। उसे लालच आ गया और वह थैली लेकर चुपचाप अपने घर चली गयी। सेठ जब पत्नी के साथ घर वापस लौटा तो थैली गायब देखकर उसने अपना माथा पीट लिया।
लक्ष्मीजी ने जब देखा कि उनके सारे प्रयास व्यर्थ हो गए। तो उन्होंने भाग्यदेवता से कहा कि अब आप प्रयास करिए। भाग्यदेवता बोले, “अब देखो मैं किस तरह इसकी कायापलट करता हूँ।”
अगले दिन जंगल में जाते समय भाग्य देवता ने सेठ के रास्ते में दो पैसे डाल दिये। सेठ ने पैसे उठाकर जेब में रख लिए। नदी किनारे मछुवारे मछली बेंच रहे थे। सेठ ने दो पैसों की एक मछली खरीद ली।
उसके बाद वह लकड़ी काटने के लिए एक पेड़ पर चढ़ा। वहां एक घोसले में उसे अपनी पगड़ी दिखाई दी। जब उसने पगड़ी को उठाया तो उसे मोतियों का हार भी मिल गया। सेठ बहुत खुश हुआ। नीचे उतरकर वह सीधे घर चला गया।
दरवाजे पर पहुंचकर उसने अपनी पत्नी से जोर से कहा, “खोई हुई चीज का पता चल गया है। उसकी पड़ोसन ने जब यह सुना तो वह घबरा गई। उसने सोचा कि थैली की चोरी की बात इन्हें पता चल गई है।
वह डर गई। उसने सोचा कि यदि इन लोगों ने राजा से शिकायत कर दी तो उसे दंड मिलेगा। इसलिए पड़ोसन ने चुपके से जाकर वह थैली उनके आंगन में गिरा दी। थैली पाकर सेठ दम्पति बहुत खुश हुए।
खाना बनाने के लिए जब सेठ की पत्नी ने मछली को काटा तो उसके पेट से दो ‘लाल’ निकले। अब तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उनके पुराने दिन लौट आये। सेठ दम्पति सदाचरण करते हुए सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे।
Moral of Story- सीख
यह प्रेरणादायक कहानी शिक्षा देती है कि धन का अपव्यय नहीं करना चाहिए। साथ ही भाग्ययुक्त पुरूषार्थ ही सफलता देता है। अन्यथा मिला हुआ धन, वैभव, सुख आदि व्यर्थ ही है।