करीब सौ साल पहले की बात है। एक आदमी सुबह सोकर उठा। उसने अखबार उठाया और रोज के मुताबिक खबरों में झांकने लगा। अचानक एक जगह वह चौंक उठा और उसने आंखे मसलकर दोबारा देखा। एक दम ठीक छपा था।
स्मृति शेष कॉलम में उसे श्रद्धांजलि दी गई थी। खबर गलती से प्रकाशित थी, पर थी। उसे बहुत धक्का लगा लेकिन कुछ देर तक वह सोचता रहा। कुछ वक्त बीतने पर वह सामान्य हुआ तो उसने विचार किया कि देखना चाहिए कि लोग मेरे बारे में क्या कहते हैं।
यह सोचकर उसने अपने पर छपे सारे संदेश पढ़ना शुरू किए। उसकी स्मृति में छपे लेख का शीर्षक था- ‘डायनामाइट किंग डाइज’। इस लेख में आगे लिखा गया था कि यह व्यक्ति मौत के सौदागर के तौर पर भी जाना जाएगा।
यह पढ़कर वह व्यथित हो गया और उसने खुद से पूछा कि क्या वह यही पहचान छोड़कर जाना चाहता है। भीतर से आवाज आई कि उसे अपनी अच्छी छवि बनाने के लिए काम करना चाहिए। यहां से उसने शांति के लिए काम करना शुरू किया। उसका नाम था अल्फ्रेड नोबेल। नोबेल शांति पुरस्कार उन्हीं से स्थापित है।
In English
It’s about hundred years ago. A man woke up in the morning. He picked up the newspaper and started looking into the news according to daily. Suddenly, at one place she got upset and she looked back and looked again. A breathtakingly fine print
She was paid tribute to the memory balance column. The news was accidentally published, but it was. He felt a lot of shock but he kept thinking for some time. After a while he became normal, he thought that what people say about me.
By thinking of this, she started reading all the messages printed on her. The title of the article in his memory was titled ‘Dynamite King Dies’. It was further written in this article that this person will also be known as Death Dealers.
He was distressed by reading this and asked himself if he wanted to leave this identity. The voice came from within that she should work to make her good image. From here, he started working for peace. His name was Alfred Nobel. The Nobel Peace Prize is established by him.