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लव यू पापा

‘पापा'(पाँचवाँ भाग)

दादी माँ नहीं आईं।उनकी तबीयत ख़राब हो गयी है।बुआ बता रहीं थीं कि उनके घुटने में दर्द काफी बढ़ गया है।कल डॉक्टर के पास गयी थीं।उन्हें चलने-फिरने में थोड़ी दिक्कत है।हालांकि दादी 72-73 की उम्र में भी पूरी तरह स्वस्थ हैं।अपने बच्चों से भी अधिक स्वस्थ।उम्र का असर तो उनपर दिखता ही नहीं।

हम सब बेड पर पड़े रहते हैं।पर दादी 24×365 दिन नियम से उठती और सोतीं।योगा करना,करीब डेढ़ घंटे तक पैदल सुबह-शाम टहलना,साहित्य की किताबें पढ़ते रहना,फेसबुक पर अपनी रचनाएँ टाइप करना,हल्का खाना खाना,दवाइयाँ समय पर लेना;दादी माँ की रुटीन का अहम हिस्सा है।

दादी माँ,पापा से अक्सरहाँ नाराज़ ही रहती हैं,लेकिन मैंने ऐसा महसूस किया है कि वे पापा को अपने सारे बच्चों में सबसे ज़्यादा मानती भी हैं।असल में दादी माँ की कहीं कोई गलती नहीं है।सब गलती मेरे पापा की है।उनका कोई रूटीन ही नहीं है।कभी 10 बजे सो जाएँगे,कभी रात-रात भर लिखते पढ़ते रहेंगे।न योगा,न सुबह-शाम की सैर।दादी माँ,पापा को हमेशा बोलती हैं कि सब काम समय पर करने और अपने खान-पान तथा स्वास्थ्य पर ध्यान देने के लिए।पर दादी-माँ की बात को पापा मज़ाक के तौर पर ही लेते हैं।अब आप ही बताइए कि मैं अपना काम रूटीन के मुताबिक न करूँ तो पापा को बुरा लगेगा कि नहीं??निश्चित लगेगा।फिर दादी माँ तो पापा की माँ हैं।उन्होंने उन्हें जन्म दिया है।

एक सच्चाई तो ज़रूर है मेरे पापा में…भले ही दादी माँ की बात को टाल जाते हैं,लेकिन वे गुस्से में कुछ बोलती हैं,तो कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त करते। पहले मेरी एक बुरी आदत हो गयी थी कि किसी बात के लिए माँ-पापा मुझे डाँटते,तो मैं उनसे पूछने लगता कि आपने मुझे डाँटा क्यों??…तब वे और बिगड़ जाते और मेरी पिटाई भी कर देते।लेकिन दादी माँ और पापा से ही मैंने सीखा कि जब बड़े कुछ बोलें,डाँटे या समझाएँ तो पूरी तरह से शांत रहना चाहिए।सच्ची कहता हूँ,अब मैं उनकी डाँट या पिटाई का कभी विरोध नहीं करता।लेकिन मुझे याद नहीं कि पिछली बार पापा ने मुझे कब डाँटा और मारा था!!वे तो मुझे हमेशा सबसे समझदार बच्चा कहते हैं।

मेरा जन्मदिन 15 दिन बाद आने वाला है।मैंने पापा ने पूछा कि इस बार मेरा जन्मदिन कैसे मनेगा??तो पापा ने बताया कि यह सरप्राइज है।तुम्हें उस दिन ही पता चलेगा।और तुम्हारी दादी माँ के घुटने के दर्द भी कम हो जाएगा तब तक।यह सरप्राइज तुम्हारी दादी माँ के लिए भी होगा।

हालांकि मैंने पापा से किसी विशेष आयोजन की उम्मीद नहीं रखी थी;क्योंकि पैसों की दिक्कत चल रही थी,फिर भी इतना विश्वास था कि पापा जो करेंगे,वह बेस्ट ही होगा!

आप लोगों को पता है,मेरे पापा बहुत ही सीधे-सादे,सरल और बहुत भोले-भाले हैं।कभी-कभी तो वे इतने क्यूट लगते हैं न कि पूछिए मत।मासूमियत में तो उनकी मैं भी बराबरी नहीं कर सकता!माँ बताती हैं कि मेरे पापा,मुझसे ज्यादा मासूम हैं।उनके चेहरे से उनके व्यक्तित्व की झलक मिल जाती है।लेकिन माँ के मुँह से पापा के लिए मासूम शब्द सुनकर मुझे पापा से थोड़ी-सी जलन भी होती है।माँ ने पापा की तुलना में मुझे जब कम मासूम बताया तो मुझे बहुत बुरा लगा।मैंने बगल के कमरे में जाकर ड्रेसिंग टेबल पर बैठकर आईने में अलग-अलग भाव-भंगिमा बनाकर अपने चेहरे को देखा।बाल भी ठीक किया,पर मुझे अपनी मासूमियत अधिक अच्छी लगी पापा की तुलना में।और मेरी क्लासटीचर भी तो कहती हैं कि मैं पूरे क्लास में सबसे मासूम हूँ।अब माँ को क्यों नहीं मैं मासूम लगता,ये माँ ही जानें!!

सुबह-सुबह बहुत प्यार से पापा ने मुझे जगाते हुए पूछा-“आज माँ के साथ स्कूल जाने का इरादा है या मेरे साथ बाइक पर??”मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा।मैंने पापा के गले से लिपटते हुए पूछा-“बाइक बन गयी??”पापा ने हामी भरी।मैं आधे घंटे के अंदर फ्रेश होकर,नाश्ता करके,बैग लेकर पापा की बाइक पर पीछे बैठ गया।पापा ने बाइक स्टार्ट कर दी।मैंने दोनों बाहों को हवा में लहराते हुए पापा को ‘लव यू पापा’ कहा।पापा ने बाइक चलाते हुए मुस्कुरा दिया।

क्रमशः

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