बचपन से सुधा देखते हुए आ रही थी मां को उसके जुड़वां भाई के प्रति प्यार को वैसे मां उतना ही प्यार सुधा से भी करती थी मगर पुरानी कहावत जो थी घर को बेटा ही संभालता है घरपरिवार आगे बढ़ाने में अपने मां बाबूजी की बुढ़ापे में सेवा पानी एक लड़का ही करता है कुछ यही सोच मां की भी होगी जो वो उसके भाई को उससे अधिक महत्व देती थी देखा था उसने एकबार उसका भाई खेलते हुए गिर गया था जिससे उसके घुटने बुरी तरह छील गये थे डाक्टर के पास बदहवास हालत में दौड़ी थी डाक्टर जख्मों पर मरहम पट्टी तो कर दी थी मगर उनमें हो रहे दर्द को भाई से ज्यादा मां को तकलीफ में देखा था उसने कभी फूंक मारकर तो कभी सहलाते हुए वह उसकी पीड़ा को दूर करने का प्रयास करती रहती |
और ये रातें जागते हुए भी जारी था फिर उसका भी बड़े होना पढ़ाई का ध्यान रखना दो दो टयुशन लगवाकर उसकी कामयाबी की प्रार्थना करते हुए देखा था उसने पढ़ाई में तो सुधा भी अच्छी थी मगर अक्सर ये कहते हुए की तुझे तो घर ही संभालना है शादी के बाद मगर इसे पूरा परिवार फिर भाई की नौकरी के लिए मंदिरों में मन्नतें मांगते हुए और आखिरकार मां की तपस्या सफल हुई भाई की अच्छी नौकरी लग गई और जल्द ही उन्होंने दूसरे शहर में जाकर नौकरी करने का मन बना लिया क्योंकि वहां अधिक पैसा मिलता एकबार जो घर से दूर हुए भाई तो कभी वापस लौटकर आएं ही नहीं फिर अपनी इच्छा से शादी कर ली एक छोटे से घर में मां ने भाई की तमाम जिम्मेदारी बखूबी निभाई उसी भाई के थ्री बीएचके फ्लैट में मां के लिए जगह नहीं थी बूढी हो गई मां कई-कई बीमारियों से जूझती-हाँफती अकेली रहती |
सुधा भी मोहन से शादी करके दूसरे शहर में आ गई थी मोहन को अपनी मां की दशा बताकर वो मां को अपने पास रखकर उनका इलाज करवाने लगी उनके स्वास्थ्य उनके अच्छे खाने पीने का ख़्याल रखने लगी जल्द ही मां की हालत में तेजी से सुधार होने लगा और वह अच्छा स्वस्थ महसूस करने लगी थी एक दिन मां को अपने कपड़े समेटते हुए देखकर सुधा हैरानी से बोली कहा कि तैयारी कर रही हो मां वापस घर जाने की क्यों क्या यहां रहने में आपको कोई परेशानी है नहीं बेटा तुमने और दामाद जी ने तो मेरी खूब सेवा की है तो फिर आप यहां से कयुं जाना चाहती हो यदि आप भाई के साथ उनके पास रहती तो भी वापस जाना चाहती|
बेटा वहां और यहां रहने में फर्क है ये एक अलग घर है मां जब आपने मेरी पढ़ाई- लिखाई और बाकी परवरिश में मुझमें और भाई में कोई फर्क नहीं किया तो मेरे साथ रहने में आपको क्या तकलीफ है सुधा बेटा और बेटी में फर्क नहीं है तो क्या हुआ
बेटे और दामाद में तो है ना …ये दामाद जी का घर है और मैं अपने दामाद के घर ज्यादा दिन कैसे रह सकती हूं दामाद का घर तो फिर मेरा र मेरा घर कौन सा है मां सुधा ने हैरानी से पूछा मां के पास कोई जबाव नहीं था वह बैंग उठाकर चलने को हुई ही थी कि मोहन ने आकर आगे से रोकते हुए कहा बोलिए ना मां आपने सुधा की बातों का जबाव कयुं नहीं दिया आखिर एक बेटी का घर कौन सा है यदि वह उसकी मां का होता है तो फिर सुधा यहां क्या कर रही है इसे भी आपको अपने साथ लेकर जाना चाहिए ना और यदि ये घर सुधा का है तो |
आपको यहां रहने में कैसी हिचकिचाहट मां आप मुझे अपना बेटा नहीं मानती नहीं बेटा तुम्हें तो अपनी बेटी के जीवनसाथी के रूप में चुनकर मुझे बेहद खुशी महसूस होती है में तो ईश्वर से यही प्रार्थना करती हूं कि ईश्वर तुम्हारे जैसे बेटा हर परिवार में दे जो अपने सास ससुर को अपने मां बाबूजी की तरह प्यार और सम्मान देता है मां एक बेटी भी तो शादी के बाद एक अलग परिवार में सबको अपना लेती है जैसे सुधा ने मेरे मां बाबूजी को अपने मां बाबूजी की तरह प्यार और सम्मान दिया मां ये तेरा घर ये मेरा घर सब बेकार की बातें हैं आप मेरी मां है और ये आपका ही घर है और आप यहां से कहीं नहीं जाएगी बस मुझे दो मांओं का प्यार और आशीर्वाद हमेशा के लिए चाहिए कहते हुए मोहन मां के पैरों में झुक गया वहीं भीगी हुई पलकों को साफ करते हुए मां ने उसे उठाकर गले से लगाते हुए कहा ईश्वर ने ना जाने मुझे किस पुण्य का फल दिया जो मुझे एक बेटी के साथ साथ एक बेटा भी मिल गया ईश्वर तुम्हें हमेशा खुश रखें. |