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महाराणा प्रताप

महाराणा को परिभाषित करते वक्त ज्यादातर लेखकों को मैं देखता हूं उनके कद,उनके वजन ,उनके भाले,उनके घोड़े पर लिखते हुए! क्या इसी आधार पर कोई व्यक्ति सम्मानित हो जाता है ?

व्यक्ति सम्मान का पात्र होता है अपने कर्म और चरित्र की वजह है । महाराणा ने ना तो भय ,ना ही लालच की वजह से ही कभी समझौता किया । महाराणा को समस्त मेवाड़ का समर्थन था ।उनकी कहानी सिर्फ राजपूतों की नही बल्कि समस्त मेवाड़ की कहानी है । उस मध्यकाल में मेवाड़ का बच्चा बच्चा अपने महाराणा के साथ खड़ा था । इनका खुद का भाई शक्ति सिंह कुछ समय के लिए शत्रु दल में मिल गया था पर वो भी वापस आ गया।

महाराणा युद्ध में स्वयं शामिल होते थे ।वो अपने सरदारों और सैनिकों को आगे भेज खुद को सुरक्षा घेरे में नही रखते थे।

मेवाड़ के आम लोगो की सुरक्षा का भी हमेशा ध्यान रखा उन्होंने । अब्दुल रहीम जब अकबर की तरफ से लड़ने को आए तो उनके परिवार की महिलाएं मेवाड़ के सैनिकों के हांथ में पड़ गई जिन्हे महाराणा ने पूरे सम्मान के साथ वापस भेज दिया और खुद सेना लेकर रहीम से युद्ध की तैयारी करने लगे । रहीम को जब यह सूचना मिली तो महाराणा की प्रशंसा करते हुए वो वापस लौट गए।

महाराणा से कहीं ज्यादा ताकतवर लोग हुए हैं इस भारत भूमि पर ही लेकिन उनसा शूरवीर कोई कोई ही हुआ होगा। पराजय ,मृत्यु ,विध्वंस को सामने देख भी किसी भी सूरत में अपनी मातृभूमि की परतंत्रता उन्हे स्वीकार नही थी । महाराणा का आत्मबल ,उनका चरित्र और उनका अपने लोगो के प्रति समर्पण उन्हे दूसरो से अलग बनाता है ।

मेवाड़ की ताकत चींटी सी थी और दूसरी तरफ हांथी जैसी ताकत वाली मुगल हुकूमत पर स्वाभिमानी प्रताप को मृत्यु स्वीकार थी पर परतंत्रता नही । स्वाभिमान ,उज्जवल चरित्र और अति विपरीत परिस्थिति में भी सर ना झुकाने वाले महाराणा को हर एक स्वाभिमानी चाहे वो मित्र हो या शत्रु वो सम्मान से याद करेगा।महाराणा जैसे स्वाभिमानी इस धरा पर विरले ही होते हैं |

महाराणा प्रताप भारतीय इतिहास के प्रमुख वीर योद्धाओं में से एक थे। वे मेवाड़ के राजपूत राजा थे और 1572 से 1597 तक इस पद पर रहे। महाराणा प्रताप का सबसे प्रसिद्ध युद्ध अकबर के साथ हुआ हल्दीघाटी का युद्ध था, जो 1576 में लड़ा गया था।

महाराणा प्रताप अपनी वीरता, स्वतंत्रता के प्रति समर्पण और मुगल साम्राज्य के खिलाफ अपने दृढ़ प्रतिरोध के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने मेवाड़ की स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन समर्पित किया और मुगलों के अधीन न होने का संकल्प लिया। उनकी इस नीति के कारण उन्हें और उनके राज्य को कई बार कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन वे अपने सिद्धांतों पर अडिग रहे।

महाराणा प्रताप का चित्र अक्सर उनके वफादार और शक्तिशाली घोड़े चेतक के साथ दिखाया जाता है। चेतक ने हल्दीघाटी के युद्ध में अपनी अद्वितीय वीरता और साहस दिखाया था। महाराणा प्रताप की याद में भारत में कई स्मारक और मूर्तियां बनाई गई हैं, और वे भारतीय इतिहास में एक प्रेरणादायक आदर्श के रूप में स्थापित हैं।

महाराणा प्रताप का सर्वाधिक प्रिय चेतक

विश्व के इतिहास में बहुत कम देखने को मिलता है कि किसी पशु पर कवियों ने कविताएं लिखी हैं। मुझे इस बात का बेहद गर्व है कि मेवाड़ में अश्व चेतक पर वृहद् इतिहास लिखा गया है। महाराणा प्रताप के सेवाभावीऔर स्वामीभक्ति का प्रतीक अश्व चेतक का नाम विश्वविख्यात है। अनेकों कवियों ने चेतक पर कविताएं लिखी हैं।

महाराणा प्रताप का सर्वाधिक प्रिय चेतक मूलत: अरबी नस्ल का घोड़ा था। जिसे रियासतकाल में अरब के व्यापारी मेवाड़ लेकर आए थे। चेतक की विशेषताओं में उसकी स्वामीभक्ति, वीरता, निडरता, उनकी कद काठी,मांसल कसी हुर्इ देह, दौड़ने में विद्युत गति, लंबी छलांग लगाने का अभ्यासी, गर्दन पर बाल, मजबूत खुर और चपल आंखें थी।

हल्दीघाटी के दर्रे के नाले को लांघना एवं इससे पूर्व मुंह पर लगी सूंड में तलवार बांधकर मानसिंह के हाथी के मस्तक पर अपने पैर टिका देना चेतक की निडरता की द्योतक है। युद्ध के दौरान अपना एक पैर गंवा चुकेचेटक ने अपने स्वामी को दुश्मनों से बचाने के लिए हल्दीघाटी के सबसे बड़े नाले के ऊपर से महज तीन पैरों के बल पर छलांग लगार्इ और दूसरे छोर पर ले गया जबकि दुश्मनों के हष्ट-पुष्ट घोड़े मुंह ताकते रह गए।

हल्दीघाटी के युद्ध में चेतक ने स्वामीभक्ति का अपूर्व उदाहरण देते हुए अपने प्राण त्याग दिए। चेतक की याद में हल्दीघाटी में आज भी वह चबूतरा बना हुआ है जहां वह वीरगति को प्राप्त हुआ था।

पुरखों की आन निभाना ही, मेवाड़ भूमि की पूंजी है।
ये वो धरती है जहां कभी चेतक की टापें गूंजी है।

भीषण आंधी-तूफानों में चेतक की टापें नहीं रूकी।
लाखों नंगी तलवारों से मेवाड़ी पगड़ी नहीं झुकी।।

महाराणा प्रताप के बारे में क्या लिखें?
महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया ( ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया रविवार विक्रम संवत 1597 तदनुसार 9 मई 1540 – 19 जनवरी 1597) उदयपुर, मेवाड़ में सिसोदिया राजवंश के राजा थे। उनका नाम इतिहास में वीरता, शौर्य, त्याग, पराक्रम और दृढ प्रण के लिये अमर है।

महाराणा प्रताप का दूसरा नाम क्या था?
9 मई, 1540 ईसवी को राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में पिता उदयसिंह की 33वीं संतान और माता जयवंताबाई की कोख से जन्मे मेवाड़ मुकुट-मणि महाराणा प्रताप जिन्हें बचपन में ‘कीका’ कहकर संबोधित किया जाता, जो अपनी निडर प्रवृत्ति, अनुशासन-प्रियता और निष्ठा, कुशल नेतृत्व क्षमता, बुजुर्गों व महिलाओं के प्रति विशेष सम्मानजनक दृष्टिकोण था।

महाराणा प्रताप का किला कौन सा है?
राजस्थान का का चितौड़गढ़ का किला चितौड़गढ़, मेवाड़ और उसके इतिहास के लिए जाना जाता है। पहाड़ी पर बना देश के सबसे बड़ा ये किला काफी फेमस है। महाराणा प्रताप के जन्म के वक्त ही उनके पिता ने इस किले को जीता था।

महाराणा प्रताप ने कितने युद्ध जीते थे?
उन्होंने कई वर्षों तक मुगल सम्राट अकबर के साथ संघर्ष किया। – बाद में महाराणा की सेना ने मुगल चौकियों पर आक्रमण शुरू कर उदयपुर समेत 36 बेहद अहम ठिकानों को अपने अधिकार में ले लिया। यानी उन्होंने अकबर की सेना को 36 बार से ज्यादा बार मात दी थी। महाराणा प्रताप तुक के मुगल सम्राट अकबर से कभी भी हारे नहीं था।

महाराणा प्रताप कौन से वंश थे?
सही उत्तर सिसोदिया है। राणा प्रताप सिंह, मेवाड़ के राजपूत संघ के हिन्दू महाराजा, अब पश्चिमोत्तर भारत और पूर्वी पाकिस्तान में हैं। वह मेवाड़ राजवंश के सिसोदिया का है।

महाराणा प्रताप क्यों प्रसिद्ध है?
महाराणा प्रताप को मुगल साम्राज्य के विस्तारवाद के खिलाफ उनके सैन्य प्रतिरोध और हल्दीघाटी की लड़ाई और दवेर की लड़ाई में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के लिए जाना जाता है। उन्होंने मुगल बादशाह अकबर को तीन बार – 1577, 1578 और 1579 में हराया था।

हल्दीघाटी का युद्ध कितने घंटे चला?
इतिहास में मौजूद तथ्यों के अनुसार यह युद्ध सिर्फ 4 घंटे चला था। ज्यादातर इतिहासकारों के अनुसार महाराणा प्रताप इस युद्ध में मुगल सेना को सकरी हल्दीघाटी में घेरना चाहते थे, लेकिन मुगलों की तरफ से लड़ने आए सेनापति मानसिंह घाटी के अंदर नहीं गए।

चित्तौड़ का अंतिम शासक कौन था?
राठौड़ जैमल (जयमल) और सिसोदिया पत्ता चित्तौड़ की अंतिम शाका में अकबर की सेना के साथ युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गये थे।

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