इंजीनियरिंग कॉलेज में इतिहास पढ़ने वाले इतिहासकारों का सबसे बड़ा डायलॉग है- बाबर को महाराणा सांगा ने ही तो बुलाया था, फिर वे काहे का देशभक्त हुए?
बाबर खुद बाबरनामा में लिखता है- मुझे भारत विजय की प्रेरणा अपने एक अमीर से मिली, जिसने कहा- “आगे बढिये और संसार के सर्वश्रेष्ठ देश पर अधिकार कर लीजिए। सिंधु के उस पार एक साम्राज्य की स्थापना कीजिये, जिसके लिए आपके पूर्वज मार्ग दिखा गए हैं। जाइये और हिंदुस्तान के मध्य में अपना दरबार लगाइए और तातारी के बर्फ से निकल कर हिंदुस्तान के सुखों का आनंद लीजिये। हर चीज आपको दक्षिण की ओर बुला रही है। अल्लाह आपको काबुल तक ले आया है और हिंदुस्तान के रास्ते पर खड़ा कर दिया है। अल्लाह का हुक्म है कि आप हिंदुस्तान में मूर्तिपूजा का नाश करें।”
अब जब बाबर खुद अपनी जीवनी में लिखता है कि भारत आक्रमण की प्रेरणा उसे अपने अमीर से मिली, तो वे कौन से साक्ष्य थे जिनके बल पर कहा गया कि महाराणा ने बाबर को निमंत्रण दिया था?
अब तनिक खानुआ के युद्ध के बारे में सुनिए। महाराणा सांगा से भिड़ने के पहले बाबर ने छोटी बड़ी तीसों लड़ाइयां लड़ी और जीती थी, पर कभी उसे धर्म का सहारा नहीं लेना पड़ा था। भारत के सबसे बड़े तात्कालिक शासक इब्राहिम लोदी से लड़ने के लिए भी उसे धर्म का सहारा नहीं लेना पड़ा। पर वही बाबर खानुआ के युद्ध के पहले अपने सैनिकों का मनोबल बढ़ाने के लिए कभी शराब न पीने की कसम खाता है, और स्वयं को इस्लाम का सिपाही बताता है। अपने सैनिकों को इसे आखिरी युद्ध बताते हुए यह प्रलोभन देता है कि इस युद्ध को जीतने के बाद जो सैनिक चाहे वह स्वदेश जा सकता है। सोचिये, कई वर्षों से घर से दूर लगातार युद्ध करते और दौड़ते सैनिकों के लिए यह कितना बड़ा प्रलोभन होगा। बाबर यहीं नहीं रुकता, बल्कि व्यपारिक कर “तमगा” से सभी मुसलमानों को मुक्त करने का ऐलान करता है और राणा सांगा के खिलाफ युद्ध को जिहाद घोषित करता है। और अंत मे सभी सरदारों और सैनिकों को कुरान पर हाथ रख कर कसम खिलाई जाती है कि वे मरते दम तक युद्ध करते रहेंगे।
और इतना तमाशा होता है सिर्फ राणा सांगा से युद्ध के समय। आप स्वयं महाराणा सांगा के पराक्रम का अंदाजा लगा सकते हैं।
अब एक प्रश्न यह है कि आखिर बाबर से दुगुने सैनिक क्षमता के बाद भी राणा सांगा युद्ध हार क्यों गए?
किताब के पन्नों को रंगने के लिए आप दसो कारण गिना दें, पर राणा की हार के लिए सिर्फ दो कारण जिम्मेवार थे।
पहला यह कि बाबर के पास तोपखाना था। सैनिक कितने भी बीर क्यों न हों, तलवार ले कर तोप से मुकाबला नहीं कर सकते। खानुआ के युद्ध के पहले राजपूतों ने बाबर की अग्रगामी सेना को दो बार मार कर भगाया था, पर खानुआ के युद्ध में जब बाबर तोपखाने के साथ आया तो राणा सांगा के पास इसका कोई तोड़ नहीं था।
और दूसरा कारण यह था कि राजपूत राजा सेना को आगे कर के स्वयं पीछे नहीं रहते थे, बल्कि मर्दों की तरह स्वयं आगे आ कर युद्ध करते थे। खानुआ के युद्ध मे भी महाराणा स्वयं युद्ध कर रहे थे। और यही कारण था कि जब तोप का गोला लगने के कारण महाराणा घायल हुए तो उनके मैदान से हटते ही सेनापति विहीन सेना तितर बितर होने लगी। महाराणा सांगा इससे पूर्व भी युद्धों में असंख्य बार घायल हुए थे, जिसके कारण उनके शरीर पर अस्सी से अधिक घाव थे, पर तलवार के चोट का आदी शरीर तोप के गोले को नहीं झेल पाया।
इस युद्ध मे राजपूत सेना में न कोई देशद्रोही था, न कोई शत्रु का गुप्तचर था, ना ही उनमे एकता की कमी थी, बल्कि इस युद्ध मे राणा की ओर से समूचा राजपुताना भाग लिया था। राजपूत बाबर से नहीं बल्कि उसके तोपों से हारे थे।
अब एक प्रश्न यह भी है कि आखिर राणा सांगा पर ही इतना बड़ा झूठा आरोप क्यों थोपा गया?
आप मध्यकालीन भारत का समूचा इतिहास खंगालिए, महाराणा सांगा से अधिक युद्ध कोई नहीं लड़ा था। अकबर, बाबर, खिलजी, तुगलक, लोदी कोई नहीं। महाराणा सांगा स्वयं लगभग सौ युद्ध लड़े थे। पूरे मध्यकालीन भारत मे महाराणा सांगा से बड़ा कोई योद्धा नहीं मिलेगा। न हिंदुओं में, न मुसलमानों में। निरन्तर युद्धों में अपने एक हाथ, एक आंख और एक पैर गंवा चुके राणा सांगा को कर्नल टॉड ने “सैनिक का भग्नावशेष” कहा है। पर इस एक आक्षेप ने महाराणा सांगा से इतिहास में उनका नाम छीन लिया। इस एक आक्षेप ने मध्यकालीन भारत के सबसे बड़े सनातनी योद्धा की आभा मंद कर दी। इस एक आक्षेप ने सनातन के सबसे बड़े योद्धा की कीर्ति को ढंक दिया, और सनातन के शौर्य की कहानी को धोखे से मिटा दिया।
महाराणा सांगा के नाम पर परोसा गया यह सबसे बड़ा झूठ, कि महाराणा ने ही बाबर को निमंत्रित किया था, भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा झूठ है।
जयंती पर नमन योद्धा को…
(छह वर्ष पूर्व किसी मूर्ख की बकवास पर चिढ़ कर लिखा था। आज भी पढ़ा जा सकता है…)
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