वर्षों की मेहनत के बाद एक किसान ने एक सुन्दर बागीचा बनाया . बागीचे के बीचो-बीच एक बड़ा सा पेड़ था जिसकी छाँव में बैठकर सुकून का अनुभव होता था .
एक दिन किसान का पड़ोसी आया , बागीचा देखते ही उसने कहा , “ वाह ! बागीचा तो बहुत सुन्दर है , पर तुमने बीच में ये मनहूस पेड़ क्यों लगा रखा है ?”
“क्या मतलब ?”, किसान ने पुछा .
“ अरे क्या तुम नहीं जानते , इस प्रजाति के पेड़ मनहूस माने जाते हैं , ये जहाँ होते हैं , वहां अपने साथ दुर्भाग्य लाते हैं … इस पेड़ को जल्दी से जल्दी यहाँ से हटाओ …”, पडोसी बोला .
यह बोलकर पडोसी तो चला गया पर किसान परेशान हो गया , उसे डर लगने लगा कि कहीं इस पेड़ की वजह से उसके साथ कुछ अशुभ न हो जाए .
पेड़ बड़ा था , उसकी कटी लकड़ियाँ पूरे बागीचे में जहाँ -तहाँ इकठ्ठा हो गयीं .
अगले दिन फिर वही पड़ोसी आया और बोला , “ ओह्ह्हो .. इतने सुन्दर बागीचे में ये बेकार की लकड़ियाँ क्यों इकठ्ठा कर रखी हैं … ऐसा करो इन्हे मेरे अहाते में रखवा दो ..”
लकड़ियाँ रखवा दी गयीं .
किसान ने पडोसी की बातों में आकर पेड़ तो कटवा दिया , पर अब उसे एहसास होने लगा कि पडोसी ने लकड़ियों की लालच में आकर उससे ऐसा करवा दिया .
दुखी मन से वह महान गुरु लाओ-त्ज़ु के पास पहुंचा और पूरी बात बता दी .
लाओ-त्ज़ु मुस्कुराते हुए बोले , “ तुम्हारे पड़ोसी ने सच ही तो कहा था , वो पेड़ वास्तव में मनहूस था , तभी तो वो तुम्हारे जैसे मूर्ख के बागीचे में लगा था .
यह सुन किसान का मन और भी भरी हो गया .