हमारे सभी शुभ-अशुभ कर्मों का कारण मन है। उपनिषद् में कहा गया है, ‘मन एव मनुष्याणां कारणं बंधमोक्षयोः।’ अर्थात् मन के परिष्कृत शुद्ध हो जाने से या उसमें सत्य को प्रतिष्ठित करने से स्वतः दया, करुणा, उदारता, सेवा, परोपकार जैसे सद्गुणों का समावेश हो जाता है।
भगवान् श्रीकृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हुए कहते हैं, जिसका मन वश में है, राग-द्वेष से रहित है, वह स्थायी प्रसन्नता प्राप्त करता है। उस प्रसन्नता से वह संपूर्ण दुःखों से मुक्ति पा लेता है। जो पुरुष मन को संयमित कर लेने में सफल हो जाता है, वह कर्मयोगी और संन्यासी ही समझने के योग्य है।’
भगवान् बुद्ध अपने प्रिय शिष्य आनंद की जिज्ञासा का समाधान करते हुए कहते हैं, ‘अपने मन पर विजय पा लेना या अपने अंतःकरण को किसी भी तरह की लालसा से मुक्त कर लेना और भोग को भोगते हुए समय आने पर उसे छोड़ देने की सामर्थ्य अपने भीतर उत्पन्न कर लेना ही वास्तविक मोक्ष है।
मन को मारने से इच्छाएँ नहीं मरतीं, इसलिए मन को मारने की नहीं, साधने की जरूरत है। मन कभी खाली नहीं रह सकता। अतः उसे नकारात्मक विचारों से मुक्त रखकर हमेशा सकारात्मक विचारों का ही मंथन करते रहना चाहिए।
श्रीमद्भगवद् गीता में चंचल मन का निग्रह करने का उपाय बताते हुए कहा गया है, ‘यह मन जहाँ-जहाँ विचरण करता है, उसे वहाँ -वहाँ से हटाकर एक परमात्मा में ही लगाएँ। सत्यस्वरूप परमात्मा को मन में धारण करें।
संतों ने भी मन में गलत धारणा पनपने को ‘मानसिक पाप कर्म’ बताया है, इसलिए मन को हमेशा परमात्मा में लगाना चाहिए।
English Translation
The mind is the cause of all our good and bad deeds. It is said in the Upanishad, ‘Mana eva manushyanam karanam bandhamokshayoh’. That is, by the refined purification of the mind or the establishment of truth in it, virtues like kindness, compassion, generosity, service, benevolence are automatically included.
Lord Krishna preaching to Arjuna says that one whose mind is controlled, free from attachment and aversion, attains lasting happiness. By that happiness, he gets freedom from all sorrows. Only a person who becomes successful in controlling the mind is a karma yogi and a sannyasin.
Lord Buddha, answering the curiosity of his beloved disciple Ananda, says, ‘To conquer one’s mind or to free one’s conscience from any kind of longing, and to enjoy enjoyment, when the time comes, to give up within oneself. Creating is the only real salvation.
Desires do not die by killing the mind, so there is a need to cultivate, not kill the mind. The mind can never be empty. Therefore, keeping it free from negative thoughts, one should always keep churning positive thoughts.
Describing the way to control the restless mind in Shrimad Bhagavad Gita, it has been said, ‘Wherever this mind wanders, remove it from there and apply it to the one God. Keep God in your mind as the Truth.
The saints have also described the development of wrong perception in the mind as ‘mental sinful karma’, so the mind should always be engaged in God.