एक बार राजा भोज अपने मंत्री के साथ कहीं जा रहे थे। रास्ते में उन्हें एक किसान पथरीली, ऊबड़-खाबड़ जमीन पर गहरी नींद में सोता दिखा। राजा ने मंत्री से कहा, “देखो यह किसान कैसे इस असुविधापूर्ण स्थिति में भी चैन से सो रहा है।”
“जबकि हम सारी सुविधाएं के बावजूद थोड़ी भी अड़चन में ठीक से सो नहीं पाते हैं।” मंत्री बोला, “महाराज! ये सब अभ्यास के कारण है। इसकी परिस्थितियां इसी तरह की हैं। इसलिए यह उनका आदी हो गया है।”
मनुष्य का शरीर बहुत ही कठोर और बहुत सुकोमल भी है। जैसी व्यवस्था उसे मिलती है। वह उन्हींके अनुरूप ढल जाता है।” राजा को मंत्री की बात सही नहीं लगी। उन्होंने कहा कि इसकी परीक्षा ली जाए।
राजा उस किसान को अपने साथ राजमहल ले आये। यहां उसके लिए हर सुख सुविधा की व्यवस्था की गई। उसे बेहद नरम बिस्तर सोने के लिए दिया गया। किसान राजसी ठाठ-बाठ का आनंद लेने लगा।
इस तरह दो तीन महीने बीत गए। किसान उन सुख सुविधाओं का आदी हो गया। फिर एक दिन मंत्री ने चुपके से किसान के बिस्तर में कुछ पत्ते और तिनके रखवा दिए। किसान सारी रात करवटें बदलता रहा। उसे पूरी रात नींद नहीं आयी।
सुबह राजा और मंत्री उसके पास मिलने गए। किसान ने राजा से शिकायत की कि उसके बिस्तर में कुछ गड़ने वाली चीजें हैं। जिसके कारण उसे रातभर नींद नहीं आयी।
यह सुनकर मंत्री ने राजा से कहा, “देखा महाराज, यह वही किसान है। जो पथरीली भूमि पर भी गहरी नींद में आराम से सो रहा था। लेकिन अब यह राजमहल के विलासितापूर्ण जीवन का आदी हो गया है।
अब इससे पत्ते औए तिनके भी चुभते हैं। इसलिए मेरा कथन सत्य ही है कि मनुष्य परिस्थितियों के अनुसार ढल जाता है।
Moral of Story- सीख
इस कहानी से सीख मिलती है कि हमें अपने शरीर को ज्यादा सुख-सुविधाओं का आदी नहीं बनाना चाहिए।